Volumetric and Gravimetric Analysis – Powerful Methods in Chemistry

Volumetric and Gravimetric Analysis
Volumetric and Gravimetric Analysis

परिभाषा (Definition):

(Volumetric and Gravimetric Analysis)यह वह विधि है जिसमें किसी रासायनिक विलयन (solution) की मात्रा (volume) को मापकर अज्ञात पदार्थ की मात्रा का पता लगाया जाता है।

मुख्य तत्व (Key Concepts):

  1. टाइट्रेशन (Titration):
    • एक ज्ञात सांद्रता वाले विलयन को धीरे-धीरे दूसरे विलयन में मिलाया जाता है जब तक कि रासायनिक अभिक्रिया पूरी न हो जाए।
  2. इंडिकेटर (Indicator):
    • वह पदार्थ जो रंग बदलकर यह बताता है कि रासायनिक क्रिया पूरी हो गई (End Point)।

उदाहरण:

  • एसिड-बेस टाइट्रेशन:
    HCl और NaOH के बीच टाइट्रेशन करके यह पता लगाना कि HCl की कितनी मात्रा है।

उपयोगिता (Uses):

  • दवाओं में किसी घटक की मात्रा जानने के लिए।
  • घोल की सांद्रता मापने के लिए।
  • फार्मास्युटिकल विश्लेषण में बहुत काम आता है।

परिभाषा (Definition):

यह वह विधि है जिसमें किसी पदार्थ को ठोस रूप में अलग कर उसका भार (Weight) मापकर अज्ञात पदार्थ की मात्रा का पता लगाया जाता है।(Volumetric and Gravimetric Analysis)

मुख्य तत्व (Key Concepts):

  1. Precipitation (अवक्षेपण):
    • वांछित आयन को एक अघुलनशील यौगिक (precipitate) के रूप में अलग किया जाता है।
  2. Filtration और Drying:
    • अवक्षेप को फ़िल्टर करके सुखाया जाता है और फिर तौला जाता है।

उदाहरण:

  • सल्फेट आयन को BaCl₂ से precipitate कर BaSO₄ के रूप में अलग करना और उसका वजन मापना।

उपयोगिता (Uses):

  • अत्यधिक शुद्धता की आवश्यकता वाले विश्लेषण में।
  • पदार्थों की निश्चित मात्रा जानने के लिए।
  • मानक नमूनों की तैयारी में।

Volumetric vs Gravimetric Analysis – तुलना सारणी:

विशेषताVolumetric AnalysisGravimetric Analysis
माप की इकाईआयतन (Volume)भार (Weight)
मुख्य विधिटाइट्रेशनअवक्षेपण व तौल
समयकम समय लगता हैअधिक समय लगता है
उपकरणब्यूरेट, पिपेट, फ्लास्क आदिफिल्टर पेपर, सूखाने की मशीन आदि
सटीकताअच्छी (पर इंडिकेटर पर निर्भर)अत्यधिक सटीक (लेकिन समयसाध्य)

निष्कर्ष (Conclusion):

  • Volumetric Analysis तेज और सरल है – दवाओं की मात्रा पता करने में उपयोगी।
  • Gravimetric Analysis ज्यादा सटीक है – लेकिन ज्यादा समय लगता है।
    दोनों का प्रयोग दवा की शुद्धता, मात्रा और गुणवत्ता जांचने में किया जाता है।

Volumetric analysis एक ऐसा तरीका है जिसमें हम किसी सॉल्यूशन (घोल) की मात्रा (volume) को मापकर उसमें मौजूद रसायनों की एकाग्रता (concentration) का पता लगाते हैं।
इस प्रक्रिया को Titration (टाइट्रेशन) कहते हैं।

Volumetric Analysis का उद्देश्य (Objective):

  • यह पता लगाना कि किसी दवा में एक्टिव इंग्रीडिएंट कितनी मात्रा में मौजूद है।
  • दवाओं की शुद्धता (purity) की जांच करना।
  • impurities की पहचान करना।

टाइट्रेशन कैसे काम करता है? (How titration works)

