परिचय
कान का मैल(Ear Wax) कान से स्रवित होने वाला एक सामान्य पदार्थ है जो कान में संक्रमण रोकने में मदद करता है। यह स्वतः ही सूखा रहता है और कान से बाहर निकलता है। कभी-कभी यह कठोर होकर कर्णनली में पदार्थ उसी पर जम कर नली को अवरुद्ध कर सकता है। जब ऐसा होता है तो व्यक्ति कम सुनने, कान में खर-खराहट अथवा कान भरे होने की शिकायत करता है। कान का मैल (Ear Wax) एक प्राकृतिक सुरक्षा परत है जो कान को धूल, बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक तत्वों से बचाती है। सामान्य मात्रा में यह हानिकारक नहीं होता, बल्कि कान की सेहत के लिए ज़रूरी है। लेकिन जब यह(Ear Wax) अत्यधिक मात्रा में जम जाता है या कठोर हो जाता है, तब यह सुनने में समस्या, कान बंद होना, दर्द, खुजली और इंफेक्शन जैसी परेशानियाँ पैदा कर सकता है। सही समय पर सफाई और उपचार कान को सुरक्षित और स्वस्थ बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है
रोग(Ear Wax) के कारण
ग्रन्थियों द्वारा अत्यन्त ज्यादा स्राव जो स्थानीय क्षोभ के कारण होता है(Ear Wax)-
1. नलिका की दीवार का अधिक विशल्कन होना।
2. तैलीय स्राव का कम निकलना। 3. बाह्य श्रवण नाल का संकीर्ण होना ।
4. धूल मिट्टी वाले वातावरण में काम करना।
5. शुष्क गर्म वातावरण।
6. नहाते समय कान में साबुन के बुलबुले चले जाते हैं जो आगे चलकर कान के मैल के रूप में परिणित हो जाते हैं।
7. जिन लोगों को सर्दी-जुकाम या नजला रहता है, उनके कानों में मैल अवश्य जमती है। सर्दी का मल कानों में जाकर जम जाता है जो बाद में मैल के रूप में नजर आता है।
रोग(Ear Wax) के लक्षण
कान के मैल के कारण श्रवण नाल पूरी तरह से बन्द हो जाती है। कभी-कभी पानी चले जाने से मैल (Wax) फूल जाता है जिससे श्रवण नाल पूर्णरूपेण बंद हो जाती है, ऐसे में रोगी को सुनाई नहीं देता है। कान में खुजली, भारीपन व कुछ फँसा हुआ जैसा प्रतीत होता है। कान दर्द होता है। यदि मैल कान के पर्दे के साथ चिपक जाये तो कान के अन्दर आवाज आती है व चक्कर आता है। रोगी आंशिक रूप से बहरा हो जाता है। रोगी खाते-पीते समय दर्द का अनुभव करता है। कान में सुरसुराहट तथा खुजलाहट एक आम शिकायत होती है। रोगी कान भरा-भरा सा अनुभव करता है। देखने पर भूरे रंग का वैक्स नाल में दिखायी देता है।
कड़ी मैल के कारण कान में खुजली, दर्द या कान की छूत (संक्रमण) की शिकायत हो सकती है।
Note
कान के मैल का एक विशिष्ट कारण प्रदूषण भी है। वायु में मौजदू प्रदूषण अर्थात् गंदगी श्वास से फेफड़ों में तो जाती ही है, साथ ही यह जिस प्रकार शरीर की त्वचा पर जम जाती है। ठीक उसी प्रकार यह गंदगी हवा के माध्यम से कानों में जाकर क्रमशः जमती चली जाती है जो बाद में मैल के रूप में नजर आती है।
कान का मैल अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि शरीर की एक प्राकृतिक रक्षा प्रणाली है। समस्या तब होती है जब यह अधिक मात्रा में जमा होकर कान के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है। लोग अक्सर कॉटन बड्स या नुकीली चीज़ों से कान साफ करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसा करने से मैल और अंदर चला जाता है या ईयरड्रम को नुकसान पहुँच सकता है।
सही तरीका है कि ज़रूरत पड़ने पर ENT विशेषज्ञ से कान की सफाई कराई जाए। डॉक्टर ईयर ड्रॉप्स, सिरिंजिंग या माइक्रो सक्शन जैसी तकनीकों से सुरक्षित रूप से कान का मैल निकालते हैं। घरेलू उपाय जैसे गुनगुना जैतून तेल, नारियल तेल या ग्लिसरीन की कुछ बूंदें मैल को मुलायम कर सकती हैं, लेकिन इन्हें भी डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं अपनाना चाहिए।
👉 याद रखें, “कान में मैल होना सामान्य है, लेकिन इसकी अधिकता को नज़रअंदाज़ करना खतरनाक हो सकता है।”
समय पर देखभाल, नियमित स्वच्छता और चिकित्सकीय परामर्श से ही कान की सेहत को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।