परिचय

ऐसा दर्द जो नितम्बों से निकलकर टखनों तक जाने वाले स्नायु सियाटिका नर्वस में दर्द होने से उत्पन्न होता है। इसे लंगड़ी का शूल’ भी कहते हैं।
रोग के प्रमुख कारण

ठंड लगना, चोट, गठिया, वायु, उपदंश, नाड़ी ‘सियाटिका नर्वस’ पर लगातार दबाव पड़ना (जैसे कुर्सी पर बैठने से होता है) वस्ति गहर (Pelvis) के कुछ रोग, अधिक चलना आदि कारणों से यह होता है। यह बीमारी प्रायः 40 और 50 वर्ष की आयु वालों को होती है।
रोग के प्रमुख लक्षण

इस दर्द में नितम्बों से लेकर घुटने के पिछले हिस्से तक और कभी-कभी एड़ी तक दर्द की एक लकीर सी खिंची हुई मालूम पड़ती है। यह दर्द तेज भी हो सकता है और हल्का- हल्का भी। दर्द तेज होने पर रोगी को भारी कष्ट होता है और उसे खाट पकड़नी पड़ती है। इस रोग में सबसे पहले एक तरफ की नाड़ी (Nerves)। सियाटिका नर्वस में ही दर्द होता है। यह दर्द किसी समय टाँग और घुटने की पिछली तरफ से होता हुआ टखने तक महसूस होता है। यह दर्द कभी-कभी एक टाँग में और कभी-कभी दोनों टाँग में हुआ करता है।
Note- आमतौर पर यह बीमारी रात के समय हिलने-डुलने से बढ़ती है। शीत के कारण बीमारी में अक्सर वृद्धि देखी जाती है। किसी-किसी रोगी में यह दर्द चलने-फिरने से घटता भी है।
रोग की पहचान

सियाटिका नर्व या उसकी शाखाओं के मार्ग पर दवायें और रोगी को पीड़ा प्रतीत हो, तो गृध्रसी (Sciatica) रोग समझें।
रोग का परिणाम

यदि रोग दीर्घकाल तक चलता रहे तो पैर और जाँघ की माँसपेशियाँ सूख जाती है।