Unit 3: Chemical Bonding and Molecular Structure

Ionic & Covalent Bond

रासायनिक बंध (Chemical Bond) वह बल है, जो परमाणुओं को आपस में जोड़कर अणु (Molecule) या यौगिक (Compound) बनाता है। मुख्य रूप से दो प्रकार के रासायनिक बंध होते हैं:

  1. आयनिक बंध (Ionic Bond)
  2. सहसंयोजी बंध (Covalent Bond)

इन दोनों बंधों को विस्तार से समझते हैं।


1. आयनिक बंध (Ionic Bond)

परिचय

आयनिक बंध को विद्युतयुग्मन बंध (Electrovalent Bond) भी कहा जाता है। यह बंध धातु (Metal) और अधातु (Non-metal) के बीच बनता है, जहाँ धातु इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन (Cation) और अधातु इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन (Anion) बनाता है। इन विपरीत आवेशित आयनों के बीच उत्पन्न विद्युत स्थैतिक आकर्षण बल (Electrostatic Force of Attraction) को आयनिक बंध कहा जाता है।

आयनिक बंध बनने की प्रक्रिया

  1. धातु का इलेक्ट्रॉन त्यागना (Metal Donates Electron)
    • धातु परमाणु अपनी संयोजक कक्षा (Valence Shell) के 1, 2 या 3 इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन (Cation) बन जाते हैं।
    • उदाहरण: Na→Na++e−Na \rightarrow Na^+ + e^-Na→Na++e− (सोडियम एक इलेक्ट्रॉन छोड़कर Na⁺ बनाता है)
  2. अधातु का इलेक्ट्रॉन ग्रहण करना (Non-metal Gains Electron)
    • अधातु परमाणु 5, 6 या 7 इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन (Anion) बन जाते हैं।
    • उदाहरण: Cl+e−→Cl−Cl + e^- \rightarrow Cl^-Cl+e−→Cl− (क्लोरीन एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर Cl⁻ बनाता है)
  3. विद्युत स्थैतिक आकर्षण (Electrostatic Attraction)
    • विपरीत आवेशित आयनों के बीच आकर्षण बल उत्पन्न होता है, जिससे आयनिक बंध बनता है।
    • उदाहरण: Na++Cl−→NaClNa^+ + Cl^- \rightarrow NaClNa++Cl−→NaCl (NaCl में आयनिक बंध बनता है)

आयनिक यौगिकों के गुणधर्म (Properties of Ionic Compounds)

गुणविशेषता
1. उच्च गलनांक और क्वथनांकआयनों के बीच मजबूत आकर्षण बल के कारण इनका गलनांक और क्वथनांक अधिक होता है। (जैसे – NaCl का गलनांक 801°C और क्वथनांक 1413°C है)।
2. घुलनशीलताये ध्रुवीय विलायकों (Polar Solvents) जैसे जल (H₂O) में घुलनशील होते हैं।
3. विद्युत चालकताठोस अवस्था में ये विद्युत का चालन नहीं करते, लेकिन पिघले हुए या जल विलयन में आयनों में टूटकर विद्युत का चालन करते हैं।
4. कठोरता और भंगुरताये ठोस और कठोर होते हैं, लेकिन झटके से टूट सकते हैं।
5. क्रिस्टलीय संरचनाये एक नियमित क्रिस्टलीय संरचना (Crystal Lattice) बनाते हैं।

महत्वपूर्ण उदाहरण (Important Examples)

यौगिकधातुअधातु
NaClNa⁺ (सोडियम)Cl⁻ (क्लोरीन)
KBrK⁺ (पोटैशियम)Br⁻ (ब्रोमीन)
MgOMg²⁺ (मैग्नीशियम)O²⁻ (ऑक्सीजन)
CaF₂Ca²⁺ (कैल्शियम)F⁻ (फ्लोरीन)

2. सहसंयोजी बंध (Covalent Bond)

परिचय

सहसंयोजी बंध को सहसंयोजी युग्मन बंध (Molecular Bond) भी कहा जाता है। यह बंध दो या अधिक अधातु (Non-metals) के बीच बनता है, जहाँ परमाणु अपने संयोजक इलेक्ट्रॉनों को साझा (Sharing of Electrons) करके स्थिरता प्राप्त करते हैं।

सहसंयोजी बंध बनने की प्रक्रिया

  • जब दो अधातु परमाणु अपने संयोजक इलेक्ट्रॉनों को साझा करते हैं, तो उनके बीच सहसंयोजी बंध बनता है।
  • उदाहरण: H+H→H2H + H \rightarrow H_2H+H→H2​ (हाइड्रोजन परमाणु अपने एक-एक इलेक्ट्रॉन को साझा करके H₂ अणु बनाते हैं)

सहसंयोजी बंध के प्रकार (Types of Covalent Bond)

प्रकारइलेक्ट्रॉन साझा करने की संख्याउदाहरण
1. एकल सहसंयोजी बंध (Single Covalent Bond)1 युग्म इलेक्ट्रॉन साझाH₂, Cl₂, CH₄
2. द्वि-आधारीय सहसंयोजी बंध (Double Covalent Bond)2 युग्म इलेक्ट्रॉन साझाO₂, CO₂
3. त्रि-आधारीय सहसंयोजी बंध (Triple Covalent Bond)3 युग्म इलेक्ट्रॉन साझाN₂, C₂H₂

सहसंयोजी यौगिकों के गुणधर्म (Properties of Covalent Compounds)

गुणविशेषता
1. कम गलनांक और क्वथनांकइनमें अणुओं के बीच कमजोर वान-डर-वाल्स बल होते हैं, जिससे इनका गलनांक और क्वथनांक कम होता है।
2. विद्युत चालकतासहसंयोजी यौगिक सामान्यतः विद्युत का चालन नहीं करते, क्योंकि इनमें मुक्त आयन नहीं होते।
3. जल में घुलनशीलताअधिकांश सहसंयोजी यौगिक जल में अघुलनशील होते हैं, लेकिन कार्बनिक विलायकों (Organic Solvents) में घुलनशील होते हैं।
4. मृदुताये ठोस अवस्था में नरम होते हैं, क्योंकि इनमें क्रिस्टल संरचना नहीं होती।

महत्वपूर्ण उदाहरण (Important Examples)

यौगिकबंध
H₂H-H (एकल बंध)
O₂O=O (द्वि-बंध)
N₂N≡N (त्रि-बंध)
CH₄C-H (एकल बंध)
CO₂C=O (द्वि-बंध)