  1. एक घोल (जिसकी मात्रा मालूम नहीं होती) को टाइट्रेशन फ्लास्क में लिया जाता है – इसे Analyte कहते हैं।
  2. दूसरे घोल (जिसकी एकाग्रता ज्ञात होती है) को ब्यूरेट में भरकर धीरे-धीरे Analyte में मिलाया जाता है – इसे Titrant कहते हैं।
  3. जैसे ही दोनों पूरी तरह प्रतिक्रिया करते हैं, एक बिंदु आता है जिसे कहते हैं End Point (अंत बिंदु)। इस बिंदु पर रंग में बदलाव होता है (Indicator की मदद से)।
  4. जितनी मात्रा में टाइट्रेंट घोल की जरूरत पड़ी, उससे अनजाने घोल की एकाग्रता निकाली जाती है।

जरूरी शब्द (Important Terms):

शब्दमतलब
Analyteवह सॉल्यूशन जिसकी मात्रा या एकाग्रता पता करनी होती है
Titrantज्ञात एकाग्रता वाला सॉल्यूशन
Indicatorरंग बदलने वाला रसायन जो End Point दर्शाता है
End Pointवह स्थिति जब प्रतिक्रिया पूरी हो जाती है

Volumetric Analysis का फार्मेसी में महत्व:

  • दवाओं के एक्टिव इंग्रीडिएंट्स की मात्रा तय करने के लिए
  • फार्माकोपियल लिमिट्स के अनुसार दवा की जांच करने के लिए
  • impurities को खोजने के लिए

परिभाषा (Definition):

Acid-Base Titration एक ऐसी रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें किसी अम्ल (Acid) और क्षार (Base) को मिलाकर उनकी सांद्रता (Concentration) का पता लगाया जाता है।

  • यह एक Neutralization Reaction (उपचयन अभिक्रिया) पर आधारित होता है:
  • Acid+Base→Salt+Water

मुख्य उद्देश्य (Main Purpose):

  • यह जानना कि अज्ञात सांद्रता वाला acid या base किस मात्रा में मौजूद है।
  • फार्मास्यूटिकल, खाद्य पदार्थों और प्रयोगशालाओं में उपयोगी।

मुख्य घटक (Key Components):

घटकविवरण
Titrantजिसकी सांद्रता ज्ञात होती है (जैसे NaOH)
Analyteजिसकी सांद्रता पता करनी होती है (जैसे HCl)
Indicatorजो रंग बदलकर End Point बताता है
End Pointवह बिंदु जहाँ acid और base बराबर हो जाते हैं

Indicator क्या करता है?

  • Indicator रंग बदलकर बताता है कि प्रतिक्रिया पूरी हो गई है।
IndicatorAcid में रंगBase में रंग
PhenolphthaleinColorlessPink
Methyl OrangeRedYellow

प्रतिक्रिया:

उदाहरण (Example):

NaOH (Base) का प्रयोग करके HCl (Acid) की मात्रा का पता लगाना।

HCl+NaOH→NaCl+H2​O

सूत्र (Formula):

N1​×V1​=N2​×V2​

जहाँ,

  • N = Normality
  • V = Volume
  • 1 = Acid, 2 = Base (या उल्टा)

प्रक्रिया (Procedure):

  1. ब्यूरेट में NaOH (Titrant) भरें।
  2. फ्लास्क में HCl (Analyte) लें और Indicator मिलाएं।
  3. ब्यूरेट से NaOH को धीरे-धीरे गिराएं।
  4. जैसे ही रंग बदले (End Point), वहीं पर रुकें।
  5. ब्यूरेट से गिराई गई मात्रा को नोट करें।
  6. ऊपर दिए गए सूत्र से सांद्रता निकालें।

महत्व (Importance):

  • दवाओं में अम्लीय या क्षारीय घटकों की पहचान।
  • फार्मा इंडस्ट्री में गुणवत्ता नियंत्रण।
  • प्रयोगशालाओं में सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली तकनीक।

निष्कर्ष (Conclusion):

Acid-Base Titration एक सरल, तेज़ और सटीक तकनीक है जो किसी द्रव्य में अम्ल या क्षार की मात्रा पता करने में मदद करती है। यह शिक्षा, शोध और उद्योग सभी में महत्वपूर्ण है।

परिभाषा (Definition):

Non-Aqueous Titration वह टाइट्रेशन होता है जिसमें टाइट्रेशन के लिए पानी (Water) की जगह कोई अन्य विलायक (Solvent) प्रयोग किया जाता है।
क्यों? क्योंकि कुछ पदार्थ पानी में नहीं घुलते, या पानी में उनका व्यवहार अस्थिर होता है।

उदाहरण के लिए किन पदार्थों पर किया जाता है?

