परिचय –

सम्भोग काल में समय से पहले ही वीर्य का स्खलित हो जाना शीघ्रपतन कहलाता है। विख्यात यौन रोग विशेषज्ञ जॉनसन के अनुसार जब व्यक्ति अपने आप पर नियन्त्रण नहीं रख पाता और बिना अपनी पत्नी को सन्तुष्ट किए स्खलित हो जाता है तो इस बीमारी को शीघ्रपतन कहा जाता है। इसमें बार-बार प्रयास करने पर असफलता ही हाथ लगती है शीघ्रपतन का रोगी अपने पर नियन्त्रण नहीं रख पाता और उत्तेजना के चरम पर पहुँचने के पहले ही स्खलित हो जाता है।
इस स्थिति में, शिश्न के योनि में प्रवेश करने पर या योनि के बाहर ही वीर्य निकल जाता है। शीघ्रपतन को बहुत सी परिभाषाओं द्वारा बताया गया है-
1. ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति शिश्न (Penis) को योनि में डालने के पश्चात् 30 सैकेण्ड में ही वीर्य स्खलित कर दे।
2. शिश्न को योनि में प्रवेश के पश्चात् व्यक्ति पूरे एक मिनट तक अपने वीर्य को रोककरन रख सके।
3. हर व्यक्ति में इसकी कई स्थितियों है कुछ लोग योनि प्रवेश के पूर्व होने वाले वीर्यपात को, कुछ योनि प्रवेश के तुरन्त बाद होने वाले वीर्यपात को तो कुछ योनि में प्रवेश के (लिंग) 10-12 सेकेण्ड बाद होने वाले वीर्यपात को शीघ्रपतन मानते है।
4. रतिक्रिया में प्रवृत्त होने से लेकर वीर्य पतन तक का समय 2 से 4 मिनट तक का होता है, जो सामान्य है, पर योनि प्रवेश के 2 मिनट में ही यदि स्खलन हो तो वह शीघ्रपतन कहलाता है। पर कुछ लोगों को तो यौन क्रिया में संलग्न होने के पूर्व प्राक्क्रीड़ा में ही वीर्यपात हो जाता है, यह भी शीघ्रपतन है। चरम सीमा पर पहुँचने के पूर्व व्यक्ति कई कालों से गुजरता है, इसमें क्रमशः व्यक्ति उत्तेजित होता जाता है और चरम सीमा पर उत्तेजना के कारण उसके लिंग की कुछ विशेष माँसपेशियों संकुचित हो जाती है और वह स्खलित हो जाता है। परन्तु यही अवस्था शीघ्रपतन के व्यक्ति में इतनी कम होती है कि उत्तेजना काल के साथ ही चरम सीमा पर पहुँचते ही वह स्खलित हो जाता है। इसी वजह से वह ज्यादा देर सैक्स क्रिया जारी नहीं रख पाता और दोनों को आनन्द नहीं मिलता है।
5. अधिकतर 30 से 60 सैकेण्ड का समय किसी स्त्री की कामोत्तेजना को शान्त करने के लिए पर्याप्त रहता है। अगर लिंग को योनि में डालने से पूर्व भली प्रकार प्रेम-क्रीड़ा (Precoital Sex Play) की गई हो और स्त्री ज्यादा कामोत्तेजित हो गई हो। ऐसे में स्त्री जल्दी ही चर्मोत्तसीमा में पहुँच जाती है।
* पुरुष के यौन सम्बन्धी रोगों में शीघ्रपतन सबसे प्रमुख है। एक अनुमान के अनुसार भारत के आधे से अधिक पुरुष इस रोग का शिकार है। प्रायः देखा गया है कि यौन शिक्षा के अभाव में किशोरावस्था अथवा युवावस्था में बहुत से लोग ना समझी में ऐसी कुछ गल्तियों कर डालते हैं जिससे उनका वैवाहिक जीवन दुखमय हो जाता है।
* सामान्यतया स्वस्थ और सामान्य पुरुषों में सहवास काल 4 मिनट से लेकर 10 मिनट तक होता है। इस काल के मध्य स्त्रियों भी स्वयं को उत्तेजित कर लेती है। (यदि पूर्व में उत्तेजना नहीं है तो) तथा सन्तुष्टि भी प्राप्त कर लेती है। स्त्रियों की काम तुष्टि के लिए यह पर्याप्त समय होता है। कुछ पुरुष संयम और नियम का पालन करके समागम अवधि बहुत अधिक बढ़ा लेते हैं। 1989 में स्वीडन में गुप्त रूप से सम्पन्न हुई एक स्त्री-पुरुष समागम प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले दम्पत्ति (पति-पत्नी) का समागम काल 25 घण्टे 37 मिनट था।
शीघ्रपतन के रोगी का समागम काल बहुत कम होता है। प्रायः इस रोग के मरीज दो मिनट भी स्त्री-प्रसंग (सहवास) नहीं कर पाते। कभी-कभी तो यह 10-15 सकेण्ड में ही रखलित हो जाते हैं या पत्नी के शरीर पर हाथ रखते ही। शीघ्रपतन कोई वंशानुगत या छूत का रोग नहीं है, इसके लिए पुरुष स्वयं दोषी है। शीघ्रपतन का रोगी चाहकर भी अपने वीर्य को रोक नहीं पाता और स्खलित हो जाता है। एक व्यक्ति को शीघ्रपतन से पीड़ित माना जाता है अगर वह अपने वैवाहिक जीवन में कम से कम 50% बार अपनी पत्नी की कामोत्तेजना को शान्त नहीं कर पाता। इसमें समय की कोई सीमा नहीं होती। फिर भी-
#सम्भोग की समयावधि कितनी होनी चाहिए, कितनी देर बाद स्खलन होना चाहिए अथवा कितनी जल्दी स्खलन होने से शीघ्रपतन माना जाता है, इसका कोई मापदण्ड नहीं है। इसे समय में नहीं मापा जा सकता है। स्त्री को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाने के लिए 60 से 100 प्रहार (लिंग को योनि के अंदर भीतर करने और बार-बार बाहर की ओर खींचने के समय तेजी से धक्के लगाना-प्रहार कहलाता है) करने आवश्यक हैं। अतः यदि कोई व्यक्ति 60 प्रहार यानी धक्के नहीं लगाता है और उससे पूर्व ही स्खलित हो जाता है तो उसे शीघ्रपतन का रोगी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वीर्य को झटके के साथ स्खलित होना चाहिए। शीघ्रपतन में वीर्य झटके के साथ स्खलित नहीं होता है। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार एक पूर्ण स्वस्थ सामान्य पुरुष के लिए निरन्तर संघर्षण बने रहने की अवस्था में सम्भोग क्रिया में वीर्य की रुकावट का समय 2 से 5 मिनट है।
रोग के कारण

