क्या होता है? धातु रोग
जब वीर्य या शुक्र किसी कारणवश मूत्रमार्ग से मूत्रत्याग से पूर्व, मूत्रत्याग के समय मूत्र के साथ मिलकर अथवा मूत्रत्याग के बाद में या जाग्रत अवस्था में किसी भी अन्य समय निकलने लगता है तो ऐसी दशा को आयुर्वेद में शुक्रमेह(SPERMATORRHOEA) तथा आधुनिक चिकित्सा में स्पर्मेटोरिया कहा जाता है। चूँकि आयुर्वेदानुसार मूत्रमार्ग से होकर एक धातु (शुक्र) विसर्जित होती है इसलिए बाद में वैद्य लोग इसे ‘धातु रोग’ या ‘धातु’ जाना कहने लगे। इसे आम बोल- चाल की भाषा में ‘धातु जाना’ या ‘धातु गिरना’ कहा जाने लगा है।
किशोरों और युवकों में यह शिकायत भी बहुत पाई जाती है। इस शिकायत में पेशाब के साथ वीर्य जैसा एक स्राव निकलता है। इस स्राव में मुख्य रूप से प्रोस्टेट ग्रन्थि से निकलने वाला गंदले रंग का चावल के मांड़ जैसा स्राव होता है। प्रायः इसमें शुक्राणु नहीं होते हैं, पर कभी-कभी होते हैं। आयुर्वेद में यह रोग प्रमेह(SPERMATORRHOEA) के अन्तर्गत आता है।
Causes of spermatorrhea
पेशाब करने से पहले या बाद में धातु स्राव कई कारणों से हो सकता है-कई बार किसी लड़की से एकान्त में बात करते समय, यार-दोस्तों से अश्लील कहानियाँ सुनते समय अथवा कामोत्तेजक उपन्यास पढ़ते-पढ़ते पुरुष कामोत्तेजक हो उठते हैं। अधिक स्त्री सहवास एवं हस्तमैथुन तथा आहार-विहार के दूषित होने से अर्थात् ठीक व्यवस्था न रहने से भी यह रोग हो जाता है। साथ ही दिन भर बैठे रहने से अधिक सोने से, सामर्थ्य से अधिक परिश्रम करने से, खटाई या तीखी वस्तुओं के खाने से, मादक पदार्थों के अधिक मात्रा में सेवन करने से यह रोग होता है।
Symptoms of spermatorrhea
धातु रोग से पीड़ित पुरुष में हमेशा सुस्ती छाई रहती है। उसमें शारीरिक दुर्बलता पाई जाती है। जोड़ों में दर्द रहता है, उसका किसी काम में मन नहीं लगता है। सिर में दर्द रहने लगता है। आलस्य एवं चिंता सताती है। वीर्य में पतलापन आ जाता है। धातु रोग( Spermatorrhoea) निम्नलिखित दो प्रकार का होता है-
1. शरीर क्रियात्मक धातु रोग या शुक्रमेह(Spermatorrhoea)।
2. जन्मजात धातु रोग या शुक्रमेह।
1. शरीर क्रियात्मक धातु रोग—इसका मुख्य कारण कब्ज होता है। कब्ज में मलत्याग के लिए जोर लगाने पर मल से भरी हुई। बड़ी आँत वीर्य से भरे शुक्राशय पर दबाव डालती है जिससे वीर्य की कुछ बूँदें छलक कर मूत्रमार्ग से बाहर आ जाती हैं। अथवा मूत्रमार्ग में पड़ी रहती हैं और मूत्र त्याग के समय मूत्र के साथ मिलकर उसे गँदला बना देती हैं।
* प्रमेह होने की असली जड़ (मूल कारण ) भोजन का हजम न होना या पाचन शक्ति का दुर्बल होना है।
* इसके बाद हस्तमैथुन इसका((Spermatorrhoea) मुख्य कारण आता है। कब्ज, अधिक वेश्यागमन, अधिक गर्म व तीखा भोजन करने से इस रोग की उत्पत्ति होती है।
2. विकृतिजन्य धातु रोग या शुक्रमेह(Spermatorrhoea) यह आन्तरिक कामांगों (Sex organs) के क्षोभ के कारण उत्पन्न होता है। इसके पीछे अधिक ‘हस्तमैथुन’ करने या अति सम्भोग करने का इतिहास मिलता है। इसमें कमजोरी आती है और उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। अधिक दिनों तक धात जाने पर कभी-कभी अधिक तेज चलने, जोर से खाँसने या हँसने अथवा छींकने से वीर्य की कुछ बूँदें लिंगमुण्ड के छिद्र पर दिखाई देती हैं। यह बहुत ही गम्भीर अवस्था है।
# धातु जाना’ (प्रमेह) के सम्बन्ध में आधुनिक काम-वैज्ञानकों के मत
* यह अपने आप में कोई रोग नहीं है, परन्तु लोग इसको बहुत गम्भीर रूप से ले लेते है। इससे किसी भी प्रकार की नपुंसकता नहीं होती है। इसको ‘वीर्य प्रमेह के नाम से भी जाना जाता है। इससे न ही कोई शारीरिक हानि होती है। बहुत से पुरुषों को वर्षों तक धात जाती रहती है तो भी उनको कोई भी विशेष हानि नहीं होती है।
* वास्तव में असलियत तो यह है कि धात रोग में लिंग के रास्ते से प्रोस्टेट ग्रन्थि का चावल के मांड जैसे रंग का स्राव, मल त्याग करते समय जोर लगाने से मल से भरी आँतों का दबाव प्रोस्टेट ग्रन्थि पर पड़ने से प्रोस्टेट स्राव की कुछ बूँदें बाहर निकल आती है या पेशाब करते समय मूत्रत्याग के तुरन्त बाद में या कामोत्तेजना के समय भी यह स्राव (प्रोस्टेट ग्रन्थि का स्राव) निकलता है। इस स्राव में कभी-कभी वीर्य के शुक्रकीट (Sperms) भी हो सकते हैं।
* वैज्ञानिकों का मत है कि स्वाभाविक तन्तुओं की दुर्बलता प्रणाली विहीन ग्रंथियों के कार्य में गड़बड़ी, कामांगों की कमजोरी तथा अस्वस्थता के कारण से पैदा हुई शक्ति की कमी, के कारण भी वीर्य शीघ्र स्खलित हो जाता है। कभी-कभी लिंग उत्तेजित अवस्था में भी इतना कठोर नहीं हो पाता कि वह योनि में प्रवेश कर सके। अर्ध कठोरावस्था में ही लिंग से वीर्य स्खलित हो जाता है। इसका कारण स्नायविक कमजोरी (Nervine Weekness) का अधिक बढ़ जाना होता है।
* सम्भवतः कोई भी युवक ऐसा नहीं जिसको जीवन में कभी-न-कभी धात’ जाने की शिकायत न रही हो। हालांकि यह स्वयं में एक हानि रहित शिकायत है, परन्तु नवयुवक इस भय से कि ‘धात’ के रूप में उनके जीवन का सत्व ‘वीर्य’ बह रहा है बड़े त्रस्त रहते हैं। वे सोचते हैं कि शीघ्र ही उन्हें शारीरिक व मानसिक दुर्बलता घेर लेगी और वे नपुंसक हो जायेंगे।
