परिचय-

विषाणु के उपसर्ग से एक पार्श्व की वातनाड़ी के प्रसार की दिशा में द्रवयुक्त विस्फोट, दाह, वेदना आदि लक्षणों की उत्पत्ति हर्पीज जोस्टर की विशेषता होती है।
रोग के कारण

यह रोग बेरीसेला जोस्टर वायरस के संक्रमण से होता है। इसका आक्रमण किसी भी आयु में हो सकता है, किन्तु वयस्कों एवं वृद्धों में अपेक्षाकृत आक्रमणों की अधिकता तथा लक्षणों की उग्रता होती है।
हर्पीज जोस्टर वाइरस वही वाइरस होता है। जो छोटी माता का कारक वाइरस होता है। यह वाइरस विशिष्ट रूप से पश्चमूल गंडिकाओं (Posterior root gangalion) को अक्रान्त करता है।
रोग के लक्षण

इस रोग में अक्रान्त तंत्रिका मूलों (Nerve roots) के वितरण क्षेत्रों में दर्द होता है। छोटे एवं चमकीले फफोलों जैसे विस्फोट अक्रान्त तंत्रिका या तंत्रिकाओं के प्रसार क्षेत्र या क्षेत्रों में त्वचा की सतह पर उभर आते हैं। फफोले एक सप्ताह में सूख जाते हैं तथा उनके ऊपर पपड़ियाँ पड़ जाती है। बाद में उन स्थानों पर क्षतचिन्ह (Scars) स्थायी तौर पर रह जाते हैं। अक्रान्त तंत्रिका क्षेत्रों में जलन होती है जो हफ्तों या महीनों तक (फफोलों के सूख जाने के बाद भी) होती रहती है। जलन अति तीव्र तथा असह्य होती है। पश्चमूल गण्डिकाओं के अक्रान्त होने पर दर्द और फफोले छाती के एक तरफ सीमित रहते हैं। त्रिधारा-गण्डिका के अक्रान्त होने पर विधारा तंत्रिका की नेत्र शाखा के (Ophthalmic division of the trigeminal nerve) के प्रसार क्षेत्र में अर्थात् चेहरे और कार्निया (Cornea) के ऊपर फफोले उग आते हैं। परिणामस्वरूप क्षत-चिन्हों के कारण या सम्पूर्ण चक्षुशोथ हो जाने के कारण अंधापन होना सम्भव है। वक्र गण्डिका के अक्रान्त होने पर कान या गले में दर्द होता है। कान के बाहरी भाग या गले के अन्दर फफोले निकल आते हैं। आठवीं कपाल तंत्रिका के अक्रान्त होने पर कानों में झनझनाहट चक्कर आना या बहरापन सम्भव है।