INTESTINAL WORMS रोग का परिचय
INTESTINAL WORMS आँतों में कृमि (कीड़े या केंचुए) हो जाना ‘कृमि रोग कहलाता है। आधुनिक भाषा में इन्हें (Helminthelial infestation) के नाम से सम्बोधित करते हैं। यह रोग ‘स्त्री’, ‘पुरुष’, ‘बच्चों’ और ‘बूढ़ों’ सबको होता है किन्तु बच्चों को यह रोग बहुत होता है। लोगों की आँतों में कई प्रकार के कृमि और दूसरे कीड़े रहते हैं जो रोग उत्पन्न करते हैं। जो कृमि आकार में बड़े होते हैं; वे कभी-कभी व्यक्ति के मल में दिखाई दे जाते हैं।
जो कृमि कभी-कभी व्यक्ति के मल में दिखाई दे जाते हैं वे हैं- केंचुआ, सूत्रिकृमि (थ्रेड वर्म्स) और फीता कृमि । विष कृमि और अंकुश कृमि भोजन आँत में काफी ज्यादा संख्या में हो सकते हैं; लेकिन मल में दिखाई नहीं देते। कृमियों का विकास आमतौर पर आँतों में रहता है।
कृमियों के प्रमुख कारण
1. अस्वास्थ्यप्रद वातावरण में रहना ।
2. अस्वास्थ्यप्रद खान-पान ।
3. अशुद्ध जल पीना ।
4. सब्जियाँ तथा फल बिना धोये और साफ (पानी से) किये ही प्रयोग करना ।
5. अधिकतर कच्ची सब्जी का प्रयोग करने से।
6. अत्यधिक पके फल खाना ।
7. अत्यधिक मीठे पदार्थ खाना ।
8. खाली पेट अत्यधिक पका केला खाना ।
9. मिट्टी, पत्थर-कंकड़, खपरा, कुल्हड़ आदि खाने से ।
10. उड़द और खट्टे पदार्थों का अधिक प्रयोग |
11. अत्यधिक तरल का प्रयोग ।
12. कफ तथा अम्लरस पैदा करने वाले खाद्य अधिक सेवन करना ।
13. अत्यधिक साग-सब्जियों का प्रयोग ।
14. अत्यधिक माँस, मछली और अण्डों का प्रयोग ।
15. समय, कुसमय का ध्यान किये बिना खाते पीते रहना ।
16. नमक का अत्यधिक प्रयोग ।
INTESTINAL WORMS कृमियों के प्रमुख लक्षण सामान्य रूप में
1. पेट में कृमि होने से ‘मलद्वार’ और नाक में खुजली होती है, जी मिचलाता है, पेट में मन्द मन्द पीड़ा होती है या तो बहुत ज्यादा भूख लगती है या कम लगती है। खून की कमी और कमजोरी हो जाती है। कब्ज होती है या पतले दस्त लग जाते हैं। घबराहट तथा बेचैनी होती है। अफारा रहता है। रोगी को अधिकतर अरुचि रहती है। बच्चा रात को सोते समय दाँत किटकिटाता है। उसे ठीक से नींद नहीं आती है। मुँह से सड़नयुक्त बदबू आती है और गंदे डकार आते हैं। गुदा से दुर्गन्धयुक्त वायु निकलती है। मिर्गी, हिस्टीरिया के लक्षण प्रकट हो सकते हैं । रोगी का चेहरा पीला नजर आता है।
चेहरा निस्तेज और कान्तिहीन हो जाता है। प्रायः मुख का स्वाद बिगड़ा रहता है। मलद्वार में खुजली होती है। अधिकतर रोगी नाक खुजलाया करता है। रोगी दाँतों से नाखून कुतरता रहता है। पेट में मन्द- मन्द विशेषकर नाभि के पास पीड़ा होती है जो प्रायः चलती रहती है। INTESTINAL WORMS रोगी कृशकाय और कमजोर हो जाता है। मूत्र खड़िया की भाँति आता है। रोगी चिड़चिड़ा रहता है, वह अक्सर थूकता रहता है।