3. आयनिक और सहसंयोजी बंध में अंतर (Difference Between Ionic & Covalent Bond)

विशेषताआयनिक बंधसहसंयोजी बंध
बंधन का प्रकारइलेक्ट्रॉन दान-ग्रहण से बनता हैइलेक्ट्रॉन साझा करने से बनता है
संयुक्त तत्वधातु + अधातुअधातु + अधातु
घुलनशीलताजल में घुलनशीलजल में कम घुलनशील
विद्युत चालकताविलयन अवस्था में चालकचालक नहीं होता
बल का प्रकारविद्युत स्थैतिक आकर्षणसहसंयोजी बल

निष्कर्ष (Conclusion)

आयनिक और सहसंयोजी बंध रासायनिक बंधों के दो प्रमुख प्रकार हैं। आयनिक बंध धातु और अधातु के बीच बनता है, जबकि सहसंयोजी बंध केवल अधातुओं के बीच बनता है। इन दोनों अवधारणाओं को NEET परीक्षा में अच्छे से समझना आवश्यक है।

यहाँ NEET परीक्षा के दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर जोड़े गए हैं:

1. आयनिक बंध की परिभाषा दीजिए।

उत्तर: आयनिक बंध (Ionic Bond) वह रासायनिक बंधन है, जो धातु द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने और अधातु द्वारा उसे ग्रहण करने से बनता है। इस प्रक्रिया में बने धनायन (Cation) और ऋणायन (Anion) के बीच विद्युत स्थैतिक आकर्षण (Electrostatic Force) कार्य करता है।


2. आयनिक बंध किन तत्वों के बीच बनता है?

उत्तर: आयनिक बंध मुख्य रूप से निम्नलिखित तत्वों के बीच बनता है:

  • धातु (Metal): जिनमें कम आयनीकरण ऊर्जा होती है, जैसे – Na, K, Mg, Ca
  • अधातु (Non-metal): जिनकी इलेक्ट्रॉन ग्रहण प्रवृत्ति अधिक होती है, जैसे – Cl, O, F, S

उदाहरण:
Na+Cl→Na++Cl−→NaClNa + Cl → Na^+ + Cl^- → NaClNa+Cl→Na++Cl−→NaCl


3. कौन-सा यौगिक सबसे अधिक स्थिर होगा – NaCl, MgO, KBr?

उत्तर: MgO (मैग्नीशियम ऑक्साइड) सबसे अधिक स्थिर होगा, क्योंकि:

  • इसमें Mg²⁺ और O²⁻ आयन होते हैं, जिनमें उच्च आवेश होता है।
  • उच्च आवेश के कारण लैटिस ऊर्जा (Lattice Energy) सबसे अधिक होती है, जिससे स्थिरता बढ़ती है।

स्थिरता क्रम:
MgO > NaCl > KBr


4. आयनिक यौगिकों की विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:

गुणधर्मविशेषता
गलनांक और क्वथनांकआयनिक यौगिकों का गलनांक और क्वथनांक अधिक होता है। (जैसे – NaCl का गलनांक 801°C और क्वथनांक 1413°C है)
घुलनशीलताआयनिक यौगिक ध्रुवीय विलायकों (Polar Solvents) जैसे जल (H₂O) में घुलनशील होते हैं।
विद्युत चालकताठोस अवस्था में ये विद्युत का चालन नहीं करते, लेकिन जलीय विलयन में आयनों में टूटकर विद्युत का चालन करते हैं।
कठोरता और भंगुरताये ठोस होते हैं, लेकिन झटके से टूट सकते हैं।
क्रिस्टलीय संरचनाये एक नियमित जाली जैसी क्रिस्टलीय संरचना (Crystal Lattice) बनाते हैं।

5. आयनिक बंध बनने की अनुकूलता किन कारकों पर निर्भर करती है?

उत्तर:

  • धातु में कम आयनीकरण ऊर्जा (Low Ionization Energy) – ताकि वह आसानी से इलेक्ट्रॉन त्याग सके।
  • अधातु में अधिक इलेक्ट्रॉन संवेदिता (High Electron Affinity) – जिससे वह इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर सके।
  • आयनों के आकार में बड़ा अंतर (Large Size Difference) – जिससे स्थिरता बढ़ती है।
  • लैटिस ऊर्जा (Lattice Energy) अधिक हो – ताकि यौगिक अधिक स्थिर हो।

6. आयनिक और सहसंयोजी (Covalent) बंध में अंतर बताइए।

विशेषताआयनिक बंधसहसंयोजी बंध
बंध बनने का तरीकाइलेक्ट्रॉन का स्थानांतरण (Electron Transfer)इलेक्ट्रॉन का साझाकरण (Electron Sharing)
संयुक्त तत्वधातु + अधातुअधातु + अधातु
घुलनशीलताजल में घुलनशीलजल में कम घुलनशील
विद्युत चालकताजलीय विलयन में विद्युत चालकसामान्यत: चालक नहीं होता
बल का प्रकारविद्युत स्थैतिक आकर्षण बलसहसंयोजी बल

उदाहरण:

  • आयनिक यौगिक: NaCl, KBr, MgO
  • सहसंयोजी यौगिक: H₂O, CH₄, O₂

7. NEET में पूछे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न:

  1. आयनिक यौगिक किस प्रकार के तत्वों के बीच बनते हैं?
    उत्तर: आयनिक यौगिक धातु और अधातु के बीच बनते हैं, जहाँ धातु इलेक्ट्रॉन खोकर धनायन (cation) बनाते हैं और अधातु इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन (anion) बनाते हैं।
  2. आयनिक बंध की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
    उत्तर:
    • उच्च गलनांक और क्वथनांक
    • ठोस अवस्था में विद्युत का चालन नहीं करते, लेकिन द्रव अवस्था में या जलीय विलयन में करते हैं
    • भंगुर होते हैं और क्रिस्टलीय संरचना रखते हैं
  3. कौन-सा यौगिक अधिक स्थिर होगा: NaCl या MgO? और क्यों?
    उत्तर: MgO अधिक स्थिर होगा क्योंकि Mg²⁺ और O²⁻ आयनों की आवेश मात्रा अधिक है, जिससे लैटिस ऊर्जा अधिक होगी।
  4. लैटिस ऊर्जा किस पर निर्भर करती है?
    उत्तर:
    • आयनों के आवेश पर (अधिक आवेश → अधिक लैटिस ऊर्जा)
    • आयनों के आकार पर (छोटे आयन → अधिक लैटिस ऊर्जा)
  5. आयनिक यौगिक जल में घुलनशील क्यों होते हैं?
    उत्तर: जल एक ध्रुवीय विलायक है, जो आयनिक यौगिकों के धनायन और ऋणायन को हाइड्रेट करके घेर लेता है, जिससे वे घुल जाते हैं।
  6. NaCl और KCl में से किसका गलनांक अधिक होगा और क्यों?
    उत्तर: NaCl का गलनांक अधिक होगा क्योंकि Na⁺ आयन छोटा होता है और K⁺ से अधिक आकर्षण बल उत्पन्न करता है, जिससे अधिक लैटिस ऊर्जा होती है।
  7. आयनिक यौगिक ठोस अवस्था में विद्युत का चालन क्यों नहीं करते?
    उत्तर: ठोस अवस्था में आयन अपनी जगह स्थिर रहते हैं, जिससे वे विद्युत धारा का वहन नहीं कर सकते। लेकिन जब वे पिघलते हैं या जल में घुलते हैं, तो मुक्त आयन विद्युत चालन में सहायक होते हैं।
  8. NaCl, MgO और KBr में से कौन-सा सबसे अधिक विद्युत चालक होगा?
    उत्तर: जलीय विलयन में सभी विद्युत चालक होते हैं, लेकिन MgO की लैटिस ऊर्जा अधिक होने के कारण इसका घुलनशीलता कम होगी, जबकि KBr की घुलनशीलता अधिक होगी।
  9. धातु और अधातु की इलेक्ट्रॉनिक संरचना आयनिक बंध बनाने में कैसे सहायक होती है?
    उत्तर: धातुओं में 1, 2 या 3 इलेक्ट्रॉन बाह्य कक्षा में होते हैं, जिन्हें वे आसानी से छोड़ सकते हैं, जबकि अधातु 5, 6 या 7 इलेक्ट्रॉनों से युक्त होते हैं, जो आसानी से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर सकते हैं। इससे धनायन और ऋणायन बनते हैं, जो आयनिक बंध बनाते हैं।
  10. किसी आयनिक यौगिक की घुलनशीलता किन कारकों पर निर्भर करती है?
    उत्तर
  • लैटिस ऊर्जा (कम लैटिस ऊर्जा → अधिक घुलनशीलता)
  • हाइड्रेशन ऊर्जा (अधिक हाइड्रेशन ऊर्जा → अधिक घुलनशीलता)
  • विलायक का ध्रुवीय स्वभाव

VSEPR सिद्धांत (Valence Shell Electron Pair Repulsion Theory)

VSEPR सिद्धांत का पूरा नाम Valence Shell Electron Pair Repulsion Theory है, जिसे संयोजी कवच इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धांत कहा जाता है।

परिभाषा:
VSEPR सिद्धांत के अनुसार, किसी अणु के केंद्रक परमाणु के चारों ओर उपस्थित बंधन युग्म (Bond Pairs) और अकेले युग्म (Lone Pairs) एक-दूसरे से अधिकतम दूरी पर स्थित होते हैं ताकि प्रतिकर्षण न्यूनतम हो और अणु अधिक स्थिर हो।


VSEPR सिद्धांत के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण – बंधन युग्म (Bond Pair) और अकेले युग्म (Lone Pair) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
  2. Lone Pair > Bond Pair Repulsion – अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म का प्रतिकर्षण बंधन युग्म से अधिक होता है।
  3. अणु की आकृति (Shape) इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या पर निर्भर करती है।
  4. Bond Angles – अणु के आकार को बनाए रखने के लिए कोण नियत होते हैं।

VSEPR सिद्धांत के आधार पर विभिन्न अणुओं की आकृतियाँ

केंद्रक परमाणु के चारों ओर इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्याबन्धन युग्म (BP)अकेले युग्म (LP)आकृति (Geometry)उदाहरणबन्धन कोण (Bond Angle)
220रेखीय (Linear)BeCl₂, CO₂180°
330त्रिकोणीय समतलीय (Trigonal Planar)BF₃, NO₃⁻120°
321कोणीय (Bent)SO₂<120°
440चतुर्भुजीय (Tetrahedral)CH₄, NH₄⁺109.5°
431त्रिज्यामितीय पिरामिडल (Trigonal Pyramidal)NH₃, PCl₃<109.5°
422कोणीय (Bent)H₂O, OF₂<104.5°
550त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय (Trigonal Bipyramidal)PCl₅90°, 120°
541समुद्री आरी (See-Saw)SF₄<90°, <120°
532T-आकार (T-Shaped)ClF₃<90°
660अष्टाभुजीय (Octahedral)SF₆90°
651वर्गीय पिरामिडल (Square Pyramidal)BrF₅<90°
642वर्गीय समतलीय (Square Planar)XeF₄90°

VSEPR सिद्धांत से जुड़े NEET के महत्वपूर्ण प्रश्न

1. VSEPR सिद्धांत क्या है?

उत्तर: यह सिद्धांत बताता है कि अणु के केंद्रक परमाणु के चारों ओर स्थित बंधन युग्म और अकेले युग्म एक-दूसरे से अधिकतम दूरी बनाए रखते हैं ताकि प्रतिकर्षण न्यूनतम और स्थिरता अधिक हो।


2. कौन-सा यौगिक त्रिज्यामितीय पिरामिडल आकृति बनाता है?

उत्तर: NH₃ (Ammonia) त्रिज्यामितीय पिरामिडल आकृति बनाता है। इसमें 3 बंधन युग्म और 1 अकेला युग्म होता है, जिससे इसकी आकृति विकृत हो जाती है।


3. H₂O और CO₂ की आकृति में क्या अंतर है?

मॉलेक्यूलकेंद्रक परमाणु के चारों ओर युग्मों की संख्याआकृतिबंध कोण
H₂O2 Bond Pairs, 2 Lone Pairsकोणीय (Bent)104.5°
CO₂2 Bond Pairs, 0 Lone Pairsरेखीय (Linear)180°

H₂O में Lone Pair के कारण बंध कोण घटकर 104.5° हो जाता है, जबकि CO₂ पूरी तरह रेखीय होता है।


4. कौन-से यौगिक चतुर्भुजीय (Tetrahedral) आकृति प्रदर्शित करते हैं?

