बेहोशी आना क्या है ?
एकाएक माथे में चक्कर आकर जमीन पर गिर पड़ना या बिछावन पर बेहोश हो जाना, आँखों के आगे अँधेरा छा जाना आदि लक्षणों से युक्त विकृत अवस्था को मूर्छा या बेहोशी (Syncope) कहते हैं।
मूर्च्छा, जिसे बेहोशी भी कहा जाता है, चेतना और मांसपेशियों की शक्ति का नुकसान है, जो तेजी से शुरू होने, कम अवधि और सहज स्वास्थ्यलाभ की विशेषता है। यह मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में कमी के कारण होता है, आमतौर पर निम्न रक्तचाप के कारण होता है।

रोग के कारण
बेहोशी के आम कारण ये हैं-
1. नशा (मद्यपान ) ।
2. डर, कमजोरी आदि के कारण बेहोश हो जाना ।
3. सिर की चोट (टकरा कर)।
4. तापाघात ( लू लगना) गर्मी के मौसम में विशेष रूप से बड़ी आयु के लोगों और शराब पीने वालों को होता है।
5. प्रघात – जीवन को खतरे में डालने वाली वह स्थिति है जो रक्तचाप में बहुत ज्यादा कमी आने के कारण होती है। यह स्थिति मुख्य रूप से भयंकर पीड़ा, काफी ज्यादा जलने, काफी मात्रा में खून बहने, गरमी रोग, निर्जलन, हृदयघात और गम्भीर एलर्जी का परिणाम होती है।
6. जहर लेना (मिट्टी का तेल, गैसोलाइन आदि जहरीली चीजें ।)
7. मधुमेह ।
8. इसके अतिरिक्त मानसिक तनाव, मस्तिष्क सम्बन्धी कारण आदि ।

रोग के लक्षण
रोगी को एकाएक अजीव सी बेचैनी महसूस होती है, उसे जमीन व आस-पास की चीजें घूमती सी लगती हैं। उसका जी मिचलाता है और जँभाई आती है। आँखों के आगे धब्बे से या कालापन छा जाता है। चीजें भी साफ दिखाई नहीं देती हैं। कानों में सूँ-सूँ की आवाज आती है। पूरे शरीर पर ठंडा पसीना आ जाता है। रोगी को ऐसा प्रतीत होता है कि उसके हाथ-पैरों में ताकत नहीं रही है। रोगी चक्कर खाकर गिर जाता है और बेहोश हो जाता है।
मूर्छा की स्थिति में मस्तिष्क अपना कार्य करना बन्द कर देता है, फलतः उसकी सुनने-समझने की शक्ति लोप हो जाती है, हाथ-पाँव निर्जीव जैसे हो जाते हैं, श्वास कम गहरी और धीरे-धीरे आती है और हृदय की धड़कन तथा नाड़ी की गति भी बहत धीमी पड़ जाती है। चेहरा सफेद, पीला या लाल हो जाता है।
कुछ समय तक बेहोश रहने के उपरान्त कुछ मिनटों में अपने आप चेतना आ जाती है।
# वेजोवेगल अटैक—कोई शोक भरी खबर सुनने के बाद, भूखा रहने, बहुत देर तक धूप में खड़े रहने पर, अत्यधिक कमजोरी से, बहुत दिनों तक आराम करने के बाद, कोई चोट लगने से, तेज दर्द होने पर, खून की कमी में, ज्वर रहने से अथवा भयावेश दवाब से ऐसा अटैक होता है।
चिकित्सा विधि
यदि कोई व्यक्ति बेहोश है और आप उसकी बेहोशी का कारण नहीं जानते तो उसी समय निम्नलिखित चीजों की जाँच करें-
1. क्या वह ठीक तरह से साँस ले रहा है। यदि नहीं तो उसके सिर को पीछे की ओर मोड़ कर उसके जबड़े और जीभ को अपनी तरफ खींचें। यदि गले में कुछ अटका हुआ है तो उसे निकाल दें। यदि फिर भी साँस न आये तो उसी समय कुछ श्वसन क्रिया शुरू कर दें।
2. क्या उसको बहुत ज्यादा खून बह रहा है ? यदि हाँ तो खून बन्द करने की कोशिश करें।
