Leucorrhoea: 5 Effective Remedies and Warning Signs

परिचय

LEUCORRHOEA
LEUCORRHOEA

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है। इस रोग से पीड़ित महिलाओं के योनिमार्ग से सफेद अथवा किंचित् पीलापन लिये हुए अथवा मटमैला चिपचिपा स्राव होता रहता है। यह स्राव बदबूदार अथवा बदबू रहित भी होता है। आमबोल की भाषा में इसे सफेद पानी आना भी कहते हैं। कुछ लोग इसे ‘स्त्रियों का प्रमेह कहते हैं। वैसे इस रोग का अंग्रेजी नाम ‘ल्यूकोरिया (Leucorrhoea) आजकल काफी प्रचलित हो गया है।

 # प्रत्येक स्वस्थ स्त्री की योनि की दीवारों से अल्पमात्रा में एक प्रकार का स्राव निकलता रहता है जिससे योनि गीली रहती है। जब यह स्राव अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगता है। 

 तो बहकर योनि द्वार तक आ जाता है और बाहर निकलने लगता है तब इसे ही श्वेत प्रदर’ या ल्यूकोरिया’ कहते हैं।

LEUCORRHOEA रोग के कारण

इस घातक बीमारी LEUCORRHOEA के उत्पादक कारण वैसे तो एक प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं जो योनि की स्थानिक गंदगी के कारण वृद्धि कर इस रोग को पैदा करते हैं। इसके अतिरिक्त योनांगों की अच्छी प्रकार से सफाई न करना, शारीरिक कमजोरी, यौनांगों में सूजन, जोड़ों का दर्द तथा सूजन, जल्दी-जल्दी गर्भ ठहरना, मासिक धर्म का समय पर न होना, अप्राकृतिक मैथुन अत्यधिक सहवास, कामुक तथा अश्लील साहित्य पढ़ना तथा वैसी ही फिल्में देखना, जननेन्द्रिय में कोई गाँठ होना, तीव्र औषधियों को योनि में रखना, ज्यादा दूश करने, योनि में गंदी अँगुलियों का बार-बार प्रवेश, कब्ज, अजीर्ण, मधुमेह, अत्यधिक परिश्रम करना, छोटी उम्र में गर्भ धारण करना गुदामार्ग से पतले सूत्रकृमियों का बाहर निकलकर योनि में प्रवेश करना आदि श्वेत प्रदर के कारण बन सकते हैं। -ट्राइकोमोनल’ तथा ‘मोनोलियल परजीवों के संक्रमण के कारण योनि में शोथ व प्रदाह होकर सफेद तरल उसकी दीवारों से रिसने लगता है। उसी प्रकार सुजाक या आतशक के परजीवों के संक्रमण या प्रकोप के कारण भी श्वेत प्रदर की उत्पत्ति होती है।

फैशन परस्त एवं आराम परस्त जीवन, शारीरिक परिश्रम का अभाव, लूप का प्रयोग, मौखिक सन्तान निरोधक गोलियों का प्रयोग, कृत्रिम यौन उपकरणों का प्रयोग, अत्यधिक शीत समाधान अतृप्त कामेच्छा, चर्म रोग, पाण्डु मधुमेह, यक्ष्मा आदि के कारण भी कभी-कभी श्वेत प्रदर होते देखा जाता है।

रोग के लक्षण

श्वेत प्रदर से पीड़ित महिला को शुरू-शुरू में तो किसी विशेष कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है, इसलिये वह इस तरह से लापरवाह रहकर निरन्तर समस्याओं को झेलती रहती है। पहने जाने वाले अधोवस्त्र, अण्डरवियर, जाँघिया, पेटीकोट वगैरह हमेशा गीले रहते हैं. जैसे किसी ने उनको पानी में भिगो दिया हो। योनि से सफेद, पीला, मटमैला या गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढा पानी बहता रहता है। जिसकी तरफ ध्यान न दिया जाये तो वही बदबूदार तथा मवाद की शक्ल में आने लगता है। योनि से दुर्गन्ध आती है। इससे पीड़ित महिला के कमर में दर्द, पेडू (पेट का निचला हिस्सा) में दर्द एवं भारीपन-सा रहता है। बार-बार पेशाब जाना का खतरा पड़ता है। सुस्ती और कमजोरी आ जाती है माहवारी कष्ट और दर्द के साथ आने लगती है, भूख घट जाती है और कब्ज रहने लगती है।

चेहरा एवं शरीर कान्तिहीन हो जाता है। त्वचा सूखी तथा निस्तेज पीली सी हो जाती है। किसी काम में मन नहीं लगता है, नींद अच्छी न आना, स्वभाव का चिड़चिड़ा होना, मानसिक तनाव, जोड़ों, घुटनों तथा पिंडलियों में दर्द होने लगता है। किसी-किसी की योनि में खुजली तथा स्राव में दुर्गन्ध आने लगती है उठने और चलने में परेशानी, थकावट, सिर दर्द, चक्कर आना, अजीर्ण आदि कष्ट होते है। ये सारे लक्षण माहवारी के समय और बढ़ जाते हैं। कमजोरी ज्यादा महसूस होती है।

# यदि किसी विशेष कीटाणुओं के कारण हो तो बच्चेदानी के मुँह तथा योनि में घाव हो जाते हैं और पीले रंग का झागदार, बदबूदार स्राव बहने लगता है। स्त्री का स्वास्थ्य और  सौन्दर्य दोनों ही नष्ट होने लगते हैं एवं शरीर में खून की अत्यधिक कमी हो जाती है। कभी-कभी बुखार भी आने लगता है। सारे शरीर में दर्द और हाथ-पैरों में जलन होती है। आँखों के चारों ओर काला घेरा सा बन जाता है।

# वृद्धावस्था में भग के अन्दर की झिल्लियाँ पतली हो जाती हैं तथा उनकी शक्ति क्षीण हो जाने का खतरा एवं हार्मोन्स की कमी के फलस्वरूप भी श्वेत प्रदर की खतरा उत्पन्न हो जाता है। श्वेत प्रदर या योनि मार्ग से पानी आना स्त्रियों की एक आम बीमारी है। लगभग 70% स्त्रियाँ इस बीमारी से कम-ज्यादा पीड़ित रहती हैं। यह रोग 14 साल की लड़कियों से लेकर बूढ़ी स्त्रियों तक को हो सकता है।

# खेल-खिलवाड़ में बालकों द्वारा महिलाओं पर अत्याचार होने से प्रदाहावस्था आती है तथा चोट से भी योनि प्रदाह होता है और योनि प्रदाह से श्वेत प्रदर की उत्पत्ति होती है।

रोग की पहचान

उपरोक्त लक्षणों के आधार पर निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। इसमें वेजाइनल डिस्चार्ज का T. vaginalis & moniliasis के लिये wet preperation, सरवाईकल डिस्चार्ज का कल्चर तथा ‘पससैल’ और शुगर के लिये है । मूत्र की जाँच की जाती है।

रोग का परिणाम

जब LEUCORRHOEA यह रोग पुराना हो जाता है तब पाचन शक्ति बिगड़ जाती है, भूख कम हो जाती है। चेहरे का रंग पीला और शरीर दुर्बल हो जाता है। कमर और पिंडलियों में दर्द रहने लगता है।

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