उत्तर: CH₄, NH₄⁺, और CCl₄ जैसे यौगिक चतुर्भुजीय आकृति बनाते हैं क्योंकि इनका केंद्रक परमाणु चार बंधन युग्म से जुड़ा होता है।


5. क्यों SF₄ की आकृति See-Saw होती है?

उत्तर:

  • SF₄ में 5 इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं (4 Bond Pairs + 1 Lone Pair)
  • एक Lone Pair के कारण आकृति विकृत हो जाती है और इसे See-Saw आकृति प्राप्त होती है।

6. NH₃ और NF₃ में किसका बंध कोण अधिक होगा और क्यों?

उत्तर: NH₃ (107.3°) का बंध कोण NF₃ (102.3°) से अधिक होता है।
कारण:

  • NH₃ में N-H बंध अधिक ध्रुवीय होते हैं और बंध जोड़े को केंद्रक N की ओर खींचते हैं, जिससे Lone Pair का प्रभाव कम होता है और बंध कोण बढ़ जाता है।
  • NF₃ में N-F बंध कम ध्रुवीय होते हैं, जिससे Lone Pair अधिक प्रभावी होता है और बंध कोण कम हो जाता है।

7. XeF₄ की आकृति क्या होती है?

उत्तर: वर्गीय समतलीय (Square Planar)

  • इसमें 4 Bond Pairs और 2 Lone Pairs होते हैं।
  • Lone Pairs सममित रूप से ऊपर और नीचे स्थित होते हैं, जिससे अणु समतलीय हो जाता है।

8. किस अणु में T-आकार (T-Shaped) आकृति होती है?

उत्तर: ClF₃ में T-आकार होता है। इसमें 3 Bond Pairs और 2 Lone Pairs होते हैं।


निष्कर्ष (Conclusion)

VSEPR सिद्धांत अणुओं की आकृति का निर्धारण करने में बहुत उपयोगी है। यह बताता है कि बंधन युग्म और अकेले युग्म एक-दूसरे से अधिकतम दूरी बनाते हैं ताकि प्रतिकर्षण न्यूनतम हो और अणु अधिक स्थिर हो। NEET परीक्षा में इस सिद्धांत से जुड़े प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, इसलिए इसे अच्छे से समझना महत्वपूर्ण है।

VSEPR सिद्धांत से जुड़े NEET परिप्रेक्ष्य प्रश्नोत्तर

1. VSEPR सिद्धांत किस पर आधारित है?

उत्तर: VSEPR सिद्धांत इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण पर आधारित है, जो कहता है कि केंद्रक परमाणु के चारों ओर मौजूद बंधन युग्म (Bond Pair) और अकेले युग्म (Lone Pair) एक-दूसरे से अधिकतम दूरी बनाए रखते हैं ताकि प्रतिकर्षण न्यूनतम और अणु अधिक स्थिर हो।


2. H₂O और NH₃ के बंध कोण में अंतर क्यों होता है?

उत्तर:

  • H₂O (104.5°) में दो Lone Pairs होते हैं, जो अधिक प्रतिकर्षण उत्पन्न करते हैं, जिससे H-O-H बंध कोण घट जाता है।
  • NH₃ (107.3°) में केवल एक Lone Pair होता है, जिससे प्रतिकर्षण कम होता है और बंध कोण बड़ा होता है।

3. कौन-से यौगिक चतुर्भुजीय (Tetrahedral) आकृति प्रदर्शित करते हैं?

उत्तर: CH₄, NH₄⁺, और CCl₄ जैसे यौगिक चतुर्भुजीय आकृति बनाते हैं क्योंकि इनका केंद्रक परमाणु चार बंधन युग्म से जुड़ा होता है और Lone Pair अनुपस्थित होते हैं।


4. क्यों SF₄ की आकृति See-Saw होती है?

उत्तर:

  • SF₄ में 5 इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं (4 Bond Pairs + 1 Lone Pair)
  • एक Lone Pair के कारण आकृति विकृत हो जाती है और इसे See-Saw आकृति प्राप्त होती है।

5. NH₃ और NF₃ में किसका बंध कोण अधिक होगा और क्यों?

उत्तर: NH₃ (107.3°) का बंध कोण NF₃ (102.3°) से अधिक होता है।
कारण:

  • NH₃ में N-H बंध अधिक ध्रुवीय होते हैं और बंध जोड़े को केंद्रक N की ओर खींचते हैं, जिससे Lone Pair का प्रभाव कम होता है और बंध कोण बढ़ जाता है।
  • NF₃ में N-F बंध कम ध्रुवीय होते हैं, जिससे Lone Pair अधिक प्रभावी होता है और बंध कोण कम हो जाता है।

6. XeF₄ की आकृति क्या होती है और क्यों?

उत्तर: XeF₄ वर्गीय समतलीय (Square Planar) आकृति बनाता है।

  • इसमें 4 Bond Pairs और 2 Lone Pairs होते हैं।
  • Lone Pairs सममित रूप से ऊपर और नीचे स्थित होते हैं, जिससे अणु समतलीय हो जाता है।

7. कौन-सा यौगिक T-आकार (T-Shaped) आकृति प्रदर्शित करता है?

उत्तर: ClF₃ T-आकार प्रदर्शित करता है क्योंकि इसमें 3 Bond Pairs और 2 Lone Pairs होते हैं।


8. VSEPR सिद्धांत के अनुसार, CH₄, NH₃, और H₂O के बंध कोण अलग-अलग क्यों होते हैं?

उत्तर:

  • CH₄ (109.5°) में कोई Lone Pair नहीं होता, जिससे यह सही Tetrahedral होता है।
  • NH₃ (107.3°) में एक Lone Pair होता है, जो बंध युग्मों को थोड़ा पास लाकर बंध कोण घटा देता है।
  • H₂O (104.5°) में दो Lone Pairs होते हैं, जो अधिक प्रतिकर्षण उत्पन्न करते हैं और बंध कोण और कम कर देते हैं।

9. कौन-से अणु त्रिज्यामितीय द्विपिरामिडीय (Trigonal Bipyramidal) आकृति बनाते हैं?

उत्तर: PCl₅ और PF₅ त्रिज्यामितीय द्विपिरामिडीय आकृति बनाते हैं क्योंकि इनका केंद्रक परमाणु 5 Bond Pairs से जुड़ा होता है और कोई Lone Pair नहीं होता।


10. क्यों Lone Pairs बंधन युग्मों से अधिक प्रतिकर्षण उत्पन्न करते हैं?

