परिचय
यदि किसी कारण से प्रोस्टेट ग्रन्थि में प्रदाह हो जाये तो उसे ‘प्रोस्टेटाइटिस (प्रोस्टेट ग्रन्थि की सूजन) कहते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो बुढ़ापे में तकलीफ देती है। इस बीमारी में ठीक तरह से मूत्र त्याग न होना, बार-बार मूत्र त्याग के लिये जाना आदि बहुत सी तकलीफें इस रोग के कारण होती हैं। हमारे देश में पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रन्थि बढ़ जाने की समस्या बहुत ही व्यापक है। भारत में तकरीबन 20 से 60% लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। 60 साल की उम्र वाले करीब 60% लोग इस समस्या से ग्रस्त रहते हैं।

रोग के प्रमुख कारण
इसके निम्न सम्भावित कारण हैं-
1. चोट लगना ।
2. घुड़सवारी के समय कठोर चीज पर अधिक समय तक बैठना ।
3. आस-पास के अंगों से संक्रमण ।
4. पेशाब के रास्ते कैथेटर या औजारों का अनुचित प्रयोग ।
5. जीवाणु द्वारा संक्रमण ।
6. अत्यधिक कामुकता के कारण भी प्रोस्टेट ग्रन्थि में सूजन आ सकती है। एक निश्चित समयांतर पर किया गया सम्भोग* ऐसी सूजन को दूर करता है।
7. अक्सर 50 वर्ष की अवस्था के बाद पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रन्थि का आकार स्वमेव बढ़ने लगता है।
रोग के प्रमुख लक्षण
रोगग्रस्त स्थान पर पीड़ा होती है। पेशाब का दबाव पड़ने से पीड़ा अधिक होती है। बार-बार पेशाब आता है जब मरीज पेशाब करने जाता है तो दर्द के साथ बड़ी कठिनाई से कुछ बूँदें ही उतर पाती है। मरीज को रात के समय पेशाब ज्यादा व बार-बार आता है। मूत्र की धार कमजोर होती है और वह दूर न जाकर नीचे गिरती है। पेशाब में जलन होती है। रोगी मूत्र-विसर्जन में कठिनाई का अनुभव करता है । मल-विसर्जन में भी दर्द महसूस होता है। मूत्र मार्ग से अक्सर चिपचिपा पदार्थ निकलता है। कुछ बूँदें कपड़े में लग जाती हैं। यदि संक्रमण के कारण रोग है तो प्रारम्भ में बुखार की शिकायत रहती है। दो दिन बाद रोगी जननांगों एवं गुदा के पास दर्द महसूस करने लगता है। मल त्याग के समय पीडा, पेशाब में जलन, पेशाब करते समय कतरे गिरना, अचानक पेशाब आना बन्द हो जाना आदि लक्षण होते हैं।
रोग की पहचान
मूत्र त्यागने में तकलीफ। बार-बार मूत्र आने, मूत्र की धार ठीक न बनने, रात को मूत्र त्यागने के लिये कई बार उठने, मूत्र त्यागने के बाद भी मसाना खाली होने की तसल्ली नहीं होने जैसे लक्षण प्रोस्टेट ग्रन्थि में वृद्धि के संकेत हैं। आजकल इसका निश्चयात्मक निदान (डायग्नोसिस) अल्ट्रासाउन्ड’ करके हो जाता है । इससे ग्रन्थि वृद्धि की माप का पता चल जाता है। मूत्र प्रवाह की रुकावट को जानने के लिये ‘यूरोफ्लोमीटरी’ ‘सिस्टोमीटरोग्राम’ और ‘सिस्टोस्कोपी’ जाँचें जरूरी हैं

रोग का परिणाम
1. पेट के निचले भाग में पीड़ा का बना रहना, जो प्रमुखतः मूत्र मार्ग के संक्रमण के कारण होता है।
2. मूत्र के अचानक रुक जाने के कारण मूत्र नली पर दबाव बढ़ जाता है जिसके कारण पैदा होने वाले दबाव से मूत्र का निकलना बिलकुल बन्द हो जाता है। ऐसे में कैथेटर डालकर तुरन्त मूत्र निकालना पड़ता है क्योंकि यह एक आपात स्थिति (Medical Emergency) है ।
3. कभी-कभी मूत्र त्याग करने से पहले अथवा बाद में एक-दो बूँद रक्त आ जाता है।
4. मूत्र में रुकावट के कारण गुर्दों में भी कुप्रभाव पड़ता है और उसमें संक्रमण हो जाता है।