3. क्या उसकी नब्ज चल रही है या हृदय धड़क रहा है। यदि हृदय धड़कना बन्द हो जाये तो छाती की मालिश करें।
4. कहीं उसे प्राघात (रक्तचाप में बहुत ज्यादा कमी) तो नहीं है ? यदि ऐसा है तो उसी छाया में लिटा कर उचित उपचार करें।
पथ्यापथ्य एवं आनुषांगिक तथा सहायक
प्राथमिक उपचार
मूर्छा या बेहोशी की दशा में रोगी को चाय, कॉफी, वार्ली, दूध कोई भी चीज पीने को अथवा खाने को न दें अर्थात् रोगी को मुँह से तब तक कुछ न दें जब तक वह पूरे होश में न आ जाये। थोड़ी देर उसको आराम करायें व उसके बाद पीने को चाय या ठंडा पानी दें। लेकिन इससे पूर्व जैसे ही रोगी मूर्छित हुआ मिले, उसके सिर वाला भाग नीचा कर दें, जिससे मस्तिष्क में रक्त संचार भलीभाँति हो सके। तत्पश्चात् रोगी को सीधा लिटाकर गर्दन व छाती के कपड़े ढीले कर देने चाहिए। सिर को घुमा दें जिससे जीभ पीछे जाकर गले को बन्द न कर दें। ठंडे पानी के छींटे मारें। इससे रोगी होश में आ जावेगा । लाइकर अमोनिया फोर्ट सुँघायें, इससे रोगी शीघ्र होश में आ जाता है। लम्बी मूर्छा हो तो उत्तम ब्राण्डी 30 से 60 मिली. पिलायें ।
बेहोशी की स्थिति में सफेद प्याज के रस को छान कर 2-2 बूँद नासाछिद्र में टपकाने से रोगी होश में आ जाता है। मूर्छा आते ही पं. ठाकुर दत्त शर्मा निर्मित अमृत धारा सुँघाने से भी ऐसा ही असर होता है।

उपचार
इस रोग में पूर्व बताई गई सहायक तथा आनुषांगिक चिकित्सा से ही रोगी होश में आ जाता है। वेजावेगल अटैक को छोड़कर अगर मूर्छा का कोई अन्य कारण हो तो उसके अनुसार चिकित्सा करें। जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन दी जा सकती है।
विशेष परिस्थितियों में ही औषधि चिकित्सा की आवश्यकता होती है। औषधियों में कार्डिऑक्सिन (Cardioxin) वयस्कों को प्रारम्भ में 1-6 मिली. प्रतिदिन शिरा में इन्फ्यूजन विधि से 50 से 100 मिली. डेक्स्ट्रोज विलयन में मिला कर इन्जेक्शन लगायें। अथवा कार्डिआक्सिन 0.25 मिग्रा वाली टिकिया प्रारम्भ में 1-6 टिकिया प्रतिदिन दें। तत्पश्चात् 1-2 टिकिया प्रतिदिन देते रहें।
अथवा आप्टीन्यूरॉन (Optineuron) 3 मिली. का 25% डेक्स्ट्रोज सोलूशन के 50 मिली. में मिलाकर शिरा में बहुत धीरे-धीरे इन्फ्यूजन विधि से प्रतिदिन इन्जैक्शन के रूप में दें। इससे शक्ति और रक्त की कमी दूर होकर मूर्छा दूर होती है। डेक्स्ट्रोज 50 से 100 मिली. आई. वी. धीरे-धीरे दे सकते हैं। वीटामेथासोन अथवा डेक्सामेथासोन 1.2 मिली. माँस में एक दिन छोड़कर दिया जा सकता है।
कुछ लोग कम्पलामिना (Complamina) 2 मिली. माँस या शिरा में धीरे-धीरे देना पसंद करते हैं। इसे डेक्स्ट्रोज 25% घोल के 50-100 मिली. में मिलाकर इन्फ्यूजन विधि से शिरा में धीरे-धीरे दिया जा सकता है।
Types of syncope
1.लू लगने के कारण आई हुई मूर्छा –