उत्तर:

  • Lone Pairs अधिक स्थान घेरते हैं और अधिक प्रतिकर्षण उत्पन्न करते हैं क्योंकि वे केवल एक ही परमाणु से जुड़े होते हैं।
  • बंधन युग्म दो परमाणुओं के बीच वितरित होते हैं, जिससे उनका प्रतिकर्षण अपेक्षाकृत कम होता है।

11. कौन-सा यौगिक सबसे अधिक स्थिर होगा – NH₃, H₂O या BF₃?

उत्तर: BF₃ सबसे अधिक स्थिर होगा, क्योंकि यह Trigonal Planar आकृति अपनाता है और इसमें कोई Lone Pair नहीं होता, जिससे कोई विकृति नहीं होती।


12. ClF₃ में Lone Pairs कहाँ स्थित होते हैं?

उत्तर: ClF₃ में 2 Lone Pairs केंद्रक परमाणु (Cl) के Equatorial Positions पर स्थित होते हैं, जिससे अणु T-आकार ग्रहण करता है।


13. NH₃ और PH₃ की आकृति समान क्यों होती है लेकिन NH₃ अधिक स्थिर क्यों है?

उत्तर:

  • NH₃ और PH₃ दोनों त्रिज्यामितीय पिरामिडल (Trigonal Pyramidal) आकृति बनाते हैं।
  • लेकिन NH₃ अधिक स्थिर होता है क्योंकि नाइट्रोजन का इलेक्ट्रोनगेटिविटी अधिक होती है और यह मजबूत H-बॉन्डिंग करता है, जबकि PH₃ कमजोर H-बॉन्डिंग करता है।

14. VSEPR सिद्धांत के अनुसार कौन-सा यौगिक पूर्णतः रेखीय (Linear) होगा?

उत्तर: CO₂ और BeCl₂ पूर्णतः रेखीय (Linear) होंगे, क्योंकि इनमें कोई Lone Pair नहीं होता और बंधन कोण 180° होता है।


15. कौन-सा यौगिक सबसे अधिक विद्युत चालक होगा – NH₃, H₂O, या CO₂?

उत्तर: H₂O सबसे अधिक विद्युत चालक होगा, क्योंकि यह ध्रुवीय अणु है और आयनों को अच्छी तरह घोलता है, जिससे विद्युत चालकता बढ़ती है।


निष्कर्ष

VSEPR सिद्धांत NEET परीक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह अणु की आकृति, बंध कोण, और स्थिरता को समझने में मदद करता है। परीक्षा में इस टॉपिक से जुड़े प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं, इसलिए इसे अच्छे से तैयार करना जरूरी है।

हाइब्रिडाइजेशन (Hybridization) – संपूर्ण विवरण (NEET के लिए)

हाइब्रिडाइजेशन एक रासायनिक अवधारणा है, जिसमें एक ही परमाणु के विभिन्न कक्षा में स्थित ऑर्बिटल्स मिलकर नए समान ऊर्जा वाले हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं। हाइब्रिडाइजेशन को समझना रासायनिक संरचनाओं को समझने में बहुत महत्वपूर्ण है। NEET परीक्षा में हाइब्रिडाइजेशन के बारे में सवाल अक्सर पूछे जाते हैं, इसलिए इसे अच्छे से समझना जरूरी है।

1. हाइब्रिडाइजेशन क्या है?

हाइब्रिडाइजेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें एक ही परमाणु के विभिन्न ऊर्जा स्तरों पर स्थित ऑर्बिटल्स आपस में मिलकर समान ऊर्जा वाले नए ऑर्बिटल्स बनाते हैं। ये हाइब्रिड ऑर्बिटल्स नए रासायनिक बंधों के निर्माण में मदद करते हैं और अणु की संरचना को स्थिर बनाते हैं।

2. हाइब्रिडाइजेशन के प्रकार (Types of Hybridization)

हाइब्रिडाइजेशन मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकारों में होता है:

(i) sp हाइब्रिडाइजेशन (Linear Geometry)

  • ऑर्बिटल्स का संयोजन: एक s-ऑर्बिटल और एक p-ऑर्बिटल मिलकर दो समान ऊर्जा वाले sp हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  • ज्यामिति: रैखिक (Linear) होती है, जिसमें बंधों के बीच का कोण 180° होता है।
  • उदाहरण: BeCl₂ (Beryllium chloride), C₂H₂ (Ethylene)

(ii) sp² हाइब्रिडाइजेशन (Trigonal Planar Geometry)

  • ऑर्बिटल्स का संयोजन: एक s-ऑर्बिटल और दो p-ऑर्बिटल्स मिलकर तीन समान ऊर्जा वाले sp² हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  • ज्यामिति: त्रिकोणीय (Trigonal) होती है, जिसमें बंधों के बीच का कोण 120° होता है।
  • उदाहरण: BF₃ (Boron trifluoride), C₂H₄ (Ethylene)

(iii) sp³ हाइब्रिडाइजेशन (Tetrahedral Geometry)

  • ऑर्बिटल्स का संयोजन: एक s-ऑर्बिटल और तीन p-ऑर्बिटल्स मिलकर चार समान ऊर्जा वाले sp³ हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  • ज्यामिति: आयताकार (Tetrahedral) होती है, जिसमें बंधों के बीच का कोण 109.5° होता है।
  • उदाहरण: CH₄ (Methane), CCl₄ (Carbon tetrachloride)

(iv) sp³d हाइब्रिडाइजेशन (Trigonal Bipyramidal Geometry)

  • ऑर्बिटल्स का संयोजन: एक s-ऑर्बिटल, तीन p-ऑर्बिटल्स और एक d-ऑर्बिटल मिलकर पांच समान ऊर्जा वाले sp³d हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  • ज्यामिति: त्रिकोणीय द्विआधारी (Trigonal Bipyramidal) होती है, जिसमें बंधों के बीच का कोण 90° और 120° होता है।
  • उदाहरण: PCl₅ (Phosphorus pentachloride)

(v) sp³d² हाइब्रिडाइजेशन (Octahedral Geometry)

  • ऑर्बिटल्स का संयोजन: एक s-ऑर्बिटल, तीन p-ऑर्बिटल्स और दो d-ऑर्बिटल्स मिलकर छह समान ऊर्जा वाले sp³d² हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का निर्माण करते हैं।
  • ज्यामिति: समकोणीय (Octahedral) होती है, जिसमें बंधों के बीच का कोण 90° होता है।
  • उदाहरण: SF₆ (Sulfur hexafluoride), XeF₆ (Xenon hexafluoride)

