परिचय
यह एक प्रकार की मानसिक विक्षिप्त है जिससे अक्रान्त व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक थकान से ग्रसित होता है। प्रायः 20 वर्ष से 45 वर्ष की अवस्था वाले पुरुष इस रोग से अधिक अक्रान्त होते हैं।

Causes
इसका कोई विशिष्ट कारण नहीं है। इसके उत्तेजक कारण निम्न हैं-
1. अति परिश्रम (Over work)
2. चिंता (चिंता)
3. रुग्णावस्था, जैसे- रक्तअल्पता, इन्फ्लुएंजा या आन्त्रिक ज्वर।
4. मद्यपान तथा कोकेन का अत्यधिक सेवन।
5. निराशा होने पर अथवा महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर या जीवन की असफलताओं के कारण।
6. स्वप्नदोष होते रहने पर अथवा हस्तमैथुन या यौन क्रियाओं में अधिकता बरतने के कारण भी ऐसी दुर्बलता हो सकती है।
7. यौन क्रियाओं के प्रति गलत धारणायें बनाये रखने तथा उसके कारण पैदा हुए अपराध का बोध भी इसका कारण बन सकता है।

Symptoms
इस रोग में रोगी प्रायः शारीरिक लक्षण ही बताता है जबकि इसके लक्षण प्रधानता मानसिक हुआ करते हैं। रोग का प्रारम्भ क्रमशः होता है तथा इससे ग्रसित रोगी थका हुआ अपने में ही केन्द्रीभूत प्रतीत होता है। इसके अन्तर्गत रोगी क्षुधानाश (Anorexia), आध्य- मान (Flatulence), अपचन (Dyspepsia) तथा पश्चकपाल शूल (Occipital headache) के लक्षण बताता है।
कभी-कभी रोगी सिर में अत्यधिक संकीर्णता के लक्षण भी बताता है। ऐसे रोगियों का सिर अत्यधिक खाली अथवा अत्यधिक भरा हुआ प्रतीत होता है। न्यूरेस्थेनिया से ग्रस्त रोगी को अक्सर धड़कन, चक्कर, चेहरे का लाल होना, अत्यधिक स्वेदन, जंभाई आना, गले में किसी चीज का अटकना, शरीर के विभिन्न भागों में सुन्नता इत्यादि लक्षण प्रतीत होते हैं। रोगी की पीठ में दर्द होता है (Backache)। नपुंसकता इस रोग का प्रधान लक्षण है।

Note
न्यूरेस्थेनिया के रोगी को नींद नही आती है। वह किसी एक स्थान पर एकाग्र होकर बैठ, सो या पढ़ नहीं सकता। रोगी आकुल दिखायी देता है। उसके हाथ-पैर ठण्डे व नीले पड़ जाते हैं। रक्तचाप न्यून रहता है तथा नाड़ी की गति अनियमित रहती है।