यह वस्तुतः एक मानसिक समस्या है। चिंता, यौन सम्बन्धों के प्रति अज्ञान, स्वयं को अपूर्ण समझना, युवावस्था में हस्तमैथुन व स्वप्नदोष होने पर वीर्यनाश का भय भी शीघ्रपतन की स्थिति उत्पन्न करता है। कई बार लम्बे समय तक घर से दूर रहने पर और लौटने पर सहवास हेतु तैयार होने पर भी शीघ्र वीर्यपात हो जाता है। अधिक उतावली व उत्तेजना भी शीघ्रपतन की स्थिति के लिए कुछ हद तक जुम्मेदार है। पति-पत्नी में तनाव या कलह भी इसकी एक वजह है। कभी-कभी मधुमेह जैसी बीमारी भी इसकी एक वजह हो सकती है। गलतफहमियों एवं लम्बे समय तक उत्तेजक वातावरण में रहकर भी सहवास न कर पाने की असमर्थता भी इसका कारण हो सकती है। अप्राकृतिक या गुदामैथुन, अति स्त्री प्रसंग, बाजीकरण अथवा वीर्यवर्धक औषधियों का अधिक सेवन करना, शरीर में स्वाभाविक रूप में वीर्य का अधिक बढ़ जाना, कब्ज रहना, (कब्ज रहने की स्थिति में जुलाव लेकर पेट साफ करते रहना चाहिए)। सम्भोग के समय स्त्री की उदासीनता, निष्क्रियता, उसकी सम्भोग क्रिया में रुचि न लेने से वह स्वयं तो स्खलित हो नहीं पाती जिससे पुरुष के ठीक समय पर स्खलित हो जाने पर भी वह शीघ्र स्खलित हुआ माना जाता है।
रोग के लक्षण

शीघ्रपतन का रोगी अन्दर से हमेशा भयभीत रहता है उसमें घबराहट व परेशानी से चिड़चिड़ाहट रहती है। स्त्री के साथ सम्भोग करने में उसे बहुत ही कम समय लगता है। जननेन्द्रिय को छूने मात्र से ही वीर्य स्खलित हो जाता है अथवा लिंग को योनि में डालते ही या जननेन्द्रिय की सुन्दरता का अवलोकन मात्र से ही वीर्य का पतन हो जाता है। ( सहलाना, सूंघना, छूना तो दूर रहा) केवल आलिंगन मात्र करने से वीर्य का स्खलन हो जाता है। बाद में सम्भोग क्रिया ध्यान मात्र से ही वीर्य निकल जाता है। रोगी जितना ज्यादा जल्दी या घबराहट दिखाता है उतनी ही जल्दी वीर्य का पतन होता है। इससे रोगी में निराशा आ जाती है। कुछ लोग ऐसे भी हैं (स्त्री-पुरुष दम्पत्ति) गर्भधारण के भय से कपड़े पहने पहने अपनी कामोत्तेजना को शान्त करने की कोशिश करते हैं, इससे पुरुष को शीघ्रपतन आदि हो जाते हैं। शीघ्रपतन का असर स्त्री में भी पड़ता है। क्योंकि शीघ्रपतन में ग्रस्त पुरुष की पत्नी जब बार-बार कामोत्तेजित होती है परन्तु उसकी काम वासना शान्त नहीं होती तो उसके वस्ति और उदर क्षेत्र में लगातार दर्द बना रहता है।
रोग का परिणाम

पति-पत्नी में तनाव या कलह भी इसका एक परिणाम होता है। कभी-कभी मधुमेह जैसी बीमारी भी इसकी एक वजह हो सकती है। इन स्थितियों के रहते हुए बार-बार प्रयत्न करने पर भी असफलता ही मिलती है। इससे पति में कुंठा तथा हीन भावना घर कर जाती है और पति यौन सम्बन्धों से या पत्नी के पास जाने से ही कतराने लगता है। शीघ्र पतन से पुरुष में आत्मग्लानि होने लगती है तथा वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है और आत्महत्या तक करने का जघन्य अपराध कर बैठता है। कुछ वर्षों बाद पुरुष एक गम्भीर नपुंसकता से ग्रस्त हो जाता है। दरअसल शीघ्रपतन नपुंसकता का एक पूर्व लक्षण है। यदि इस समय पुरुष की उपयुक्त चिकित्सा हो जाती है तो फिर उसको नपुंसकता का सामना नहीं करना पड़ता है।