परिचय

यह कान में रह-रहकर उठने वाला दर्द है जो कि कान के रोग के कारण, व कभी-कभी आस-पास के अंगों में कोई रोग होने के कारण भी हो सकता है।
रोग के कारण

स्थानीय कारण-कान के अन्दर फुसी कान में मैल या बाह्य पदार्थ की उपस्थिति, मध्य कर्ण प्रदाह, बाह्य कर्ण शोध, कान को किसी चीज से खुरचने से चोट आने पर, हर्पीज रोग, कान के पर्दे पर खून जमना आदि कारणों से। अन्य भाग में आये बदलाव से होने वाला दर्द- दाँत सम्बन्धी-दाँत में कीड़ा लगने, मसूड़ों में संक्रमण, एक्सेस एवं वृद्धि, दाँत का निकलना।

जीभ सम्बन्धी-जिहा शोध, अल्सर एवं जीभ के कैंसर से। टांसिल सम्बन्धी-टांसिलाइटिस, टांसिल में विद्रधि से। मुँह में अल्सर, फेरेन्क में अल्सर, लेरेंक्स में टी. बी. संक्रमण, गर्दन में चोट आदि से। इसके अतिरिक्त सर्दी या चोट लगने, कान में पानी घुसने, कान को बार-बार कुरेदने, कान में जलन होने आदि कारणों से दर्द होता है।
रोग के लक्षण

कान में एकाएक तेज दर्द उठता है, फिर क्रमशः कम हो जाता है। यह दर्द बहुत कष्ट- दायक व तेज होता है। रोगी दर्द के मारे काँप उठता है और चिल्लाता है। इसमें कान के अन्दर प्रदाह (शोथ ) का कोई लक्षण नहीं रहता। कान के अन्दर फुंसियाँ और प्रदाह इत्यादि होने पर भी बहुत तेज चिलक मारने वाला दर्द होता है। रोगी को हरारत रहती है। कान में घाव होने से पानी जैसा स्राव निकलता है। अत्यधिक तीव्र पीड़ा से कुछ रोगी चक्कर आने की शिकायत करते हैं। रोगी को निगलते समय अथवा खाते-पीते समय कान का दर्द बढ़ता प्रतीत होता है।
# रोगी घबराहट और व्याकुलता अनुभव करता है