  • Weak Acids (कमज़ोर अम्ल)
  • Weak Bases (कमज़ोर क्षार)
    जैसे:
  • Aspirin
  • Benzocaine
  • Chlorpromazine आदि।

मुख्य कारण (Why Non-Aqueous?)

  • कुछ दवाएं पानी में घुलती नहीं हैं।
  • कुछ दवाएं पानी में अपघटित (Decompose) हो जाती हैं।
  • अधिक सटीक विश्लेषण के लिए।

Solvents (विलायक) जो इस्तेमाल होते हैं:

प्रकारउदाहरणउपयोग
प्रोटोनिक सॉल्वेंटGlacial Acetic AcidWeak base के लिए
एप्रोटोनिक सॉल्वेंटAcetone, DMSOWeak acid के लिए
Basic solventsAmmoniaWeak acid के लिए
Acidic solventsSulfuric acidWeak base के लिए

Common Titrants (उपयोग किए जाने वाले घोल):

  • Perchloric Acid (HClO₄) → Base determination के लिए
  • Sodium Methoxide (NaOCH₃) → Acid determination के लिए
  • Lithium Methoxide

Indicator (संकेतक):

Non-aqueous titration में विशेष indicators उपयोग होते हैं:

IndicatorUse
Crystal violetStrong acid in non-aqueous medium
Thymol blueWeak base
AzovioletWeak acid

सूत्र (Formula):

N1​×V1​=N2​×V2

जहाँ N = Normality, V = Volume

Procedure (प्रक्रिया):

  1. Sample को उपयुक्त non-aqueous solvent में घोलें।
  2. उस घोल में उचित indicator मिलाएं।
  3. ब्यूरेट में ज्ञात सांद्रता वाला non-aqueous titrant भरें।
  4. धीरे-धीरे टाइट्रेशन करें जब तक रंग न बदल जाए।
  5. End Point पर रुकें और प्रयुक्त वॉल्यूम नोट करें।
  6. मात्रा की गणना करें।

Importance (महत्व):

  • उन दवाओं के विश्लेषण में मदद करता है जो पानी में घुलती नहीं हैं।
  • ज्यादा सटीक परिणाम देता है।
  • फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में बहुत उपयोगी।

निष्कर्ष (Conclusion):

Non-Aqueous Titration एक उपयोगी तकनीक है जब विश्लेषित पदार्थ पानी में घुलता नहीं है या उसमें रिएक्शन ठीक से नहीं होता। यह विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल दवाओं के लिए बहुत जरूरी होता है।

Precipitation titration एक ऐसा volumetric analysis होता है जिसमें एक पदार्थ (analyte) को दूसरे पदार्थ (titrant) से मिलाकर precipitate (अवक्षेप) बनाया जाता है। इसका उद्देश्य उस समय को जानना होता है जब पूरा analyte प्रतिक्रिया कर चुका होता है और एक ठोस अवक्षेप बन जाता है।

Principle:

जब titrant और analyte मिलते हैं, तो उनका आपसी reaction एक ठोस अवक्षेप के रूप में बाहर निकलता है। जैसे ही पूरा analyte प्रतिक्रिया कर लेता है, endpoint आ जाता है, जिसे indicator या conductivity से पहचाना जाता है।

मुख्य उपयोग (Uses):

  • Halide ions जैसे Cl⁻, Br⁻, I⁻ का अनुमान लगाने के लिए।
  • सबसे ज़्यादा उपयोग किया जाता है Mohr’s Method, Volhard’s Method, और Fajans’ Method में।

कुछ सामान्य उदाहरण:

1. Mohr’s Method

  • Silver nitrate (AgNO₃) का उपयोग titrant के रूप में होता है।
  • Chloride ions (Cl⁻) की उपस्थिति में AgCl precipitate बनता है।
  • Indicator: Potassium chromate (K₂CrO₄), जो endpoint पर लाल रंग का Ag₂CrO₄ बनाता है।

