5. Principles of Inheritance and Variation (विरासत और भिन्नता के सिद्धांत)
इस अध्याय में, हम गुणसूत्र (genes) और उनके उत्तराधिकारी (inheritance) के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। साथ ही हम यह भी जानेंगे कि कैसे इन गुणसूत्रों में भिन्नता (variation) उत्पन्न होती है, जो जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Mendelian Genetics (मेंडेलियन आनुवंशिकी)
मेंडल के नियम (Mendel’s Laws): ग्रेसिस जॉन मेंडेल ने आनुवंशिकता के नियमों की नींव रखी। उन्होंने मटर के पौधों पर प्रयोग करके इन नियमों की खोज की। उनके द्वारा प्रस्तावित दो मुख्य नियम हैं:
- First Law: Law of Segregation (पहला नियम: विभाजन का नियम)
- यह नियम कहता है कि प्रत्येक माता-पिता से केवल एक गुणसूत्र का चयन करके संतान को भेजा जाता है। प्रत्येक गुणसूत्र जोड़ी में केवल एक गुणसूत्र अगले पीढ़ी में जाता है। इसका मतलब है कि किसी विशेष गुणसूत्र का चयन सौ प्रतिशत नहीं होता, बल्कि दोनों गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र ही अगली पीढ़ी में जाता है।
- Second Law: Law of Independent Assortment (दूसरा नियम: स्वतंत्र संग्रहण का नियम)
- इस नियम के अनुसार, प्रत्येक गुणसूत्र जोड़ी का चयन एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से होता है। अर्थात् एक गुणसूत्र का चयन दूसरे गुणसूत्र के चयन पर निर्भर नहीं होता।
Non-Mendelian Genetics (गैर-मेंडेलियन आनुवंशिकी)
मेंडलियन आनुवंशिकी में कुछ सीमाएँ हैं, और उन सीमाओं के कारण कुछ आनुवंशिक पैटर्न मेंडल के नियमों के अनुसार नहीं होते। इन्हें गैर-मेंडेलियन आनुवंशिकी के रूप में जाना जाता है।
- Incomplete Dominance (अपूर्ण प्रभुत्व):
- जब दो पुनरावृत्ति करने वाले गुणसूत्र (alleles) मिलते हैं, और दोनों गुणसूत्र का प्रभाव दिखता है, तो इसे अपूर्ण प्रभुत्व कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि एक लाल फूल और एक सफेद फूल एक दूसरे से मिलते हैं, तो संतान गुलाबी फूल की होगी।
- Co-dominance (सह-प्रभुत्व):
- सह-प्रभुत्व में दोनों गुणसूत्र पूरी तरह से व्यक्त होते हैं। जैसे, अगर एक व्यक्ति के पास A और B दोनों रक्त समूह वाले गुणसूत्र हैं, तो उसका रक्त समूह AB होगा।
- Polygenic Inheritance (पॉलीजेनिक विरासत):
- कुछ गुणसूत्रों के प्रभाव से एक ही लक्षण पर कई गुणसूत्रों का प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मानव त्वचा का रंग कई जीनों के संयोजन के कारण निर्धारित होता है।
- Multiple Alleles (कई पुनरावृत्तियाँ):
- जब किसी एक लक्षण के लिए एक से अधिक पुनरावृत्तियाँ होती हैं, तो इसे कई पुनरावृत्तियों का सिद्धांत कहते हैं। जैसे, रक्त समूह (A, B, O) का निर्धारण कई पुनरावृत्तियों से होता है।
Linkage and Crossing Over (लिंकज और क्रॉसिंग ओवर)
Linkage (लिंकज):
