परिचय

इसमें जीभ की जड़ की तरफ गले के भीतर, गलकोष में सूजन हो जाती है। इसको ग्रसनी शोथ भी कहते हैं।
रोग के कारण

अशुद्ध वायु वाले वातावरण में रहने, गले की बीमारी, दाँत में मवाद पड़ जाने से, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम वाले लोगों में कुछ औषधियाँ जैसे-आयोडाइड, पोटेशियम, मरकरी, आर्सेनिक आदि के सेवन से यह रोग होता है। इसके अतिरिक्त शीत या ठंड लग जाने, क्षोभ उत्पन्न करने वाले खाद्य-पेय प्रयोग करने, गर्म-गर्म चाय पीने, गर्म कॉफी लेने, विषैली गैस का प्रभाव, बरसात में भीगने, अत्यधिक बर्फीला पानी पीने से भी रोग की आशंका रहती है।
यह रोग प्रायः स्ट्रेप्टोकोकस हीमोलीटीकस, स्टेफाइलोकोकस ओरियस न्यूमोकोकस जीवाणुओं द्वारा होता है।
रोग के लक्षण

निगलने में कष्ट, कान में पीड़ा बुखार गले में खराश, सिर दर्द, बदन दर्द, खसीक आवाज में भारीपन, नाडी तेज, हरारत पानी निगलते समय कष्ट, बोलते समय कष्ट क में काँटे से चुमते नज़र आना, गले में जकड़न की अनुभूति, गले में कुछ फैसा-कैसा सा अनुभव होना, कंठ सूखने की शिकायत जैसे लक्षण होते हैं। गले की लसीका ग्रन्थियों में वृद्धि व दबाने से कष्ट होता है। रोगी को शोथ स्थान पर जलन होती है। रोगी बार-बार खाँस कर अथवा कंठ खखार कर गला साफ करने का प्रयास करता है। प्रातःकाल रोगी कंठ में कफ का अनुभव करता है। रोगी अक्सर कब्ज की शिकायत करता है। (Consti- pation)। तालू और कौवा काला नजर आते हैं।
रोग की पहचान

जाँच करने पर जीभ के आस-पास के सभी स्थान फूले मिलते हैं एवं लाल। उन पर लसदार स्राव चिपका रहता है। गलकोष में पककर घाव हो जाते हैं।
रोग का परिणाम

रोग पुराना हो जाने पर शोथ स्थान पर क्षत उभर आता है तथा क्षत में से मवाद, पीव निकलने लगती है। इसके अतिरिक्त इस रोग में स्वरयंत्र में सूजन, वृक्कशोथ, पायूमिया, हृदयावरण शोथ आदि उपद्रव हो जाते हैं।