3. हाइब्रिडाइजेशन के गुणधर्म (Properties of Hybridization)

हाइब्रिडाइजेशन के परिणामस्वरूप जो हाइब्रिड ऑर्बिटल्स बनते हैं, उनमें कुछ विशेषताएँ होती हैं:

  1. समान ऊर्जा स्तर: हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का ऊर्जा स्तर समान होता है, जिससे रासायनिक बंध स्थिर होते हैं।
  2. नई ज्यामिति: हाइब्रिड ऑर्बिटल्स रासायनिक बंधों के लिए नई ज्यामिति प्रदान करते हैं।
  3. सशक्त बंध: हाइब्रिड ऑर्बिटल्स के बीच बंधों की ताकत अधिक होती है, जिससे अणु की स्थिरता बढ़ती है।

4. हाइब्रिडाइजेशन के लाभ (Advantages of Hybridization)

  1. स्थिरता: हाइब्रिडाइजेशन से अणु की स्थिरता बढ़ती है, क्योंकि हाइब्रिड ऑर्बिटल्स में अधिक बंधन ऊर्जा होती है।
  2. स्पष्ट बंधों का निर्माण: रासायनिक बंधों का निर्माण अधिक सटीक तरीके से होता है, जिससे अणु की संरचना स्पष्ट होती है।
  3. अणु का आकार: हाइब्रिडाइजेशन से अणु का आकार और रूप अधिक उपयुक्त होते हैं, जो उनकी रासायनिक प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं।

NEET के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न – हाइब्रिडाइजेशन (Hybridization)

1. sp हाइब्रिडाइजेशन की विशेषताएँ क्या होती हैं?

उत्तर:

  • sp हाइब्रिडाइजेशन में एक s-आर्बिटल और एक p-आर्बिटल मिलकर दो समान ऊर्जा वाले हाइब्रिड आर्बिटल बनाते हैं।
  • इन आर्बिटल्स के बीच 180° का बंध कोण होता है, जिससे अणु रेखीय (Linear) आकृति प्राप्त करता है।
  • उदाहरण: BeCl₂, CO₂, C₂H₂ (Acetylene)।

2. sp³ हाइब्रिडाइजेशन का उदाहरण क्या है?

उत्तर:

  • sp³ हाइब्रिडाइजेशन में एक s और तीन p-आर्बिटल्स मिलकर चार समान ऊर्जा वाले हाइब्रिड आर्बिटल बनाते हैं।
  • इन आर्बिटल्स के बीच 109.5° का बंध कोण होता है, जिससे अणु चतुर्भुजीय (Tetrahedral) आकृति प्राप्त करता है।
  • उदाहरण: CH₄ (Methane), NH₃ (Ammonia), H₂O (Water)।

3. C₂H₄ (Ethylene) में हाइब्रिडाइजेशन क्या होता है?

उत्तर:

  • C₂H₄ (Ethylene) में sp² हाइब्रिडाइजेशन होता है।
  • प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन sp² हाइब्रिड आर्बिटल्स बनाता है और एक अपरिवर्तित p-आर्बिटल रहता है।
  • यह p-आर्बिटल दूसरे कार्बन के p-आर्बिटल से π (पाई) बंध बनाता है।
  • अणु त्रिज्यामितीय समतलीय (Trigonal Planar) संरचना प्राप्त करता है, और बंध कोण 120° होता है।

4. PCl₅ में किस प्रकार का हाइब्रिडाइजेशन होता है?

उत्तर:

  • PCl₅ में sp³d हाइब्रिडाइजेशन होता है।
  • इसमें 1 s, 3 p और 1 d-आर्बिटल मिलकर पाँच हाइब्रिड आर्बिटल्स बनाते हैं।
  • अणु की त्रिज्यामितीय द्विपिरामिडीय (Trigonal Bipyramidal) ज्यामिति होती है।
  • इसमें दो प्रकार के बंध कोण होते हैं:
    • Axial (धुरीय) – 90°
    • Equatorial (व्यासीय) – 120°

5. SF₆ में हाइब्रिडाइजेशन की ज्यामिति क्या होती है?

उत्तर:

  • SF₆ (Sulfur Hexafluoride) में sp³d² हाइब्रिडाइजेशन होता है।
  • इसमें 1 s, 3 p और 2 d-आर्बिटल्स मिलकर छह हाइब्रिड आर्बिटल्स बनाते हैं।
  • अणु की षट्फलकीय (Octahedral) ज्यामिति होती है।
  • सभी F परमाणु समान रूप से व्यवस्थित होते हैं, और बंध कोण 90° होता है।

निष्कर्ष:

  • sp → Linear → 180° (BeCl₂, CO₂)
  • sp² → Trigonal Planar → 120° (C₂H₄, BF₃)
  • sp³ → Tetrahedral → 109.5° (CH₄, NH₃, H₂O)
  • sp³d → Trigonal Bipyramidal → 90°, 120° (PCl₅)
  • sp³d² → Octahedral → 90° (SF₆)

Molecular Orbital Theory (अणु कक्षीय सिद्धांत) – NEET के लिए संपूर्ण विवरण

मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल थ्योरी (MOT) रसायन विज्ञान में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि अणुओं में इलेक्ट्रॉनों का वितरण कैसे होता है। यह सिद्धांत मुख्य रूप से क्वांटम मेकेनिक्स पर आधारित है और यह समझाने में मदद करता है कि परमाणुओं के ऑर्बिटल्स आपस में मिलकर अणु के ऑर्बिटल्स का निर्माण कैसे करते हैं।


1. अणु कक्षीय सिद्धांत (Molecular Orbital Theory – MOT) क्या है?

मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल थ्योरी के अनुसार, जब दो परमाणु आपस में जुड़ते हैं, तो उनके परमाण्विक ऑर्बिटल्स (Atomic Orbitals) मिलकर नए अणु कक्षीय (Molecular Orbitals) का निर्माण करते हैं। ये मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल्स पूरे अणु पर फैले होते हैं, न कि केवल किसी एक परमाणु तक सीमित होते हैं।

इस सिद्धांत को Friedrich Hund और Robert S. Mulliken ने विकसित किया था।


2. अणु कक्षीयों का निर्माण (Formation of Molecular Orbitals)

जब दो परमाणु मिलते हैं, तो उनके Atomic Orbitals संयोजन करके दो प्रकार के Molecular Orbitals बनाते हैं:

(i) बंधनकारी अणु कक्षीय (Bonding Molecular Orbital, BMO)

  • जब दो परमाण्विक ऑर्बिटल्स एक ही फेज में जुड़ते हैं, तो वे बंधनकारी ऑर्बिटल बनाते हैं।
  • इन ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति अणु को अधिक स्थिर बनाती है।
  • इस ऑर्बिटल में इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा मूल परमाण्विक ऑर्बिटल्स से कम होती है।
  • इसे σ (sigma) या π (pi) ऑर्बिटल कहा जाता है।

(ii) प्रतिबंधक अणु कक्षीय (Anti-bonding Molecular Orbital, ABMO)

  • जब दो परमाण्विक ऑर्बिटल्स विपरीत फेज में जुड़ते हैं, तो वे प्रतिबंधक ऑर्बिटल बनाते हैं।
  • इन ऑर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति अणु को अस्थिर बनाती है।
  • इस ऑर्बिटल में इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा मूल परमाण्विक ऑर्बिटल्स से अधिक होती है।
  • इसे σ (sigma-star) या π (pi-star) ऑर्बिटल** कहा जाता है।

3. अणु कक्षीय ऊर्जा क्रम (Molecular Orbital Energy Order)

1st और 2nd Period Elements (Z ≤ 7) के लिए:
σ(1s)<σ∗(1s)<σ(2s)<σ∗(2s)<π(2p)<σ(2p)<π∗(2p)<σ∗(2p)\sigma(1s) < \sigma^*(1s) < \sigma(2s) < \sigma^*(2s) < \pi(2p) < \sigma(2p) < \pi^*(2p) < \sigma^*(2p)σ(1s)<σ∗(1s)<σ(2s)<σ∗(2s)<π(2p)<σ(2p)<π∗(2p)<σ∗(2p)

Higher Elements (Z > 7) के लिए:
σ(1s)<σ∗(1s)<σ(2s)<σ∗(2s)<σ(2p)<π(2p)<π∗(2p)<σ∗(2p)\sigma(1s) < \sigma^*(1s) < \sigma(2s) < \sigma^*(2s) < \sigma(2p) < \pi(2p) < \pi^*(2p) < \sigma^*(2p)σ(1s)<σ∗(1s)<σ(2s)<σ∗(2s)<σ(2p)<π(2p)<π∗(2p)<σ∗(2p)


4. अणु कक्षीय इलेक्ट्रॉन विन्यास (Molecular Orbital Electron Configuration)

इलेक्ट्रॉनों का भराव Aufbau Principle, Pauli Exclusion Principle, और Hund’s Rule के अनुसार किया जाता है।

उदाहरण:

O₂ (ऑक्सीजन) का अणु कक्षीय विन्यास:

ऑक्सीजन में 16 इलेक्ट्रॉन्स होते हैं, इसलिए मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल्स इस प्रकार भरते हैं:σ(1s)2σ∗(1s)2σ(2s)2σ∗(2s)2σ(2p)2π(2px)2π(2py)2π∗(2px)1π∗(2py)1\sigma(1s)^2 \sigma^*(1s)^2 \sigma(2s)^2 \sigma^*(2s)^2 \sigma(2p)^2 \pi(2p_x)^2 \pi(2p_y)^2 \pi^*(2p_x)^1 \pi^*(2p_y)^1σ(1s)2σ∗(1s)2σ(2s)2σ∗(2s)2σ(2p)2π(2px​)2π(2py​)2π∗(2px​)1π∗(2py​)1

इससे यह पता चलता है कि O₂ में 2 अपसामान्य (unpaired) इलेक्ट्रॉन्स होते हैं, जिससे यह पैरामैग्नेटिक (Paramagnetic) होता है।


5. बंध आदेश (Bond Order) और स्थिरता

बंध आदेश यह दर्शाता है कि अणु में कितने वास्तविक बंध बने हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र से निकाला जाता है:Bond Order=(Bonding electrons−Antibonding electrons)2\text{Bond Order} = \frac{(\text{Bonding electrons} – \text{Antibonding electrons})}{2}Bond Order=2(Bonding electrons−Antibonding electrons)​

उदाहरण:

  1. H₂ के लिए:
    • Bonding electrons = 2
    • Antibonding electrons = 0
    • Bond Order = (2 – 0)/2 = 1
    • अतः H₂ में एक एकल बंध (Single Bond) होता है।
  2. O₂ के लिए:
    • Bonding electrons = 10
    • Antibonding electrons = 6
    • Bond Order = (10 – 6)/2 = 2
    • अतः O₂ में दोहरे बंध (Double Bond) होते हैं।

Bond Order जितना अधिक होगा, अणु उतना ही अधिक स्थिर होगा।


6. चुंबकीय गुण (Magnetic Properties)

अगर अणु में अपसामान्य (Unpaired) इलेक्ट्रॉन्स होते हैं, तो वह पैरामैग्नेटिक (Paramagnetic) होगा।
अगर सभी इलेक्ट्रॉन्स युग्मित (Paired) होते हैं, तो वह डायमैग्नेटिक (Diamagnetic) होगा।

उदाहरण:

  • O₂ में दो अपसामान्य इलेक्ट्रॉन्स होते हैं → पैरामैग्नेटिक
  • N₂ में सभी इलेक्ट्रॉन्स युग्मित होते हैं → डायमैग्नेटिक

NEET में महत्वपूर्ण प्रश्न – Molecular Orbital Theory (MOT) और Bond Order

1. O₂ का Bond Order क्या होगा?

उत्तर:
Bond Order की गणना करने का सूत्र:Bond Order=Bonding electrons−Antibonding electrons2\text{Bond Order} = \frac{\text{Bonding electrons} – \text{Antibonding electrons}}{2}Bond Order=2Bonding electrons−Antibonding electrons​

MOT के अनुसार O₂ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px)2(π2py)2(σ2pz)2(π∗2px)1(π∗2py)1(σ 1s)^2 (σ^* 1s)^2 (σ 2s)^2 (σ^* 2s)^2 (π 2p_x)^2 (π 2p_y)^2 (σ 2p_z)^2 (π^* 2p_x)^1 (π^* 2p_y)^1(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px​)2(π2py​)2(σ2pz​)2(π∗2px​)1(π∗2py​)1

