RHEUMATOID ARTHRITIS-रूमेटॉइड सन्धि शोथ

What is rheumatoid arthritis

यह एक चिरकारी (Chronic) नॉन-बैक्टीरियल जोड़ों का रोग है। शरीर के बहुत से जोड़ एक साथ इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। रोगी के जोड़ों में अचानक सूजन व लाली आ जाती है।

Rheumatoid arthritis एक प्रवेगी एवं स्थायी बहुसन्धि शोथ है जो परिसरीय सन्धियों से शुरू होता है और बाद में शरीर की लगभग सभी सन्धियों को दुतरफा (Bilateral) समान रूप अक्रान्त करता है और स्थायी अशक्तता तथा असमर्थता छोड़ जाता है।

Causes of rheumatoid arthritis

इस रोग का सही कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। आज तक के मिले प्रमाणों के आधार पर यही कहा जा सकता है कि रूमेटॉइड सन्धि शोथ एक इम्यून जनित रोग है जो आनुवांशिक पूर्व-प्रवृत्ति रखने वाले लोगों में होता है। ऐसे लोगों में T लसीका कोशिकाओं की सक्रियता बढ़ जाती है। सन्धियों में शोथ तथा अन्य प्रकार की क्षतियाँ

इम्यून कॉम्पलेक्सों के क्षतिकारक प्रभाव के कारण होती हैं। इस प्रक्रिया में कोशिका मध्यस्थ इम्युनिटी का भी हाथ हो सकता है। इस रोग में आमंत्रित करने वाले या बढ़ावा देने वाले कतिपय फैक्टर इस प्रकार हैं- 

1. आयु 30 से 40 वर्ष के बीच होना।

2. लैंगिक प्रभाव महिलाओं में 3 गुना ज्यादा ।

 3. आनुवांशिकता (Heredity) |

4 मौसम विशेषकर उन स्थानों पर जहाँ ठंडक, नमी और कोहरा साल भर बना रहता है ये रोग अधिक होता है।

Symptoms of rheumatoid arthritis

रोग की शुरूआत धीमी गति से होती है लेकिन एक बार शुरू होने के बाद रोग की गति बराबर प्रगतिशील होती है। शुरू में बदन में दर्द, थकावट, वजन में कमी, हाथ-पैरों में झनझनाहट या शून्यता का बोध, पेशियों में या सन्धियों में हल्का दर्द तथा हल्का ज्वर होना इसके दैहिक लक्षण है। सर्वप्रथम हथेली की छोटी सन्धियाँ अक्रान्त  होती हैं,

विशेषकर निकट की अंगुली अस्थि सन्धियों। इन सन्धियों में पहले दर्द और अकड़न होती है और बाद में उनमें तकुए के आकार की सूजन होती है। पैर की छोटी सन्धियों में भी यही अवस्था होती है। बाद में, मणि बन्ध सन्धि, कोहनी और कंधे की सन्धियाँ, जानु सन्धियाँ, स्टरनम कैक्किल सन्धियाँ तथा जबड़े की सन्धियाँ एक साथ या एक के बाद एक अक्रान्त होती हैं। सुबह के समय इन सन्धियों में अकड़न बढ़ जाती है। कुछ समय बाद हथेलियाँ अन्दर की तरफ मुड़ जाती हैं।

रोग की पहचान 

रूमेटाइड सन्धि शोथ का निदान निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर किया जाता है-

1. रोग की शुरूआत धीमी गति से होती है। लेकिन बाद को रोग दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है और शरीर की लगभग सभी सन्धियों को अक्रान्त कर देता है तथा एक दिन पूर्ण असमर्थता ला देता है।

2. रोग शरीर की परिसरीय एवं छोटी सन्धियों से शुरू होता है लेकिन समय काल में अन्य सन्धियों को अक्रान्त कर लेता है।

3. दैहिक लक्षण अक्सर प्रमुख होते हैं और सन्धियों के अलावा अन्य अंगों का अक्रान्त होना भी संभव है। निदान की पुष्टि, सीरमी जाँचों तथा एक्स-रे के आधार पर की जाती है।

रोग का परिणाम

बाद के दिनों में प्रभावित सन्धियों से सम्बन्धित पेशियों में परिगलन होता है तथा आकुंचन विकृति हो जाती है। हाथों में टेबुल-फोर्क जैसी विकृति दिखायी देती है। कुछ समय बाद, हथेलियाँ अन्दर की ओर मुड जाना तथा अन्य सन्धियों में आकुंचन-विकृति होना संभव है। इस स्थिति में, सन्धि बिलकुल  अव्यवस्थित और स्थायी रूप से अचल हो जाती है और असमर्थता की स्थिति आ जाती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello 👋
Can we help you?
Call Now Button