क्या होता है? सिफिलिस
सिफिलिस एक रतिज रोग है जो ट्रिपोनीमा पैलिडम नामक एक स्पाइ रोकिट द्वारा होता है। उपदर्श या सिफिलिस रोग को फिर नाम से भी जाना जाता है। यौनजन्य संक्रामक रोगों में सिफिलिस खतरनाक बीमारी है। इसमें जननांगों तथा मुँह पर दर्द रहित घाव हो जाते हैं, जिन्हें शंकर कहते हैं। उसके बाद हल्का ज्वर मुँह में छाले, शरीर पर लाल रंग के छोटे-छोटे दाने तथा लिम्फेटिक ग्लैण्ड में सूजन हो जाती है।
इसे गर्मी की बीमारी भी कहते है।भारत में विशेषकर बड़े-बड़े शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों तथा बन्दरगाहों में आज भी यह रोग काफी प्रचलित है। देश के उत्तरी भाग विशेषकर कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश इस रोग से ज्यादा आक्रान्त है। एक अनुमान के अनुसार भारत के लगभग 5 प्रतिशत लोग इस रोग से अक्रान्त है। यह एक चिरकालिक रोग (Chronic disease) होता है और इससे शरीर का प्रत्येक अंग रोगग्रस्त हो जाता है। माता या पिता के इस रोग से आक्रान्त होने पर सन्तति में भी इस रोग का संक्रमण होता है।

Causes of Syphilis
सिफिलिस जोट्रियोनीमा पैलिडम नामक एक ‘स्पाइरोकिट’ द्वारा होता है। यह एक अति सूक्ष्म, टेढ़ा-मेढ़ा, धागे जैसा, अति चलनशील जीव है, जिसकी लम्बाई 6 से 14u होती है। यह माइक्रोस्कोप से एक विशेष विधि द्वारा जिसे अँधेरा क्षेत्र प्रदीप्ति (Dark ground illumination कहते हैं।) दिखायी देता है। यह वर्षों तक शरीर में दबा पड़ा रहता है। काफी लम्बे समय के बाद उभरकर रोगी की हालत खराब करता रहता है। यह रोग सिफिलिस से पीड़ित माँ से उसके गर्भस्थ शिशु में संचारित हो जाता है, जिससे नवजात शिशु से जन्मजात सिफिलिस रोग होता है।

Symptoms of Syphilis
पहला लक्षण प्रायः एक घाव होता है, जिसे शैकर (Chancre) कहा जाता है। छुतहा (Infected) व्यक्ति के साथ मैथुन करने के 2-5 सप्ताह के अंदर-अंदर यह लक्षण प्रकट होता है। यह शंकर मुहाँसे, छाले या खुले घाव की तरह दिखायी दे सकता है। यह प्रायः पुरुषों और महिलाओं के जनन अंग (कभी- कभी होंठों, उँगलियों, गुदा या मुँह) पर भी उभर आता है। इस घाव में बहुत ज्यादा रोगाणु होते हैं, जो बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँच जाते हैं। घाव में प्रायः पीड़ा नहीं होती। यदि घाव योनि (Vagina) के अंदर हो तो स्त्री को प्रायः मालूम भी नहीं होता कि उसे आतशक का घाव हो गया है, क्योंकि इसमें पीड़ा नहीं होती। लेकिन वह अपने साथ मैथुन करने वाले पुरुष को छूते लगा सकती है।
यह घाव कुछ ही दिन रहता है और तब बिना किसी इलाज के अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन बीमारी शरीर में फैलती और गम्भीर रूप धारण करती रहती है। हफ्तों या महीनों के बाद गला खराब हो सकता है. हल्का बुखार हो सकता है, मुँह में छाले हो सकते हैं या जोड़ों में सूजन आ सकती है या निम्नलिखित में से कोई लक्षण चमड़ी पर प्रकट हो सकता है-

1. पूरे शरीर पर पीड़ादायक ददोरे या मुँहासे ।
2. गोल छल्लेदार चकत्ते (पित्ती जैसे)।
3. हाथों या पाँवों पर खुजली वाले ददोरे । प्रायः यह लक्षण भी अपने आप चले जाते हैं। और व्यक्ति यह समझता है कि शायद वह ठीक हो गया है। लेकिन बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती रहती है। यदि आतशक (Syphilis) का पूरी तरह इलाज न किया जाये तो यह शरीर के किसी भी अंग को क्षति पहुँचा सकता है-यह हृदय रोग, फालिज (अधरंग), पागलपन व दूसरी कई समस्याओं का कारण बन सकता है।
# यह रोग 20-40 वर्ष की आयु के स्त्री-पुरुषों में अधिक होता है। अधिकतर अविवाहित व्यक्तियों में अधिक होता है। पथभ्रष्ट क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों में तथा समाज से अलग-थलग रहने वाली बस्तियों में जहाँ गरीबी रहती है, वहाँ पर यह रोग अधिक होता है। युवावस्था में यौन शिक्षा का अभाव, अमीरी और वैश्यागमन, औद्योगीकरण, श्रमिकों का स्थानान्तरण, पर्यटकों के आवागमन में वृद्धि, आधुनिक सभ्यता आदि इसकी उत्पत्ति के लिये उत्तरदायी हैं।
Note सिफिलिस का जीवाणु सम्भोग के द्वारा अथवा चुम्बन के द्वारा जननांगों या मुख की साबित अथवा छिली हुई श्लैष्मिक झिल्लियों को ग्रस्त करता है।