परिचय
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें चिंता (Anxiety) इतनी अधिक होती है कि एक रोग का रूप ले लेती है। अक्रान्त व्यक्ति जीवन की यथार्थता, प्रतिबलों एवं तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करने या उनसे जूझने के बदले भाग खड़ा होता है और इसके फलस्वरूप, वह चिंतित हो उठता है तथा तनावपूर्ण अवस्था में आ जाता है। उसके सोचने-समझने की क्षमता चली जाती है। उसको जीवन के प्रति कोई रुचि नहीं रह जाती और वह अकारण ही भय का शिकार हो जाता है।

Causes
सामान्य व्यक्तियों की तरह परिस्थितियों से जूझ न पाना या असफलताओं को सहन न कर पाना या आकांक्षाओं के पूरा न हो पाने पर। आनुवंशिक कारणों से उसके व्यक्तित्व में कोई दैहिक दोष, भावनात्मक अपरिपक्वता या सहनशीलता की कमी हुआ करती है जो उस व्यक्ति को मामूली से मामूली प्रतिबलों या यातनाओं को सहन करने के योग्य नहीं रहने देती। किसी भी तरह का आघात (आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक) होने पर या प्यार, परीक्षा अथवा अन्य आकांक्षाओं की आपूर्ति में असफलता होने पर व्यक्ति चिंता, विक्षिप्ति का शिकार हो जाता है।

Symptoms
ऐसा मानसिक रोगी बराबर सुस्त, चिन्ता से ग्रसित, एक दयनीय स्थिति में रहता है। उसको किसी चीज में दिलचस्पी नहीं होती, न ही वह किसी काम में मन लगा पाता है या किसी विषय पर सोच-विचार कर सकता है। या कोई निर्णय ले पाता है। वह हर समय भय से ग्रसित होता है, उसे मौत का भय होता है। और वास्तव में, घबराहट और अपनी परिस्थितियों से विवश होकर वह आत्महत्या के लिये भी उतारू हो जाता है। अक्सर उसे नींद नहीं आती। स्वयं संचालित तंत्र के लक्षण-
1. आमाशय- आन्त्र सम्बन्धी-वमन, मितली. प्रवाहिका होना, उदर में आध्यमान, उदर में दर्द, मुँह का सूखना, हिचकी होना।
2. हृदयवाहिका संस्थानगत-धड़कन, वक्ष में दर्द होना।
3. तंत्रिका संस्थानगत-कप, पेशियों में स्फुरण, दिखायी न देना, कानों में झनझनाहट, चक्कर आना।
4. श्वसन संस्थानगत-कष्ट श्वास, वक्ष में बोझ, दम घुटने जैसा अनुभव होना।
5. मूत्र प्रजनन संस्थानगत-जल्दी-जल्दी पेशाब, वीर्यपात ।
6. अन्य- सिर दर्द, नींद न आना, ज्यादा पसीना छूटना ।