लू से पीड़ित व्यक्ति को किसी ठंडी जगह ले जाकर उसके सिर तथा मुँह पर ठण्डे पानी के छींटे मारें यदि उपलब्ध हो सके तो पानी को अधिक ठंडा करने के लिए उसमें यूडोकोलीन अथवा सिरका या बर्फ मिला लेना चाहिए। रोगी के सिर पर बर्फ की थैली रखना लाभकर रहता है। रोगी के शरीर को खूब ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़े गये तौलिये अथवा चादर द्वारा ढक देना चाहिए, ताकि उसे ठंडक मिले। रोगी को ठण्डे पानी के टब में 20 मिनट तक रखना चाहिए तथा उसके सम्पूर्ण शरीर को ठण्डे पानी से मल-मल कर नहलाना भी उचित रहता है। आम का पना पिलाना लाभकर होता है।
2. मस्तिष्क में चोट लगने से आई मूर्छा में –
घाव की आवश्यक मरहम पट्टी करने के उपरान्त रोगी को गरम कपड़ों में लपेट दें तथा गरम पानी की बोतल द्वारा शरीर में गर्मी पहुँचाने का यत्न करें। मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारे। हो सके तो रोगी को 1-2 चम्मच ब्राण्डी एवं गरम दूध पिलायें। यदि श्वास लेने में कठिनाई हो तो कुछ देर तक कृत्रिम विधि से श्वास दिलायें।
3. मस्तिष्क में रक्तवाहिनी के फटने से आई हुई मूर्छा में –
रोगी को आराम की स्थिति में इस प्रकार लिटायें कि उसका सिर कुछ ऊँचा उठा रहे। तत्पश्चात् सिर पर बर्फ रख कर उसे ठंडक पहुँचायें हाथ-पाँव तथा धड़ को कम्बलों तथा गर्म पानी की बोतलों से गरम रक्खें। अन्य सभी उपचार सामान्य मूर्छा की भाँति करें।
4. किसी दुःखद समाचार को सुनकर अथवा भयानक दृश्य को देखकर आई मूर्छा में-
रोगी को आराम की स्थिति में लिटाकर यथा- सम्भव गरम रक्खें। इसके लिए गरम पानी। की बोतलों का उपयोग कर सकते हैं। मूर्छा या बेहोशी टूटने पर गरम दूध, चाय आदि पिलावे पर ब्राण्डी अथवा मादक द्रव्यों का प्रयोग न करें।
5. सिर के बल सीधे गिरने से आई मूर्छा में-
रोगी को आराम की स्थिति में इस प्रकार सीधा लिटायें कि उसका सिर कुछ नीचे रहे। उसके शरीर को गरम कपड़ों से ढक दें तथा गर्म पानी की बोतलों का प्रयोग कर गर्मी पहुँचायें।
6. मिर्गी के कारण आई मूर्छा में-
यदि रोगी के दाँत खुल सकें तो उनके बीच कोई चिकनी तथा गोल लकड़ी कपड़े में लिपटी हुई पेंसिल अथवा कपड़े की गोल गद्दी आदि रख देनी चाहिए, ताकि वह अपनी जीभ न काट लें। दौरे के दौरान उसे पकड़ने या बाँधने की कोशिश न करें, आस-पास जमा भीड़ को हटा दें ताकि उस तक ताजी हवा पहुँच सके। यदि उसे उल्टी आ रही हो तो उसका मुँह एक तरफ कर दें कहीं उसका साँस न रुक जाये। यदि जरूरत पड़े तो उसके गले में फँसी उल्टी को साफ कर दें। रोगी को पीठ के बल लिटा दें तथा उसके कपड़ों को ढीला कर दें। रोगी जितनी देर सोता रहना चाहे सोने दें। यदि शीघ्र होश में लाना है तो अमोनिया फोर्ट सुँघायें। इसमें सामान्य मूर्छा के लिए बताये गये उपचारों का प्रयोग करना उचित है। साथ में मिर्गीनाशक दवाओं का उपयोग लम्बे समय तक जीवन भर करते रहना चाहिए।
नोट- मिर्गीरोधी दवाओं में ‘फीनोबार्बीटोन’ एक सबसे सस्ती दवा है। इसके अतिरिक्त ‘फेनीटोइन सोडियम’, ‘सोडियम वाल्प्रोएट’ (Sodium Valproate) अच्छी दवायें हैं।
