परिचय
साइजोफ्रेनिया Schizophrenia उन मानसिक विकृतियों को कहते हैं जिनमें रोगी के अंदर व्यक्तित्व विदलन (Personality sliting) अथवा व्यक्ति विघटन के स्पष्ट लक्षण प्रकट होते है। सामान्यतया मानसिक रोगों में से 2 प्रतिशत व्यक्ति इस रोग से पीड़ित रहते हैं। यह रोग बाल्यकाल से लेकर वृद्धावस्था तक किसी भी समय हो सकता है।
Types of Schizophrenia: Understanding Different Forms, Symptoms, and Diagnosis
1. साधारण प्रकार-रोगी सुस्त एवं तनाव पूर्ण स्थिति में रहता है और अकेले रहना ज्यादा पसन्द करता है।
2. संभ्रान्ति कल्प प्रकार-ऐसे रोगी को मिथ्या विश्वास बना रहता है और वह अपने को बहुत बड़ा आदमी VIP या राजा महाराजा समझ बैठता है।
3. हैविफ्रैनी प्रकार – इसमें विचारों की विकृति सबसे प्रमुख लक्षण होता है उसके विचार उलझे हुए होते हैं या बेइमानी होता है। इस प्रकार की शाइजोफ्रेनिया 30 वर्ष के आस-पास की उम्र के पुरुषों में अधिक होती है। धीरे-धीरे रोगी सुस्त और उदास या अवसादी (Depressed) हो जाता है। उसे किसी काम या चीज में दिलचस्पी नहीं होती है।
4. कैटाटोनी प्रकार – इस प्रकार में रोगी पागलों जैसी हरकत करता है तथा बीच-बीच में आवेश में आ जाता है और फिर शान्त हो जाता है। सभी पेशियों में कड़ापन बना रहता है। इस प्रकार का रोग भारत में अधिक होता है।
Schizophrenia
Causes of Schizophrenia: Key Factors, Risks, and Contributing Conditions
कुछ लोग दूषित वंशानुक्रम को अन्तराबन्ध का प्रमुख कारण मानते है। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार यह रोग अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की विकृति के कारण उत्पन्न होता है। रोग को उत्पन्न करने में मनोजात कारण भी सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत रोगी द्वारा अपने वातावरण के अनुरूप क्रमिक अभियोजन करने में असफलता के कारण अन्तराबन्ध की उत्पत्ति होती है। अन्तराबन्ध दोषपूर्ण प्रतिक्रियात्मक आदतों का परिणाम होता है। अन्तराबन्ध से ग्रसित दो तिहाई रोगी ऐसे होते हैं जो या तो दुबले-पतले होते है या हृष्ट-पुष्ट होते हैं।
Symptoms
इस रोग में रोगी वास्तविकता से दूर अपनी ही एक अजीबोगरीब दुनिया में खोया रहता है। उसे बाहरी दुनिया में दिलचस्पी दिनों दिन कम होती जाती है। वह अपनी धारणाओं के अनुरूप सोचता है। ऐसी धारणायें उद्देश्यहीन. तर्कहीन और अनिश्चित होती है एवं ऐसे विचार, अर्थहीन, बेढंगे, बेबकूफाना तथा बिना सिर-पैर के होते हैं। उसकी भावनायें विकृत हो जाती हैं। उदाहरणार्थ- किसी सगे-सम्बन्धी की मौत की खबर सुनकर भी उस पर कोई असर नही होता। किन्तु इसके ठीक विपरीत, एक मामूली सी बात पर वह रोना या चीखना शुरू कर खाली अथवा अत्यधिक भरा हुआ प्रतीत होता है। रोगी को पृष्ठशूल (Backache) होता है।तथा नपुंसकता इस रोग का प्रधान लक्षण है। अतः रोगी को निद्रानाश हो जाता है। कुछ लोग दूषित वंशानुक्रम को अन्तराबन्ध का प्रमुख कारण मानते है। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार यह रोग अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की विकृति के कारण उत्पन्न होता है। रोग को उत्पन्न करने में मनोजात कारण भी सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत रोगी द्वारा अपने वातावरण के अनुरूप क्रमिक अभियोजन करने में असफलता के कारण अन्तराबन्ध की उत्पत्ति होती है। अन्तराबन्ध दोषपूर्ण प्रतिक्रियात्मक आदतों का परिणाम होता है। अन्तराबन्ध से ग्रसित दो तिहाई रोगी ऐसे होते हैं जो या तो दुबले-पतले होते है या हृष्ट-पुष्ट होते हैं।
नोट- वैसे अब तक इस रोग का कोई सही कारण मालूम नहीं हो सका है लेकिन इसके होने में आनुवांशिकता का प्रभाव अवश्य होता है। यह रोग पुस्त-दर पुस्त बराबर चलता रहता है।
Schizophrenia के परिणाम: मानसिक, शारीरिक और सामाजिक प्रभाव
Schizophrenia इस रोग के प्रारम्भ होने के दो वर्ष के अन्दर ही उचित चिकित्सा करा लेने पर 50% रोगी अच्छे हो सकते हैं। परन्तु 4-5 वर्ष का पुराना रोग हो जाने के कारण यह रोग असाध्य या कष्टसाध्य हो जाता है। बाल्यावस्था में इस रोग का प्रकोप अधिक उम्र होता है। इस रोग में पुनरावृत्ति (Relapse) की अत्यधिक सम्भावना हुआ करती है। क्षय (T. B.) तथा अन्य रोगों के प्रकोप के उपरान्त व्यक्ति में मृत्यु की अत्यधिक सम्भावनायें होती है।
चिकित्सा के उपरान्त यह रोग बहुत हद तक तो अच्छा हो जाता है परन्तु फिर भी इसके कुछ रोग सूचक चिन्ह अवश्य रह जाते हैं।