  • Bonding electrons = 10
  • Antibonding electrons = 6

Bond Order=10−62=2\text{Bond Order} = \frac{10 – 6}{2} = 2Bond Order=210−6​=2

इसलिए, O₂ का Bond Order = 2 होता है।


2. N₂ की Bond Order कितनी होती है?

उत्तर:
MOT के अनुसार N₂ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px)2(π2py)2(σ2pz)2(σ 1s)^2 (σ^* 1s)^2 (σ 2s)^2 (σ^* 2s)^2 (π 2p_x)^2 (π 2p_y)^2 (σ 2p_z)^2(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px​)2(π2py​)2(σ2pz​)2

  • Bonding electrons = 10
  • Antibonding electrons = 4

Bond Order=10−42=3\text{Bond Order} = \frac{10 – 4}{2} = 3Bond Order=210−4​=3

इसलिए, N₂ का Bond Order = 3 होता है, जो इसे अत्यधिक स्थिर बनाता है।


3. MOT के अनुसार, CO (Carbon Monoxide) के Bond Order की गणना करें।

उत्तर:
MOT के अनुसार CO का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px)2(π2py)2(σ2pz)2(σ 1s)^2 (σ^* 1s)^2 (σ 2s)^2 (σ^* 2s)^2 (π 2p_x)^2 (π 2p_y)^2 (σ 2p_z)^2(σ1s)2(σ∗1s)2(σ2s)2(σ∗2s)2(π2px​)2(π2py​)2(σ2pz​)2

  • Bonding electrons = 10
  • Antibonding electrons = 4

Bond Order=10−42=3\text{Bond Order} = \frac{10 – 4}{2} = 3Bond Order=210−4​=3

इसलिए, CO का Bond Order = 3 होता है, जो इसे एक मजबूत बंध वाला अणु बनाता है।


4. कौन सा अणु पैरामैग्नेटिक होगा: O₂, N₂, या F₂?

उत्तर:

  • O₂ में दो अनपेयर इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसलिए यह पैरामैग्नेटिक है।
  • N₂ और F₂ में सभी इलेक्ट्रॉन पेयर होते हैं, इसलिए ये डायमैग्नेटिक हैं।

निष्कर्ष: O₂ पैरामैग्नेटिक होगा, जबकि N₂ और F₂ डायमैग्नेटिक होंगे।


5. Molecular Orbital Diagram बनाकर H₂, O₂, और N₂ की स्थिरता की तुलना करें।

अणुBond Orderस्थिरता
H₂1अधिक स्थिर
O₂2स्थिर
N₂3सबसे अधिक स्थिर

Bond Order जितना अधिक होता है, अणु उतना ही स्थिर होगा। N₂ सबसे स्थिर होता है, उसके बाद O₂, और फिर H₂।


निष्कर्ष:

  • Bond Order से अणु की स्थिरता और बंध की लंबाई ज्ञात की जा सकती है।
  • O₂ पैरामैग्नेटिक होता है, जबकि N₂ और F₂ डायमैग्नेटिक होते हैं।
  • N₂ (Bond Order = 3) सबसे अधिक स्थिर है।

Bond Order (बंधन आदेश) – NEET के लिए संपूर्ण गाइड

1. बंध आदेश (Bond Order) क्या होता है?

बंध आदेश किसी अणु में परमाणुओं के बीच वास्तविक बंधों की संख्या को दर्शाता है। यह अणु की स्थिरता को निर्धारित करने में मदद करता है।

Bond Order का सूत्र:

Bond Order=(Bonding electrons−Antibonding electrons)2\text{Bond Order} = \frac{(\text{Bonding electrons} – \text{Antibonding electrons})}{2}Bond Order=2(Bonding electrons−Antibonding electrons)​

जहाँ,

  • Bonding electrons = बंधनकारी अणु कक्षीय (BMO) में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
  • Antibonding electrons = प्रतिबंधक अणु कक्षीय (ABMO) में इलेक्ट्रॉनों की संख्या

2. Bond Order और अणु की स्थिरता का संबंध

  1. Bond Order जितना अधिक होगा, अणु उतना ही अधिक स्थिर होगा।
  2. Bond Order जितना कम होगा, बंध उतना ही कमजोर होगा।
  3. अगर Bond Order = 0 आता है, तो अणु अस्थिर होता है और उसका निर्माण नहीं होता।

3. विभिन्न अणुओं के Bond Order की गणना

(i) हाइड्रोजन अणु (H₂)

  • Bonding electrons = 2 (σ1s)
  • Antibonding electrons = 0 (σ*1s)
  • Bond Order = (2 – 0)/2 = 1
  • H₂ में एकल बंध (Single Bond) होता है।

(ii) ऑक्सीजन अणु (O₂)

  • Bonding electrons = 10
  • Antibonding electrons = 6
  • Bond Order = (10 – 6)/2 = 2
  • O₂ में दोहरे बंध (Double Bond) होता है।

(iii) नाइट्रोजन अणु (N₂)

  • Bonding electrons = 10
  • Antibonding electrons = 4
  • Bond Order = (10 – 4)/2 = 3
  • N₂ में तिहरा बंध (Triple Bond) होता है, इसलिए यह बहुत स्थिर होता है।

(iv) हीलियम अणु (He₂)

  • Bonding electrons = 2
  • Antibonding electrons = 2
  • Bond Order = (2 – 2)/2 = 0
  • इसलिए He₂ अणु का निर्माण नहीं होता।

4. Bond Order और Bond Length का संबंध

Bond Order ∝ 1 / Bond Length

  • Bond Order जितना अधिक होगा, Bond Length उतनी कम होगी।
  • Bond Order जितना कम होगा, Bond Length उतनी अधिक होगी।

उदाहरण:

  • N₂ (Bond Order = 3, सबसे छोटा Bond Length)
  • O₂ (Bond Order = 2, उससे बड़ा Bond Length)
  • H₂ (Bond Order = 1, सबसे बड़ा Bond Length)

5. Bond Order और Magnetic Properties

  • अगर अणु में अपसामान्य (Unpaired) इलेक्ट्रॉन्स होते हैं, तो वह पैरामैग्नेटिक (Paramagnetic) होगा।
  • अगर सभी इलेक्ट्रॉन्स युग्मित (Paired) होते हैं, तो वह डायमैग्नेटिक (Diamagnetic) होगा।

उदाहरण:

  • O₂ में दो अपसामान्य इलेक्ट्रॉन्स होते हैं → पैरामैग्नेटिक
  • N₂ में सभी इलेक्ट्रॉन्स युग्मित होते हैं → डायमैग्नेटिक

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