Thalassaemia Major – Severe form that requires frequent blood transfusions.
Thalassaemia Minor – Mild form, where the person can live a normal life with little or no treatment.
थेलेसिमिया क्या है?
थेलेसिमिया एक प्रकार का जन्मजात एवं वंशानुगत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होने वाला रक्तदोष से सम्बन्धित रोग है। इस रोग के रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन (Hb) का निर्माण कम होता है तथा खून में विद्यमान रक्तकणों (R.B.C.) की जीवन अवधि घट जाती है, जो घटकर 20 दिन तक ही रह जाती है। यानि 4 माह या 120 दिन की सामान्य अवधि से पहले 20 दिन के लगभग समय में ही लाल रक्तकण नष्ट होने लगते हैं। इस रोग में लाल कणों का आकार सामान्य से छोटा हो जाता है।थेलेसिमिया क्या है?
थेलेसिमिया (Thalassaemia) एक आनुवंशिक रक्त विकार (Genetic Blood Disorder) है, जो माता-पिता से बच्चों में वंशानुगत रूप से पहुँचता है। इस रोग में शरीर सामान्य रूप से हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) नहीं बना पाता।
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाने का काम करता है। जब हीमोग्लोबिन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता, तो व्यक्ति को एनीमिया (खून की कमी) हो जाती है।
🔎 थेलेसिमिया के प्रकार
- थेलेसिमिया मेजर (Thalassaemia Major)
– यह गंभीर प्रकार है।
– रोगी को बार-बार खून चढ़ाने (Blood Transfusion) की आवश्यकता पड़ती है।
– यदि समय पर इलाज न मिले तो यह जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है। - थेलेसिमिया माइनर (Thalassaemia Minor)
– यह हल्का प्रकार है।
– रोगी को कोई बड़ा लक्षण नहीं होता और व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।
– लेकिन यह कैरियर (Carrier) होता है और आगे बच्चों में यह बीमारी जा सकती है।
⚠️ थेलेसिमिया के लक्षण
- कमजोरी और थकान
- पीली त्वचा
- बच्चों में विकास की कमी
- हड्डियों का असामान्य विकास
- बार-बार इंफेक्शन होना
- प्लीहा (Spleen) और जिगर (Liver) का बढ़ जाना
💊 थेलेसिमिया का इलाज
- नियमित रूप से Blood Transfusion
- Iron Chelation Therapy (अधिक आयरन निकालने के लिए)
- Bone Marrow Transplant (स्थायी इलाज का विकल्प)
- संतुलित आहार और डॉक्टर की देखरेख
🛡️ बचाव (Prevention)
थेलेसिमिया से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है –
👉 शादी से पहले रक्त जांच (Thalassaemia Carrier Screening Test) करवाना।
इससे यह पता चल जाता है कि दंपत्ति कैरियर हैं या नहीं और भविष्य में बच्चे को यह बीमारी होने से रोका जा सकता है।चूँकि थेलेसिमिया एक आनुवंशिक रोग (Genetic Disorder) है, इसलिए इसका सबसे बड़ा बचाव शुरुआत में ही जागरूकता और जांच से होता है। यदि समय रहते सावधानी बरती जाए, तो अगली पीढ़ी में इस बीमारी को रोका जा सकता है।
✅ 1. विवाह से पहले जांच (Pre-Marital Screening)
- शादी करने से पहले लड़का और लड़की दोनों का Thalassaemia Carrier Test करवाना चाहिए।
- यदि दोनों कैरियर निकलते हैं, तो उनके बच्चों में थैलेसीमिया मेजर होने की संभावना 25% तक रहती है।
- इस कारण कैरियर दंपत्ति को परिवार नियोजन से पहले Genetic Counselling ज़रूर लेनी चाहिए।
✅ 2. गर्भावस्था के दौरान जांच (Prenatal Diagnosis)
- यदि माता-पिता कैरियर हैं, तो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की जांच (Amniocentesis या Chorionic Villus Sampling) करवाई जा सकती है।
- इससे यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चा थैलेसीमिया से प्रभावित होगा या नहीं।
- शुरुआती चरण में पता चलने पर परिवार को निर्णय लेने में आसानी होती है।
✅ 3. जागरूकता अभियान
- समाज में थैलेसीमिया के बारे में जानकारी फैलाना ज़रूरी है।
- स्कूलों, कॉलेजों और समुदाय स्तर पर Health Awareness Programs के ज़रिए लोगों को इसकी गंभीरता और बचाव के उपाय बताए जाने चाहिए।
✅ 4. स्वस्थ जीवनशैली और पोषण
- थैलेसीमिया माइनर वाले व्यक्ति को संतुलित आहार, विटामिन्स और पर्याप्त आयरन-फ्री डाइट का पालन करना चाहिए।
- नियमित हेल्थ चेकअप और डॉक्टर की सलाह लेने से रोग की जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
✅ 5. रक्तदान और सामाजिक सहयोग
- थैलेसीमिया मेजर रोगियों को बार-बार खून चढ़ाने की ज़रूरत होती है।
- नियमित रक्तदान (Blood Donation) और थैलेसीमिया सोसाइटीज़ का सहयोग इन रोगियों के लिए जीवनदायी होता है।
👉 इस तरह समय पर जांच, जागरूकता और सामाजिक सहयोग से थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी को अगली पीढ़ियों में फैलने से काफी हद तक रोका जा सकता है।
Thalassaemia causes
जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि यह एक आनुवांशिक (हैरिडेटरी डिजीज) रोग है। बच्चे को यह बीमारी माँ या बाप अथवा दोनों से ही सौगात के रूप में मिलती है। यदि पति और पत्नी दोनों के बीज थेलेसिमिया ग्रस्त हों तो उनकी सन्तान में मेण्डेल के सिद्धान्त के अनुसार इस रोग के उत्पन्न होने की सम्भावना 25 प्रतिशत रहती है। पहले यह बीमारी ग्रीस, इटली, साइप्रस, सिसली इत्यादि देशों में पायी जाती थी। धीरे-धीरे एक दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण एवं व्यापार आदि के लिये • परस्पर देशों में आवागमन होने के कारण यह रोग अन्य देशों में भी स्थानान्तरित हो गया। दुर्भाग्य से आज इस बीमारी से ग्रस्त रोगी सम्पूर्ण भारत में मिलते हैं। सिन्धी, पंजाबी, मारवाड़ी, बंगाली, ब्राह्मण और मुसलमान, भानुशाली, लोहाड़ा, भाटिया, जैन, कच्छ के कीटक और पोरबन्दर के ढक्कर इत्यादि जातियों में यह रोग अधिक देखा जाता है। हमारे यहाँ प्राचीन समय से ही असमान गोत्र के लड़के-लड़की के बीच में ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करने की परिपाटी चली आ रही है। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य यही था कि उनकी भावी सन्तान में आनुवांशिक या वंशानुगत रोग नहीं हो। जिनमें थेलेसीमिया भी एक है।
Thalassaemia symptoms
इसके लक्षण बचपन से ही शुरू होते हैं। संलापी अल्परक्तता (Haemolytic Anaemias) की मुख्य विशेषताओं (अल्परक्तता, कामला एवं प्लीहावृद्धि) के अलावा त्वचा के ऊपर एक विचित्र वर्णकता (Pigmentation) छायी होती है। चेहरा मंगोल जाति के लोगों जैसा दीखता है। अस्थियों में भी विशिष्ट प्रकार के परिवर्तन होते हैं जो सबसे विकसित रूप में कपाल की अस्थियों में देखे जाते हैं। अस्थि मज्जा अति विकसित हो जाती हैं, उसमें खडी धारियाँ पड़ जाती हैं। तथा उनकी बाहरी और भीतरी पर्तें पतली पड़ जाती हैं। एक्स-रे चित्र में (विशेषकर कपाल के पार्श्व दृश्य में) खड़े केश जैसी छवि दिखायी देती है। शारीरिक वृद्धि थम जाती है। यकृत वृद्धि अवश्य होती है। पैरों में व्रण निकल आते हैं। पित्ताशय में वर्णक पथरिया (Pigmented stones) हो जाती है। प्लीहा, बढ़कर नाभि के समीप स्पर्श होने लगता है। बार-बार रोगी को सर्दी- संक्रमण होता रहता है। -जुकाम इत्यादि का
ANAEMIA- खून की कमी
सारांश
चेहरा पीला और निस्तेज, साँस फूलना, पेट फूला-फूला, भूख न लगना, खाने के प्रति अरुचि और खा लेने से उल्टियाँ हो जाना, निरन्तर ज्वर बना रहना या शरीर का ताप कम होना, हृदय की गति अधिक, सिर बड़ा और शरीर की आकृति छोटी, सिर के मध्य खड्डा सा दिखायी देना, सिर की हड्डियाँ मोटी, भौहों के बीच में नाक का भाग पिचका हुआ होना, ये इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
हीमोफीलिया- HAEMOPHILIA
रोग की पहचान
थैलेसीमिया की सही पहचान के लिए रक्त परीक्षण (Blood Tests) सबसे ज़रूरी माने जाते हैं। यह जांच जन्म से पहले (prenatal) और जन्म के बाद (postnatal) दोनों स्थितियों में की जा सकती है।
- Complete Blood Count (CBC Test)
– इसमें लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) की संख्या, उनका आकार और हीमोग्लोबिन का स्तर जांचा जाता है।
– थैलेसीमिया में RBC छोटे और असामान्य आकार के पाए जाते हैं। - Hemoglobin Electrophoresis
– यह विशेष टेस्ट है जिसमें हीमोग्लोबिन के विभिन्न प्रकारों (HbA, HbA2, HbF) की मात्रा मापी जाती है।
– थैलेसीमिया में HbA2 और HbF की मात्रा असामान्य रूप से अधिक होती है। - Genetic Testing (DNA Test)
– यह टेस्ट यह पुष्टि करता है कि रोगी या व्यक्ति थैलेसीमिया का कैरियर है या रोगी को थैलेसीमिया मेजर है।
– यह विशेष रूप से शादी से पहले कैरियर की पहचान करने में बहुत मददगार होता है। - Prenatal Diagnosis (गर्भावस्था के दौरान जांच)
– अम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) और कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग (CVS) के माध्यम से भ्रूण (baby) में थैलेसीमिया की पहचान की जा सकती है।
👉 नियमित और समय पर की गई जांच से थैलेसीमिया की जल्दी पहचान हो जाती है, जिससे उचित उपचार शुरू कर रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
रोग का परिणाम
इस रोग के लक्षण जितनी कम उम्र में उपस्थित होते हैं, रोग की घातकता भी उतनी ही अधिक परिलक्षित होती है। ऐसे बालक जीवित नहीं रह पाते हैं। खून की कमी और लाल रक्तकणों के विनाश के कारण बालक का विकास रुक जाता है। अस्थियाँ भी भंगुर हो जाती हैं। ये सभी स्थितियाँ रोगी को कम उम्र में व अकाल में ही मौत के मुँह में धकेल देती हैं। थैलीसिमिया मेजर से ग्रस्त बीमार की मृत्यु प्रायः 5 साल से लेकर 25 साल की उम्र तक हो जाती है।