- लिंकज का अर्थ है, दो या दो से अधिक गुणसूत्र जो एक साथ विरासत में मिलते हैं, वे एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। ये गुणसूत्र समान गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं और एक साथ वंशानुगत होते हैं।
- उदाहरण: X और Y गुणसूत्र जो एक साथ जुड़े होते हैं और उनके बीच में एक लक्षण का प्रसार होता है।
Crossing Over (क्रॉसिंग ओवर):
- क्रॉसिंग ओवर वह प्रक्रिया है, जिसमें दो समकक्ष गुणसूत्र एक दूसरे से जुड़कर अपनी आनुवंशिक सामग्री का आदान-प्रदान करते हैं। यह मुख्य रूप से माइटोटिक विभाजन के दौरान होता है।
- इससे नए संयोजन और भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं, जो विकास में सहायक होती हैं। यह जीनोमिक विविधता का कारण बनता है।
Mutations (म्यूटेशन्स)
म्यूटेशन (Mutation) वह प्रक्रिया है जिसमें डीएनए में कोई स्थायी परिवर्तन होता है, जो आनुवंशिक जानकारी को बदल देता है। म्यूटेशन जीनोमिक बदलाव का कारण बन सकते हैं, और ये प्राकृतिक चयन (natural selection) के द्वारा विकास में योगदान कर सकते हैं।
म्यूटेशन दो प्रकार के होते हैं:
- Gene Mutations (जीन म्यूटेशन्स):
- जब किसी जीन की संरचना में बदलाव होता है, तो उसे जीन म्यूटेशन कहते हैं। ये बदलाव शरीर के किसी विशेष लक्षण को प्रभावित कर सकते हैं।
- Chromosomal Mutations (क्रोमोसोमल म्यूटेशन्स):
- जब किसी क्रोमोसोम की संरचना या संख्या में बदलाव होता है, तो उसे क्रोमोसोमल म्यूटेशन कहते हैं। ये अधिक गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं और कई बार आनुवंशिक विकारों का कारण बन सकते हैं।
म्यूटेशन के प्रकार:
- Point Mutation: जब केवल एक न्यूक्लियोटाइड में परिवर्तन होता है।
- Frameshift Mutation: जब न्यूक्लियोटाइड के जोड़ने या हटाने से अमीनो एसिड की क्रमबद्धता बदल जाती है।
- Insertion/Deletion: जब डीएनए अनुक्रम में एक या अधिक न्यूक्लियोटाइड जोड़े या हटाए जाते हैं।
NEET Perspective Questions (NEET दृष्टिकोण से प्रश्न)
प्रश्न 1: मेंडल के पहले नियम के बारे में बताइए।
उत्तर:
मेंडल का पहला नियम, जिसे ‘विभाजन का नियम’ कहते हैं, यह कहता है कि प्रत्येक माता-पिता से केवल एक गुणसूत्र का चयन करके संतान को भेजा जाता है। प्रत्येक गुणसूत्र जोड़ी में से केवल एक गुणसूत्र अगली पीढ़ी में जाता है।
प्रश्न 2: लिंकज और क्रॉसिंग ओवर के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
- लिंकज (Linkage): यह प्रक्रिया है जब दो या दो से अधिक गुणसूत्र एक साथ विरासत में मिलते हैं और एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं।
- क्रॉसिंग ओवर (Crossing Over): यह वह प्रक्रिया है जब समकक्ष गुणसूत्र एक दूसरे से जुड़कर अपनी आनुवंशिक सामग्री का आदान-प्रदान करते हैं, जिससे नई जीनों की संयोजन होती है।
प्रश्न 3: म्यूटेशन के प्रकार क्या होते हैं?