2. Volhard’s Method

  • Indirect method है।
  • Silver nitrate और thiocyanate का प्रयोग होता है।
  • Indicator: Ferric ammonium sulfate।

3. Fajans’ Method

  • Adsorption indicator का प्रयोग होता है जैसे कि Eosin या Dichlorofluorescein।
  • Endpoint पर रंग परिवर्तन होता है।

निष्कर्ष (Conclusion):

Precipitation titration का उपयोग खासकर ऐसे ions के लिए होता है जो दूसरे ion के साथ मिलकर ठोस रूप (precipitate) में बदलते हैं। यह विधि सटीक और प्रभावी होती है, खासकर chloride जैसे simple anions के लिए।

Complexometric titration एक प्रकार की volumetric analysis है जिसमें complex formation reaction का उपयोग करके किसी धातु आयन (metal ion) की मात्रा का निर्धारण किया जाता है। इसमें एक reagent को use किया जाता है जो धातु आयनों से stable, water-soluble complex बनाता है।

Principle (सिद्धांत):

इस टाइट्रेशन का आधार होता है कि जब कोई metal ion किसी complexing agent से मिलता है, तो वो एक स्थायी (stable) और रंगहीन या रंगीन complex बनाता है।

सबसे सामान्य complexing agent है:
👉 EDTA (Ethylene Diamine Tetra Acetic Acid) – यह एक hexadentate ligand है, जो metal ions से मजबूत complex बनाता है।

Indicators (सूचक):

Complexometric titration में metal ion indicators प्रयोग किए जाते हैं जो endpoint पर रंग परिवर्तन दिखाते हैं।
उदाहरण:

  • Eriochrome Black T (Ca²⁺ और Mg²⁺ के लिए)
  • Murexide (Ca²⁺ के लिए)

Procedure का सारांश:

  1. Sample में metal ion की उपस्थिति होती है (जैसे Ca²⁺, Mg²⁺, Zn²⁺)
  2. EDTA को burette में लेकर drop by drop sample में मिलाया जाता है
  3. जैसे ही सभी metal ions EDTA से complex बना लेते हैं, indicator रंग बदल देता है – यही होता है endpoint

Applications (उपयोग):

  • Water hardness की जांच (Ca²⁺, Mg²⁺ ions)
  • Pharmaceutical preparations में metal ion content का विश्लेषण
  • खाद्य और पेय पदार्थों में trace metals की पहचान
  • Blood serum में calcium और magnesium की मात्रा का निर्धारण

Types of Complexometric Titration:

  1. Direct titration – Metal ion को सीधे EDTA से titrate किया जाता है।
  2. Back titration – जब direct titration संभव न हो। पहले known excess EDTA डाला जाता है, फिर बचा हुआ EDTA को किसी standard metal ion से titrate किया जाता है।
  3. Replacement titration – जब metal-EDTA complex directly stable न हो।
  4. Alkalimetric titration – pH में परिवर्तन द्वारा complex की पहचान।

Example Reaction:

Ca2+ + EDTA4− →[Ca-EDTA]2−

निष्कर्ष:

Complexometric titration खासकर उन परीक्षणों में उपयोगी है जहाँ metal ions की मात्रा का सटीक निर्धारण करना हो। EDTA इस विधि का सबसे मुख्य reagent है, और इसका उपयोग water analysis से लेकर दवाइयों तक में होता है।

Redox titration एक प्रकार की volumetric analysis है जिसमें दो पदार्थों के बीच oxidation और reduction की क्रिया होती है। इस टाइट्रेशन में एक reactant electron donate करता है (oxidation), और दूसरा electron accept करता है (reduction)।

Principle (सिद्धांत):

Redox titration उस सिद्धांत पर आधारित है जहाँ एक पदार्थ oxidized होता है और दूसरा reduced।

Oxidizing agent – जो खुद reduce होता है और दूसरे को oxidize करता है।
Reducing agent – जो खुद oxidize होता है और दूसरे को reduce करता है।

Common Redox Titrants:

Oxidizing AgentsReducing Agents
KMnO₄ (Potassium permanganate)Na₂S₂O₃ (Sodium thiosulphate)
K₂Cr₂O₇ (Potassium dichromate)FeSO₄ (Ferrous sulphate)
Iodine (I₂)Oxalic acid (C₂H₂O₄)

