Meaning
यदि मूत्र में जीवाणुओं की उपस्थिति हो तो उसे यूरीनरी ट्रेक्ट इन्फैक्शन (यू. टी. आई. U.T.I.) के नाम से जाना जाता है। यदि जीवाणु की संख्या 100,000 या इससे अधिक प्रति मिली. मूत्र में हो तभी इसी यूरीनरी ट्रेक्ट इन्फैक्शन-U.T.I. कहते हैं।
Causes
1. रोग का मुख्य कारण जीवाणु का मूत्रमार्ग में प्रवेश है। यह जीवाणु/रोगाणु निचले भाग वाले मूत्रमार्ग से ऊपर तक पहुँच जाते हैं। कभी रक्त द्वारा या लिम्फेटिक मार्ग से भी पहुँचते हैं। यह रोग स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है। विशेषकर गर्भावस्था में। मधुमेह के रोगी अक्सर इस विकृति से प्रभावित होते हैं। कैथेटर लगाने से अथवा कोई औजार प्रयोग करने से बाद में ऐसा संक्रमण सम्भव है। मूत्राशय में पथरी (Renal Calculas) भी इसका एक कारण है ।
2. यदि मूत्र संस्थान में कहीं रुकावट आ जाती है तो बैक्टीरिया और तेजी से बढ़ने लगते हैं।
Symptoms
मूत्र त्याग करने में पीड़ा, बार-बार मूत्र का आना, हल्की सर्दी लगकर बुखार का आना, नीचे पेडुओं में दर्द रहना। जब संक्रमण मूत्र संस्थान के निचले भाग तक ही सीमित रहता है तो बार-बार मूत्र त्याग, जलन, मूत्राशय के स्थान पर भारीपन व दर्द आदि ही मुख्य लक्षण होते हैं। तीव्र मूत्राशय शोथ में मूत्र त्याग हो चुकने के बाद भी पेशाब की इच्छा बनी रहती है। यदि साथ में पथरी भी होती है तो दर्द बहुत तेज होता है। संक्रमण के बार-बार या लम्बे समय तक होने से शरीर थका हुआ, दुर्बलता, सिर दर्द एवं पेडुओं में हल्के दर्द की मुख्य शिकायत रहती है।
इस रोग में मूत्र मवाद के कारण धुंधला व गाढ़ा सा तथा कभी-कभी रक्त भी आ जाता है। * तीव्र वृक्कगोणिका शोथ (Acute pilonephritis) में कमर के एक या दोनों तरफ दर्द उठता है जो पेडुओं से होता हुआ जघनास्थि के ऊपर वाले प्रदेश की ओर जाता है।
रोग की पहचान
उपरोक्त लक्षणों के आधार पर निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। मूत्र की सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा जाँच व कल्चर कराने पर उसमें मवाद की उपस्थिति, देखने में धुंधला, सफेद व गाढ़ा सा रक्त कोशिकायें, बैक्टीरिया, कास्ट तथा ल्यूकोसाइट उपस्थित मिलते हैं। कल्चर से बैक्टीरिया का पता चलता है। रक्त की जाँच में T.L.C. बढ़ी हुई मिलती है। एक्स-रे से तीव्र अवस्था के गुजर जाने के बाद पथरी, रुकावट अथवा अन्य बनावटी परेशानी का पता लग जाता है।