उत्तर:
म्यूटेशन के दो प्रमुख प्रकार होते हैं:
- Gene Mutation: जब किसी जीन की संरचना में बदलाव होता है।
- Chromosomal Mutation: जब क्रोमोसोम की संरचना या संख्या में बदलाव होता है।
प्रश्न 4: अपूर्ण प्रभुत्व (Incomplete Dominance) के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अपूर्ण प्रभुत्व में, दोनों गुणसूत्र (alleles) मिलकर एक नया लक्षण उत्पन्न करते हैं। उदाहरण: यदि एक लाल फूल और एक सफेद फूल का संकरण होता है, तो उनकी संतान गुलाबी फूल का उत्पादन करती है।
6. Molecular Basis of Inheritance (विरासत का आणविक आधार)
इस अध्याय में, हम डीएनए (DNA) और आरएनए (RNA) के संरचनात्मक और कार्यात्मक पहलुओं को समझेंगे। यह अध्याय आनुवंशिक सूचना के संचरण, डीएनए की पुनः निर्माण (replication), और प्रोटीन संश्लेषण (protein synthesis) के बारे में है।
Structure of DNA (डीएनए की संरचना)
डीएनए (Deoxyribonucleic Acid) वह आणविक संरचना है जो सभी जीवों में आनुवंशिक जानकारी को संग्रहीत करती है। डीएनए की संरचना में दो मुख्य पहलू होते हैं:
- Double Helix Structure (डबल हेलिक्स संरचना):
- डीएनए का आकार एक सीढ़ी के समान होता है, जिसे डबल हेलिक्स कहा जाता है। इसमें दो लम्बी श्रेणियाँ होती हैं, जो एक-दूसरे से ट्विस्ट होकर जुड़ी होती हैं। इसे जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 में खोजा था।
- Nucleotides (न्यूक्लियोटाइड्स):
- डीएनए की संरचना में न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं, जो तीन प्रमुख घटकों से बने होते हैं:
- Phosphate Group (फॉस्फेट समूह)
- Sugar (शुगर): डीऑक्सीराइबोज (Deoxyribose) शुगर, जो 5 कार्बन अणु से बना होता है।
- Nitrogenous Base (नाइट्रोजन युक्त आधार): इसमें 4 प्रकार के आधार होते हैं:
- Adenine (A) – थाइमिन (T) के साथ जुड़ता है।
- Thymine (T) – एडेनीन (A) के साथ जुड़ता है।
- Cytosine (C) – गुआनिन (G) के साथ जुड़ता है।
- Guanine (G) – साइटोसिन (C) के साथ जुड़ता है।
- डीएनए की संरचना में न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं, जो तीन प्रमुख घटकों से बने होते हैं:
डीएनए में ये न्यूक्लियोटाइड्स एक दूसरे से हाइड्रोजन बॉन्ड्स के द्वारा जुड़ते हैं, जो इसकी डबल हेलिक्स संरचना को बनाते हैं।
Structure of RNA (आरएनए की संरचना)
आरएनए (Ribonucleic Acid) एक समान संरचना वाला अणु है, लेकिन इसमें कुछ मुख्य भिन्नताएँ हैं:
- Single-Stranded (सिंगल-श्रेडेड):
- आरएनए एकल धागे के रूप में होता है, जबकि डीएनए डबल हेलिक्स संरचना में होता है।
- Ribose Sugar (राइबोज शुगर):
- आरएनए में राइबोज शुगर होता है, जो डीएनए के डीऑक्सीराइबोज से भिन्न होता है।
- Nitrogenous Bases (नाइट्रोजन युक्त आधार):
- आरएनए में थाइमिन की जगह यूरासिल (U) होता है।
- Adenine (A) – यूरासिल (U) के साथ जुड़ता है।
- Cytosine (C) – गुआनिन (G) के साथ जुड़ता है।
- Guanine (G) – साइटोसिन (C) के साथ जुड़ता है।
- Uracil (U) – एडेनीन (A) के साथ जुड़ता है।
- आरएनए में थाइमिन की जगह यूरासिल (U) होता है।
आरएनए के प्रमुख प्रकार हैं:
- mRNA (Messenger RNA): यह डीएनए से प्रोटीन संश्लेषण के निर्देश लेकर राइबोसोम में जाता है।
- tRNA (Transfer RNA): यह मट्रिक्स में कोडेड संदेश के अनुसार एमिनो एसिड लेकर राइबोसोम में जाता है।
- rRNA (Ribosomal RNA): यह राइबोसोम का निर्माण करता है और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है।
DNA Replication (डीएनए का पुनः निर्माण)
