Meaning
जो वेदना मूत्राशय और मलाशय से आरम्भ होकर गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय का भेदन सा करती हुई प्रतीत हो, रीनल कॉलिक या वृक्काश्मरी कहलाती है। इसका प्रमुख कारण पथरी है जो कि वृक्क या मूत्र संस्थान में एक या कई जगहों पर होती है तथा कहीं भी फँसकर दर्द पैदा कर सकती है। गुर्दे की पथरी 30 और 60 साल के बीच वाली उम्र में अधिक होती है।

Causes
इस रोग का असली कारण अब तक साफ नहीं हो सका है। पर प्रीडिस्पोजिंग कारण इस प्रकार हैं- चयापचयी परिवर्तन, संक्रमण (Infection) और मूत्रमार्ग में अवरोध, रक्त और पूय का थक्का, रचना सम्बन्धी विकृतजन्य कारण, मूत्र का अधिक गाढ़ा होना, असंतुलित आहार, यूरेटर के अंकुरार्बुद के टुकड़े आदि कारण है।
Symptoms
कमर व पेडू में अचानक दर्द होता है जो जाँघ और वृषण कोष की तरफ जाता है। दर्द इतना तीव्र होता है कि वह बिस्तर में उलट-पलट खाता है। रोगी व्याकुल होता है और उसे ठंडा पसीना आता है। दर्द कुछ समय से कुछ घण्टों तक रहता है। कभी-कभी ठंड लगकर बुखार भी आता है। रोगी का जी घबड़ाता है और उल्टी आती है, नाड़ी तेज चलती है और चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है। मूत्र बूँद-बूँद करके दर्द के साथ आता है या मूत्र के रुक जाने से पेट में भारीपन व दर्द बढ़ जाता है। मूत्र में रक्त, कास्ट आदि पाये जाते हैं।

नोट
जब तक पथरी वृक्क में रहती है तब तक दर्द नहीं होता है, पर जब यह पथरी मूत्रनली में आ जाती है, तब बड़े भयंकर रूप में ऐसा दर्द होना प्रारम्भ होता है मानो वहाँ से कुछ काट डाला हो ।

रोग की पहचान
गुर्दे का दर्द एकाएक ही पैदा होता है और अचानक बन्द हो जाता है। मूत्र परीक्षा में रक्त कणिकाओं की उपस्थिति मिलती है। मूत्र में यूरिक एसिड एवं क्रिस्टल भी पाये जाते हैं। इसके निदान में प्लेन एण्डोमिनल रेडियोग्राफ, सी. टी. स्केन, प्रीकुटेनियस यूरोग्राफ, केमिकल एनालिसिस, यूरिन एसीडिफेक्शन टेस्ट, मूत्र कल्चर एवं सहनशीलता टेस्ट आदि सहायक जाँचें हैं।
रोग का परिणाम
उचित उपचार के अभाव में तथा समुचित पथ्यापथ्य पालन न करने से पथरी बनने का क्रम जारी रहता है। आगे चलकर पथरी किडनी की कार्यक्षमता को कम कर देती है। बड़ी होने पर मूत्रमार्ग में अवरोध पैदा कर सकती है। ऐसी स्थिति में इसको शल्य चिकित्सा द्वारा निकलवाना आवश्यक हो जाता है, नहीं तो गुर्दे में पानी भरना, वृक्क गोणिका शोथ आदि उपद्रव हो जाते हैं।