VERTIGO- सिर चकराना

परिचय

यह एक आम रोग है, जो आये दिन देखने को मिलता है। इस रोग में रोगी को अपना सिर घूमता अनुभव होता है। इसे चक्कर आना, सिर चकराना, भ्रमि, घुमेर आदि नामों से भी जाना जाता है। आधुनिक चिकित्सा में इसको गिडिनेस (Giddiness) के नाम से सम्बोधित करते हैं।

रोग के प्रमुख कारण

हानि या उच्च रक्तचाप (Low and high blood pressure) एवं लघु मस्तिष्क, श्रवण तंत्रिका (Auditory nerve) लेबेरिन्थ आदि की व्याधियों में। मेनियर्स सिन्ड्रोम (Menieris syndrome) मस्तिष्कगत् रक्तवाहिनी विकार तथा मस्तिष्क धमनी जठरता आदि व्याधियों में भ्रमि (Vertigo) एक प्रधान लक्षण होता है। कर्ण गूथ (Ear wax) का दबाव पड़ने, जीर्ण प्रतिश्याय के कारण Eustachian tube का अवरोध, अत्यधिक रक्ताल्पता, कृमि रोग, मलावरोध, स्त्रियों के आर्तवक्षय काल में भ्रमि (Vertigo) के लक्षण मिला करते हैं।

रोग के प्रमुख लक्षण

इस रोग में रोगी को लेटे बैठे या खड़े रहने की अवस्था में अपना शरीर या वातावरण घूमता हुआ प्रतीत होता है। रोगी का सिर चकराता है। ऐसा अनुभव होता है जैसे सारी दुनिया गोल-गोल घूम रही है। रोगी असहाय सा हो जाता है और घबराकर सहारे के लिये इधर-उधर हाथ चलाता है। आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है। रोगी बैठा रहकर जब अचानक उठकर खड़ा होता है तब उसके सामने अंधेरा छा जाता है और रोगी सहारा लेने के लिये बाँह पसार लेता है। रोगी का शरीर ढीला और ठंडा प्रतीत होता है। मुख में पानी भर आता है। रोगी में सुनने की शक्ति कम हो जाती है। कानों में सू-सू की आवाजे आती हैं। कुछ रोगी बहरे भी हो जाते हैं। 

Note अत्यधिक मानसिक श्रम करने वाले इस रोग के अधिकतर शिकार होते है। जो लोग अत्यधिक विषय वासनाओं में लिप्त रहते हैं तथा जिनका शुक्र (Semen) अधिक क्षय होता रहता है, उनको निश्चय ही सिर चकराते रहने का रोग हो जाता है।

रोग की पहचान

इस रोग में रोगी को ऐसा मालूम होता है, मानो उसका शरीर हिल रहा हो अथवा उसके चारों ओर के पदार्थ मानो घूम रहे हैं। एकाएक उठकर खड़े हो जाने पर रोगी को आँखों के आगे अंधेरा दिखाई देता है. कभी-कभी चक्कर खाकर गिर पड़ता है। सिर चकराते समय चेहरा फीका व शरीर ठंडा हो जाता है। बहुत बार इन लक्षणों के साथ मितली भी आती है।

रोग का परिणाम

कुछ रोगियों का रोग जब जीर्ण अवस्था में पहुँच जाता है, तब ऐसे रोगी यदा-कदा चकराकर गिर भी पड़ते हैं। इस अवस्था में गिर जाने से संघातक चोट लगने की सम्भावना भी रहती है। दौरा कुछ दिनों से चन्द सप्ताहों के अन्तराल से पड़ते हैं। दौरे के बाद रोगी को पूरा बहरापन हो जाता है। रोगी के बहरे हो जाने पर दौरे पड़ने बन्द हो जाते हैं

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