डीएनए की पुनः निर्माण प्रक्रिया (DNA Replication) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा डीएनए की दो प्रतियां बनती हैं। यह प्रक्रिया सेल डिवीजन (माइटोसिस और मीयोसिस) से पहले होती है। डीएनए पुनः निर्माण की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:
- Initiation (आरंभ):
- डीएनए की डबल हेलिक्स संरचना को खोलने के लिए हीलिकेज़ (Helicase) एंजाइम कार्य करता है।
- Unwinding (अलाइमन):
- डीएनए में हाइड्रोजन बॉन्ड्स टूटते हैं, जिससे दो स्ट्रैंड्स अलग हो जाते हैं।
- Primer Synthesis (प्राइमर संश्लेषण):
- डीएनए पॉलिमरेज़ एंजाइम काम करने से पहले RNA प्राइमर द्वारा एक छोटे अंश की शुरुआत की जाती है।
- Elongation (वृद्धि):
- DNA Polymerase एंजाइम न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ता है, जिससे नई डीएनए स्ट्रैंड बनती है। यह प्रक्रिया दोनों स्ट्रैंड्स पर होती है (लीडिंग स्ट्रैंड और लैगिंग स्ट्रैंड)।
- Termination (समाप्ति):
- जब पूरी डीएनए स्ट्रैंड का पुनः निर्माण हो जाता है, तो प्रक्रिया समाप्त होती है और दो नई डीएनए प्रतियां बन जाती हैं।
Transcription (अनुवादन)
Transcription (अनुवादन) वह प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए की एक स्ट्रैंड को mRNA (Messenger RNA) में बदल दिया जाता है। यह प्रोटीन संश्लेषण की पहली कड़ी है और यह न्यूक्लियोटाइड के अनुक्रम को आरएनए में स्थानांतरित करता है। इसके चरण होते हैं:
- Initiation:
- राइबोसोम में RNA Polymerase एंजाइम डीएनए स्ट्रैंड से जुड़ता है और ट्रांस्क्रिप्शन की शुरुआत करता है।
- Elongation:
- RNA पॉलिमरेज़ न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ता है, जिससे mRNA का स्ट्रैंड बनता है।
- Termination:
- एक बार जब पूर्ण जीन का अनुवाद हो जाता है, तो ट्रांस्क्रिप्शन समाप्त होता है, और mRNA बनकर नाभिक से बाहर राइबोसोम में जाता है।
Translation (अनुवाद)
Translation (अनुवाद) वह प्रक्रिया है, जिसमें mRNA द्वारा दी गई जानकारी का उपयोग करके प्रोटीन का निर्माण किया जाता है। यह प्रक्रिया राइबोसोम में होती है और इसमें tRNA (Transfer RNA) अहम भूमिका निभाता है। इसके प्रमुख चरण हैं:
- Initiation:
- mRNA, tRNA और राइबोसोम एक साथ जुड़ते हैं। mRNA पर कोडन (Codon) और tRNA पर एंटीकोडन (Anticodon) मिलकर एक अमीनो एसिड को जोड़ते हैं।
- Elongation:
- tRNA द्वारा विभिन्न अमीनो एसिड लाकर राइबोसोम में जोड़ने की प्रक्रिया जारी रहती है, जिससे प्रोटीन की लंबी श्रृंखला बनती है।
- Termination:
- जब राइबोसोम को एक स्टॉप कोडन (Stop Codon) मिलता है, तो प्रोटीन का निर्माण रुक जाता है और प्रोटीन मुक्त हो जाता है।
NEET Perspective Questions (NEET दृष्टिकोण से प्रश्न)
प्रश्न 1: डीएनए और आरएनए में क्या अंतर है?
उत्तर:
डीएनए और आरएनए दोनों ही नूक्लिक एसिड हैं, लेकिन:
- डीएनए डबल-स्ट्रैंडेड होता है, जबकि आरएनए सिंगल-स्ट्रैंडेड होता है।
- डीएनए में थाइमिन (T) होता है, जबकि आरएनए में यूरासिल (U) होता है।
- डीएनए में डिओक्सीराइबोज शुगर होती है, जबकि आरएनए में राइबोज शुगर होती है।
प्रश्न 2: डीएनए की पुनः निर्माण प्रक्रिया के प्रमुख चरण बताइए।
उत्तर:
डीएनए पुनः निर्माण में प्रमुख चरण होते हैं:
- Initiation: डीएनए हेलिकेज़ के द्वारा डबल हेलिक्स खुलता है।
- Elongation: DNA polymerase द्वारा न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ना।
- Termination: पुनः निर्माण समाप्त होता है और दो नई डीएनए स्ट्रैंड्स बनती हैं।
प्रश्न 3: अनुवादन (Translation) की प्रक्रिया में tRNA का क्या कार्य है?
