Sexual transmitted disease क्या होता है?

यौन संचारित रोग यानी एस. टी. डी. (S.T.D.) मैथुन या संभोग क्रिया द्वारा संचारित रोग होते हैं। ये रोग पहले से संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क के द्वारा संचारित होते हैं। इन रोगों को पहले वीनीरियल डिजीज (बी. डी) के नाम से जानते थे। चिकित्सा विज्ञान में इन्हें यौन सम्पर्क सैक्सुअली ट्रान्समिटेड डिजीज के नाम से पुकारा जाता है। यह रोग बैक्टीरिया, फफूँद (Fungus), विषाणुओं तथा प्रोटोजोआ आदि से होते हैं। इस समय 20 से अधिक यौन संचारित रोगों के बारे में पता है। जिनमें
1. Major STD Diseases-जैसे सिफिलिस, गोनोरिया, लिम्फोग्रेनुलोमा, शंकराम, एड्स, अविशिष्ट मूत्रमार्ग शोध (Non-specific urethritis), यकृतशोथ (13 Hepatitis)
2.Minor ST Diseases जैसे ट्राइकोमोनिएसिस, जघन जूँ पर्याक्रमण, जननेन्द्रिय का स्केबीज, अस (कैडिहा रुग्नता), जननेन्द्रिय हर्पीज है। जिनमें गनोरिया (सुजाक), सिफिलिस (आतशक), सैन्क्रोयड (रतिज व्रण), हरपीज और एस प्रमुख है।
एस. टी. डी. लगभग मलेरिया की तरह आम रोग है। विश्व भर में हर साल लगभग 20 करोड़ से अधिक लोग इसकी गिरफ्त में आ जाते है। इस रोग की व्यापकता शहरों में 10 प्रतिशत और देहाती क्षेत्रों में 7 प्रतिशत है। भारत में गनोरिया, सिफिलिस और सैन्क्रोयड आदि संक्रमण ज्यादा व्यापक मात्रा में है। दुर्भाग्य की बात है कि हाल के वर्षों में कारगर औषधियों की उपलब्धि के बावजूद इन रोगों के आघटन में कमी नहीं हो पायी है। भारत में ऐसे रोग शहरी क्षेत्र तथा तीर्थ स्थानों में ज्यादा प्रचलित है। एड्स को छोड़कर प्राय सभी यौनजन्य संक्रमित रोगों की सफल चिकित्सा उपलब्ध है जिनके कारण यौन जीवन को जीवंत बनाये रखा जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में लगभग बीस करोड़ लोग इन रोगों से पीड़ित है, जिनमें कोई 6 करोड़ लोग भारतीय है यह रोग निम्न कारणों से उत्पन्न होते हैं

जब एक व्यक्ति किसी पहले से संक्रमित (रोगयुक्त) व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करता है, तो यह रोग हो सकते हैं। यह यौन क्रियायें योनि, गुदा तथा मुँह से सम्बन्धित हो सकती हैं। एस. टी. डी. के जीवाणुओं के लिये योनि, लिंग, मलाशय या गुदा तथा मुँह से सम्बन्धित हो सकती हैं। एस. टी. डी. के जीवाणुओं के लिये योनि, लिंग, मलाशय या गुदा तथा मुँह आदि उपयुक्त पर्यावरण प्रदान करते हैं जहाँ से वे मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। यह स्त्री या पुरुष दोनों को प्रभावित करते हैं। पहले यह रोग आमतौर पर 20 से 40 वर्ष की उम्र वाले यौन क्रिया से जुड़े लोगों में सामान्य थे, किन्तु आजकल एस. टी. डी. का संक्रमण (Infection) धीरे-धीरे कम आयु वालों में भी हो रहा है।
एस. टी. डी. के जीवाणु एक श्वास अवधि के बाद रोग के संकेत व लक्षण प्रकट करते हैं। ज्यादातर एस. टी. डी. संक्रमण लैंगिक स्राव या शरीर के अन्य भागों में खुले कटे घावों से होते हैं।
कुछ यौन संचारित रोग जैसे एड्स और सिफिलिस का संचार प्रदूषित सुइयों, त्वचा छेदन के औजारों, दूषित व्यक्ति से रक्त आदान के समय तथा जन्म या गर्भावस्था के दौरान संक्रमित माँ से बच्चे को हो सकते हैं।
Symptoms of Sexual transmitted disease
एस. टी. डी. रोगों में सामान्य लक्षण जो स्त्री या पुरुष किसी से भी हो सकते हैं। पुरुषों में पाये जाने वाले लक्षण-
1. पेशाब या मलत्याग के समय जलन, पीड़ा या बार-बार पेशाब आना ।
2. लिंग प्रदेश (Penis region) में दर्द या दर्द रहित पीव की गाँठें, छाले या फफोले या खुले घाव होना ।
3. जाँघों की संधि पर सूजी हुई या दर्दयुक्त गाँठें।
4. लैंगिक क्षेत्र में खुजली या झुनझुनी का अहसास।
5. शरीर पर बिना खुजली के ददोरे ।
6. लैंगिक क्षेत्र में मस्से या फुंसियाँ ।
7. मुँह में घाव ।
8. त्वचा के नीचे गाँठें।
9. फ्लू जैसे लक्षण ।

स्त्रियों में पाये जाने वाले लक्षण-
1. अनियमित यौन स्राव ।
2. पेट के निचले भाग या कमर में दर्द।
3. लैंगिक मार्ग में अनियमित रक्तस्राव ।
4. योनि के आसपास व अंदर जलन एवं खुजली होना ।
5. यौन संपर्क (स्त्री-पुरुष का आपस में संभोग करते समय) के दौरान दर्द होना

* कुछेक रोगियों में (खासकर महिलाओं में) रोग के कोई संकेत या लक्षण तुरन्त नहीं उभरते हैं। इस प्रकार से वे स्वस्थ दीखते हुए दूसरों को संक्रमित कर सकती हैं। आप किसी भी व्यक्ति को केवल देखकर यह नहीं जान सकते हैं कि उसे एस. टी. डी. है। कोई व्यक्ति एक ही समय पर एक से अधिक एस. टी. डी. रोगों से युक्त हो सकता है।
* कोई भी व्यक्ति एक बार में ही संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन सम्बन्ध के द्वारा संक्रमित हो सकता है। यदि किसी पुरुष या स्त्री में इनमें से एक या अधिक लक्षण दीखते हैं. तो उसे तुरन्त किसी डॉक्टर या स्वास्थ्य कार्यकर्ता से संपर्क करना चाहिए।
* यदि गर्भवती माँ को सिफलिस हो तो उसके ये जीवाणु बढ़ते हुए भ्रूण तक पहुँच सकते हैं, जिसके कारण गर्भपात, मृत शिशु जन्म, नवजात शिशु मृत्यु या शिशु विकलांगता जैसी बातें हो सकती हैं। इसी प्रकार गर्भवती माँ को गनोरिया होने पर शिशु अंधा हो सकता है और क्लैमाइडिया के संक्रमण से शिशु को निमोनिया हो सकता है।