RHEUMATIC FEVER-

Rheumatic Fever

यह संयोजी ऊतकों का एक विशिष्ट एवं तीव्र स्वरूप का रोग है। इसमें ज्वर, बहु सन्धिशोथ (Polyarthritis) और हृदयशोथ (Cardilis) जैसी प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस रोग का असर जोड़ों पर नाममात्र ही होता है, पर इसका सांघातिक प्रभाव हृदय पर पड़ता है। यह रोग मुख्यतः बचपन और युवावस्था में देखा जाता है। 20 वर्ष से कम आयु में होने वाले सभी हृदय रोगों में रुमेटी हृदय रोग सबसे अधिक होता है। भारत में हृदय रोग से पीड़ित तमाम रोगियों में कोई 30 से 40 प्रतिशत लोग आमवात ज्वर से पीड़ित होते हैं। हमारे जनसमुदाय का 0-15 से 3-95 प्रतिशत भाग इस रोग से पीड़ित है।

Rheumatic Fever

Rheumatic Fever causes

1. इस रोग के होने का वास्तविक कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। वैसे अधिकांश व्यक्तियों की राय है कि रोग ग्रुप A हीमोलीटिक स्ट्रेप्टोकोकाई नामक जीवाणु से होता है। 

2 सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ापन, गंदगी एवं सीलन से भरा वातावरण, भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी और अशिक्षा के कारण बीमारियों की रोकथाम के प्रति अनिविज्ञता इसके प्रमुख कारण हैं। यह रोग बसन्त एवं हेमंत ऋतुओं में अधिक होता है। शहरी क्षेत्रों में इसका प्रकोप अधिक होता है।

Rheumatic Fever

Rheumatic Fever symptoms

इस रोग की शुरूआत अधिकतर एकाएक होती है, पर मध्यम गति से भी हो सकती है। 

साधारणतः स्कूल जाने वाला बच्चा जिसे कुछ सप्ताह पूर्व गले में खराश हुई होती है, एक दिन सुबह बिस्तर से उठने पर ज्वर से पीड़ित होता है। उसके जोड़ों में सूजन आ जाती है और उनमें दर्द होता है। दर्द एक जगह ठीक होता है तो दूसरी जगह शुरू हो जाता है। जोड़ों में सूजन, लाली, गर्माहट व छूने में दर्द होता है। कभी-कभी पानी भी भर जाता है। इसके बाद हृदय में बहुत से उपद्रव हो जाते हैं जैसे-एण्डोकार्डाइटिस, मायो- कार्डाइटिस एवं पेरीकार्डाइटिस (Pericarditis)। पेट पर लाल चकत्ते हो जाते हैं। बच्चों में आमवात पर्व (Rheumatic nodules) त्वचा के नीचे कोहनी, घुटने, सिर के पिछले हिस्से पर हो जाते हैं। इनमें दर्द नहीं होता है। इस रोग की एक खास पहचान है कि यह बड़े जोड़ों को ही (जानु सन्धि, गुल्फ सन्धि, कोहनी सन्धि, मणि बंध सन्धि, कन्धा संधि, नितम्ब संधि) अक्रान्त करता है।

Rheumatic Fever

रोग की पहचान

व्यावहारिक तौर पर रोग की पहचान निम्न- लिखित तथ्यों के आधार पर हो सकती है- 

1. रोगी की उम्र 5 से 15 वर्ष । 

2. अनियमित प्रकार का ज्वर सिहरन (Chills) और पसीना के साथ हो। 

3. नाड़ी गति की तीव्रता-नाड़ी की गति (Pulse rate) सदैव (नींद में भी) तीव्र रहती हो । 

4. रोग बड़े-बड़े जोड़ों को पकड़ता हो और एक जोड़ से दूसरे जोड़ में खिसने की प्रवृत्ति रखता हो। : 

5. हृदयशोथ के लक्षण मौजूद हों। 

6. ESR बढ़ा हो एवं TLC में वृद्धि । 

7. सैलीसिलेट अथवा एस्प्रिन देने पर जादुई लाभ पहुँचता हो । 

8. छाती का X-Ray कराने पर हृदय का आकार बढ़ा हुआ मिलता है।

Rheumatic Fever

उपचार

इस रोग में सबसे आवश्यक आराम करना होता है क्योंकि हृदय के अक्रान्त होने का खतरा बराबर बना रहता है। आराम करने की अवधि तब तक होनी चाहिये जब तक ज्वर आना बन्द न हो जाये। जोड़ों का दर्द खत्म न हो जाये, निद्रावस्था की नाड़ी गति सामान्य

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Open chat
1
Hello 👋
Can we help you?
Call Now Button