ये सब धारणायें बेबुनियाद हैं। वास्तव में बहुत से पुरुषों को वर्षों तक ‘घात’ जाती है लेकिन न उन्हें इससे कोई कमजोरी होती है और न उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
* टट्टी करते समय ‘धात(Spermatorrhoea)’ निकलने का कारण आमतौर पर यह समझा जाता है कि मलत्याग के समय युवक जब मल को निकालने के लिए जोर लगाता है तो कठोर मल से भरी आँत का दबाव शुक्राशयों पर पड़ता है जिससे इनमें से कुछ बूँदें वीर्य की छलक कर मूत्रमार्ग के पिछले भाग में आ जाती हैं। मल-त्याग कर लेने पर मूत्रमार्ग ढीला हो जाता है और यह बूँदें बाहर आ जाती हैं ।
* यह विचार करने की बात है कि अधिकांश स्वस्थ युवक प्रतिदिन एक या अधिक बार मैथुन करने में समर्थ होते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग रात-दिन मिलाकर (24 घण्टे के अन्दर) प्रतिदिन 18 बार तक स्त्री के साथ सम्भोग (रतिक्रिया) करते हैं। मैथुन में जितना वीर्य निकलता है उसकी तुलना में कभी-कभी मूत्र त्याग के समय निकलने वाली ये 4-6 बूँदें कोई महत्व नहीं रखतीं। अतः युवकों को इस(Spermatorrhoea) सम्बन्ध में चिंता नहीं करनी चाहिए।
✅ Conclusion – Long Version
Spermatorrhoea (धातु रोग / प्रमेह / शुक्रमेह) is a condition that many people hesitate to talk about, yet it(✅ Conclusion – Long Version
Spermatorrhoea (धातु रोग / प्रमेह / शुक्रमेह) is a condition that many people hesitate to talk about, yet it significantly affects physical health, mental well-being, and intimate relationships. Often caused by factors like excessive sexual activity, stress, poor diet, or underlying medical issues, this disorder can lead to fatigue, weakness, anxiety, and reduced confidence. However, it’s important to understand that it is a manageable and treatable condition.
By learning the causes and identifying early symptoms, individuals can take proactive steps to prevent further complications. Natural remedies, Ayurvedic treatments, lifestyle adjustments, and professional medical advice together form a holistic approach toward managing this condition. Along with treatment, adopting healthy habits such as balanced nutrition, exercise, proper sleep, and mental relaxation techniques can greatly improve recovery and prevent recurrence.
It’s also essential to break the stigma surrounding this disorder and encourage open conversations. Awareness and education empower individuals to seek help without shame and understand that this condition is more common than they might think. With timely care and self-discipline, one can overcome Spermatorrhoea and lead a healthy, energetic, and balanced life.
In conclusion, knowledge is the first step toward healing. By staying informed and taking the right measures, you can regain control over your health, enhance your vitality, and embrace a happier, healthier lifestyle) significantly affects physical health, mental well-being, and intimate relationships. Often caused by factors like excessive sexual activity, stress, poor diet, or underlying medical issues, this disorder can lead to fatigue, weakness, anxiety, and reduced confidence. However, it’s (Spermatorrhoea) important to understand that it is a manageable and treatable condition.
By learning the causes and identifying early symptoms, individuals can take proactive steps to prevent further complications. Natural remedies, Ayurvedic treatments, lifestyle adjustments, and professional medical advice together form a holistic approach toward managing this condition. Along with treatment, adopting healthy habits such as balanced nutrition, exercise, proper sleep, and mental relaxation techniques can greatly improve recovery and prevent recurrence of Spermatorrhoea.
Spermatorrhoea also essential to break the stigma surrounding this disorder and encourage open conversations. Awareness and education empower individuals to seek help without shame and understand that this condition is more common than they might think. With timely care and self-discipline, one can overcome Spermatorrhoea and lead a healthy, energetic, and balanced life.
In conclusion, knowledge is the first step toward healing. By staying informed and taking the right measures, you can regain control over your health, enhance your vitality, and embrace a happier, healthier lifestyle.