उत्तर:
tRNA का कार्य है, mRNA द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार सही अमीनो एसिड को राइबोसोम में लाकर जोड़ना, ताकि प्रोटीन का निर्माण हो सके।
प्रश्न 4: ट्रांस्क्रिप्शन (Transcription) की प्रक्रिया के प्रमुख चरण बताइए।
उत्तर:
ट्रांस्क्रिप्शन में प्रमुख चरण होते हैं:
- Initiation: RNA polymerase डीएनए से जुड़ता है।
- Elongation: RNA polymerase न्यूक्लियोटाइड्स जोड़ता है।
- Termination: ट्रांस्क्रिप्शन समाप्त होता है और mRNA बनता है।
7. Evolution (विकास)
विकास (Evolution) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जीवन रूप समय के साथ बदलाव होते हुए नए रूपों में बदलते हैं। यह सिद्धांत जीवन के उत्थान और विविधता के विकास को समझाने में मदद करता है। विकास के दो प्रमुख सिद्धांत हैं: चार्ल्स डार्विन का विकास सिद्धांत और जीन लमार्क का विकास सिद्धांत।
Theories of Evolution (विकास के सिद्धांत)
1. Darwin’s Theory of Evolution (डार्विन का विकास सिद्धांत)
चार्ल्स डार्विन ने “Natural Selection” या प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को प्रस्तावित किया। उनका मानना था कि जीवन के रूप समय के साथ छोटे-छोटे बदलावों के माध्यम से बदलते रहते हैं। इसके अनुसार:
- Variation (विविधता):
किसी भी प्रजाति के सदस्य एक जैसे नहीं होते, उनमें कुछ विशेषताएँ या गुण भिन्न होते हैं। ये भिन्नताएँ अनुवांशिक होती हैं। - Struggle for Existence (अस्तित्व की संघर्ष):
जीवों को जीवित रहने के लिए भोजन, पानी और आश्रय जैसी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यह संघर्ष उनकी संख्या को सीमित करता है। - Survival of the Fittest (सर्वश्रेष्ठ का अस्तित्व):
वे जीव, जिनमें पर्यावरण के अनुकूल बदलाव होते हैं, वे जीवित रहते हैं और अपनी जीन पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं। इस प्रकार, केवल मजबूत और अनुकूल जीव ही जीवित रहते हैं और उनके गुण अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं। - Speciation (नए प्रजातियों का निर्माण):
समय के साथ, यह छोटे-छोटे बदलाव एक नई प्रजाति के रूप में विकसित हो सकते हैं।
2. Lamarck’s Theory of Evolution (लमार्क का विकास सिद्धांत)
जीन लमार्क ने अपनी “Theory of Use and Disuse” और “Inheritance of Acquired Characteristics” को प्रस्तावित किया। उनके अनुसार:
- Use and Disuse (उपयोग और अप्रयुक्तता):
जीवों में जो अंग या अंग विशेष रूप से उपयोग किए जाते हैं, वे विकसित होते हैं। और जो अंग उपयोग में नहीं आते, वे धीरे-धीरे कमजोर हो जाते हैं और अंततः नष्ट हो जाते हैं। - Inheritance of Acquired Characteristics (आधारित लक्षणों का उत्तराधिकार):
लमार्क का मानना था कि जिन लक्षणों में बदलाव किसी जीव के जीवनकाल के दौरान होते हैं, वे अगली पीढ़ी में भी स्थानांतरित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी जीव ने अपने जीवन में अपनी गर्दन को लंबा किया, तो वह लक्षण उसकी संतान में भी पाया जाता।
नोट: लमार्क का सिद्धांत आज के विज्ञान में पूरी तरह से सही नहीं माना गया है, क्योंकि एकल जीवनकाल में अर्जित लक्षण जीन के माध्यम से अगली पीढ़ी तक नहीं पहुँच सकते। लेकिन उनके सिद्धांत ने विकास के विचार को एक नई दिशा दी।
Evidences of Evolution (विकास के प्रमाण)
विकास का सिद्धांत अनेक प्रमाणों द्वारा समर्थित है, जो जीवन के विकास और विविधता को समझने में मदद करते हैं।
- Fossils (जीवाश्म):
- जीवाश्म (Fossils) पुराने जीवों के अवशेष होते हैं, जो पृथ्वी की परतों में मिलते हैं। ये जीवाश्म हमें पुराने जीवों की संरचना, आकार, और विकास के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। जीवाश्मों में पाए गए बदलावों के आधार पर हम समझ सकते हैं कि किस प्रकार प्रजातियाँ समय के साथ बदलती रही हैं।