Indicators:

Redox titration में तीन तरह की indicators का प्रयोग किया जाता है:

  1. Self-indicator: जैसे KMnO₄ (जिसका खुद का रंग होता है, purple → colorless)
  2. External indicator: जैसे Potassium ferricyanide
  3. Internal indicator: जैसे starch (iodometry में उपयोग किया जाता है)

Types of Redox Titrations:

  1. Permanganometry – KMnO₄ is used as oxidizing agent
    👉 Example: Fe²⁺ vs KMnO₄
    5Fe2+ +MnO4−​ + 8H+→5Fe3+ +Mn2+ +4H2​O
  2. Dichrometry – K₂Cr₂O₇ as oxidizing agent
    👉 Example: Fe²⁺ vs K₂Cr₂O₇
  3. Iodometry/Iodimetry
    • Iodimetry: Direct titration using iodine as oxidant
    • Iodometry: Iodine liberated during reaction is titrated with Na₂S₂O₃
      👉 Example: Cu²⁺ + KI → I₂ (liberated), then titrate with thiosulfate.

Applications:

  • Pharmaceuticals में antioxidants या oxidizing agents की मात्रा पता करना
  • Water में chlorine या dissolved oxygen की मात्रा का परीक्षण
  • Bleaching agents, disinfectants, और oxidizing/reducing substances की quality control
  • Iron, copper, और अन्य transition metals का विश्लेषण

निष्कर्ष:

Redox titration में electron transfer reactions के आधार पर किसी भी घटक की मात्रा को सटीक रूप से मापा जाता है। यह analytical chemistry का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Gravimetric analysis एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी तत्व या यौगिक की मात्रा को वजन (Weight) के माध्यम से निकाला जाता है।
इसमें किसी पदार्थ को एक ठोस रूप (precipitate) में बदलकर उसका भार तौला जाता है, और फिर उसी से उसकी मात्रा (amount) निकाली जाती है।

Principle (सिद्धांत):

Gravimetric analysis का मुख्य सिद्धांत है: (2.Volumetric and Gravimetric Analysis)

“किसी अज्ञात पदार्थ को एक शुद्ध, स्थिर और ज्ञात संरचना वाले ठोस में परिवर्तित करके उसका वजन मापा जाता है।”

  • यानि हम किसी तत्व को एक रासायनिक प्रतिक्रिया के जरिए precipitate बनाकर छानते हैं, सुखाते हैं और फिर उसका weight निकालते हैं।
  • उसी weight से हम original substance की मात्रा निकालते हैं।

Steps of Gravimetric Analysis (Method):

1. Precipitation (अवक्षेपण):

Analyte को एक उपयुक्त रसायन से मिलाया जाता है ताकि वह ठोस precipitate के रूप में निकल आए।

2. Filtration (निस्पंदन):

बने हुए precipitate को filter करके अलग किया जाता है।

3. Washing (धोना):

Precipitate को अशुद्धियों से मुक्त करने के लिए पानी से धोया जाता है।

4. Drying/Ignition (सुखाना या ताप देना):

अब precipitate को सुखाया या गरम करके उसका final weight निकाला जाता है।

5. Weighing (तौलना):

शुद्ध, सूखे precipitate को तौलते हैं और फिर stoichiometric calculation से analyte की मात्रा निकालते हैं।

Example:

यदि हमें किसी सॉल्यूशन में बेरियम (Ba²⁺) आयन की मात्रा निकालनी है:

  • बेरियम को सल्फेट आयन (SO₄²⁻) से मिलाकर Barium Sulfate (BaSO₄) का precipitate बनाया जाएगा।
  • इस precipitate को छाना, सुखाया और तौला जाएगा।
  • फिर BaSO₄ के weight से बेरियम की मात्रा निकाली जाएगी।

Pharmacy में इसका उपयोग:

  • दवाओं में मौजूद तत्वों की सटीक मात्रा जानने के लिए।
  • विश्लेषण में उच्च सटीकता की आवश्यकता होने पर।
  • फार्माकोपिया में दिए गए tests में (जैसे chloride, sulfate, heavy metals की पहचान)।

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