- Comparative Anatomy (तुलनात्मक शरीर रचना):
- विभिन्न प्रजातियों के शरीर की संरचना में समानताएँ और भिन्नताएँ होती हैं। उदाहरण के लिए, मानव और अन्य स्तनधारियों के हाथों की हड्डियों की संरचना समान होती है, जिसे Homologous Organs कहा जाता है। यह दर्शाता है कि इन जीवों के पूर्वज एक ही थे और उनके बीच विकास के द्वारा भिन्नताएँ आईं।
- Comparative Embryology (तुलनात्मक भ्रूणविज्ञान):
- विभिन्न प्रजातियों के भ्रूण (Embryos) प्रारंभ में समान होते हैं, और समय के साथ वे विकास करते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य, मेंढ़क और मुर्गी के भ्रूण में शुरुआती चरण में समानता पाई जाती है, जो यह दर्शाती है कि इन प्रजातियों के बीच एक सामान्य पूर्वज था।
- Molecular Biology (आणविक जीवविज्ञान):
- डीएनए और प्रोटीन के स्तर पर भी विकास का प्रमाण पाया गया है। विभिन्न प्रजातियों के डीएनए में समानता यह दर्शाती है कि वे एक समान पूर्वज से विकसित हुए हैं। जीन के अनुक्रम की समानता को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि कैसे जीवन के रूप एक दूसरे से जुड़े हैं।
- Biogeography (जैव-भौगोलिक विज्ञान):
- पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर पाए जाने वाले जीवों की भिन्नताएँ और समानताएँ यह दर्शाती हैं कि किस प्रकार अलग-अलग स्थानों पर प्रजातियाँ विभिन्न परिस्थितियों के अनुकूल हो कर विकसित हुईं। जैसे, ऑस्ट्रेलिया में पंखहीन स्तनधारी (मोनोट्रेम्स) पाई जाती हैं, जो पृथ्वी के अन्य हिस्सों में नहीं पाई जातीं।
NEET Perspective Questions (NEET दृष्टिकोण से प्रश्न)
प्रश्न 1: डार्विन के प्राकृतिक चयन सिद्धांत को समझाइए।
उत्तर:
डार्विन के प्राकृतिक चयन सिद्धांत के अनुसार, प्रजातियाँ समय के साथ बदलाव करती हैं, और वे जीव जिनमें पर्यावरण के अनुकूल गुण होते हैं, वे जीवित रहते हैं और अपने गुण अगली पीढ़ी में स्थानांतरित करते हैं। इस प्रक्रिया को “Survival of the Fittest” कहा जाता है।
प्रश्न 2: लमार्क के विकास सिद्धांत का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर:
लमार्क का मानना था कि अर्जित लक्षण अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं। हालांकि, आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि अर्जित लक्षण आनुवंशिकी के माध्यम से नहीं हस्तांतरित होते। इसलिए उनका सिद्धांत पूरी तरह से सही नहीं माना जाता।
प्रश्न 3: विकास के किस प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि मनुष्य और अन्य प्रजातियाँ एक समान पूर्वज से विकसित हुईं?
उत्तर:
Comparative Anatomy और Molecular Biology के प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि मनुष्य और अन्य प्रजातियाँ एक समान पूर्वज से विकसित हुईं। विभिन्न प्रजातियों में शरीर की संरचना और डीएनए अनुक्रम में समानताएँ पाई जाती हैं, जो साझा पूर्वज की ओर संकेत करती हैं।
प्रश्न 4: जीवाश्मों का विकास के प्रमाण के रूप में क्या महत्व है?
उत्तर:
जीवाश्मों के माध्यम से हम पुराने जीवों के अवशेषों को देख सकते हैं, जो विकास की प्रक्रिया और प्रजातियों में बदलावों को स्पष्ट करते हैं। जीवाश्मों में पाए गए परिवर्तनों से यह समझने में मदद मिलती है कि प्रजातियाँ समय के साथ बदलती रही हैं।
इस तरह, विकास के सिद्धांत और प्रमाण हमें जीवन के उत्पत्ति और समय के साथ उसकी विविधता को समझने में मदद करते हैं। यह विषय NEET की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।