NEONATORUM ASPHYXIA-(नवजात शिशु का श्वासावरोध)

What is neonatal asphyxia

नवजात शिशु का श्वासावरोध या Neonatal asphyxia एक प्राणसंबंधी स्थिति है जो शिशु के पैदा होने के बाद होती है। इसके कारण शिशु को सामान्य श्वसन नहीं हो पाता और वह ऑक्सीजन की कमी का सामना करता है। इसके मुख्य लक्षणों में निःश्वास, गहरी नींद, शांति, नीली त्वचा और मुख हो सकते हैं। यह गंभीर हो सकता है और चिकित्सीय सहायता की आवश्यकता होती है।

लम्बे प्रसव के कारण अथवा शिशु के विकृत अवतरण के कारण, प्रसव के कारण जब अपरा (Placenta) प्रसव से पूर्व ही गर्भाशय की इण्डोमेट्रियम से छूट कर अलग हो जाता है तो शिशु को माता के रक्त से अपरा द्वारा ऑक्सीजन का मिलना भी बन्द हो जाता है। इस स्थिति में शिशु 7 से 10 मिनट तक ही जीवित रह सकता है। यदि इस अवधि के अन्दर ही प्रसव न हो गया तो उसका श्वासावरोध होकर मृत्यु हो सकती है।

श्वासावरोध (Asphyxia) दो प्रकार का होता है-

1. एस्फाइक्सिया लिवीडा

2. एस्फाइक्सिया पेलीडा

1. एस्फाइक्सिया लिवीडा- इनमें सर्वप्रथम श्वसन क्रिया प्रभावित होती है और ऑक्सीजन न मिल पाने से दूषित अशुद्ध रक्त का संचार शरीर में होते रहने से शिशु का शरीर नीला पड़ जाता है। यह श्वासावरोध की प्रथमावस्था है। इसमें शिशु श्वास लेने की कोशिश नहीं करता। है अथवा बहुत कम। परन्तु हृदय की धड़कन तेज मिलती है। थोड़ा बहुत हिलने-डुलने की कोशिश मिल सकती है।

2. एस्फाइक्सिया पेलीडा-यदि प्लेसेन्टल सरक्यूलेसन अधिक देर तक अवरुद्ध रहता है तो गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन बहुत देर तक न मिल पाने के कारण दूषित रक्त का संचार अधिक देर तक शिशु के शरीर में होता रहता है। इसमें शिशु का शरीर सफेद, भूरा और कान्तिहीन हो जाता है। यह श्वासावरोध की एक तीव्र अवस्था है। इसमें शिशु गहरी बेहोशी की अवस्था में मिलता है।

अपरिपक्व प्रसव के शिशु प्रायः इस प्रकार की एस्फाक्सिया के शिकार होते मिलते हैं। इस अवस्था का शिशु प्रसव होने पर नीले एवं सफेद रंग का अथवा भूरे रंग का दिखायी पड़ता है। उसके शरीर की माँसपेशियों में कोई कसाव व तनाव नहीं मिलता है, बल्कि पूरा शरीर लिजलिजा सा मिलता है। उसका गुदा मार्ग खुला मिलता है। उसमें से मल निकला मिल सकता है। शिशु में श्वसन क्रिया तो होती ही नहीं है। हृदय की धड़कन बहुत मंद, अनियमित तथा क्षीण प्रकृति की मिलती है।

Causes of neonatal asphyxia

यह विकृति निम्न कारणों से होती है-

1. लम्बे प्रसव के कारण अथवा शिशु की विकृति अवस्था ।

2. योनि मुख पर शिशु के सिर और • वेजाइनल रिंग के बीच फँस कर दबाव पड़ने से अपरा द्वारा रक्त के साथ ऑक्सीजन का संचार अवरुद्ध हो जाता है अथवा स्वयं नाल (Cord) में ही फदा लगकर कस जाने से प्लेसेन्टल सरक्यूलेशन बंद हो जाने से ऑक्सीजन का मिलना बन्द हो जाता है और उसका श्वासावरोध होने लगता है।

3. प्रसव से पूर्व Eclampsia जन्य आक्षेप के परिणामस्वरूप ।

4. शिशु के मस्तिष्कगत श्वसन केन्द्र में ही विकृति होने के कारण भी शिशु में श्वासावरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

Symptoms of neonatal asphyxia

पूर्व श्वासावरोध के बताये गये कारणों से ऐसे शिशु का जब प्रसव होता है तो वह निष्क्रिय अथवा निर्जीव सा दिखाई पड़ता है। बड़ी देर तक वह रोता ही नहीं, न ही उसमें श्वास चलता मिलता है। यदि गौर से देखा जाये तो उसके हृदय की मन्दगति क्षीण प्रकृति की सुनाई पड़ती है अथवा अधिक विलम्ब होने पर शिशु मृत (Dead) ही मिलते हैं। जो शिशु मृत तो नहीं होते किन्तु बड़ी देर तक थकित, श्रमित एवं निष्क्रिय से रहते हैं।

प्रसव के समय यदि प्रसूता को मार्फीन (Morphine) अथवा पेथीडीन (Pethidine) आदि शामक (Sedative) इन्जेक्शनों का प्रयोग प्रसव के 3 घण्टे के अन्दर किया गया है अथवा बेहोशी की औषधियों का प्रयोग किया गया है तो इन औषधियों का माता के रक्त में संचरण होने के कारण शिशु के रक्त में इसका प्रभाव पहुँच जाता है और प्रसव के समय शिशु बेहोश मिलता है जोकि प्रसव के उपरान्त स्वस्थ शिशु की भाँति रोता चिल्लाता नहीं।

यदि शिशु का कम दिनों का प्रसव होता है तो शिशु का सम्पूर्ण विकास न हो पाने के कारण उसके मस्तिष्क में श्वसन केन्द्र अविकसित होने के कारण प्रसव होने पर शिशु श्वसन क्रिया नहीं कर पाता।

रोग की पहचान

उपरोक्त कारणों के अनुसार बताये गये लक्षणों के मिलने पर निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। शिशु में कोई हलचल नहीं मिलती है और उसका शरीर नीला होता है।

रोग का परिणाम

श्वसन केन्द्र निष्क्रिय हो जाने की स्थिति में शिशु प्रसवोपरान्त साँस नहीं ले पाते। इस स्थिति में शिशु को श्वसन क्रिया तथा उसकी चेतना बहुत ही मुश्किल से आ सकती है। लेकिन यदि साँस लेना शुरू भी कर लिया गया हो तो भी बहुत ही मन्द एवं अनियमित गति से चलती मिलेगी अर्थात् कभी श्वास लेगा तो थोड़ी देर बिलकुल नहीं लेगा। उसके शरीर के अंग, ओंठ तथा नाखून आदि नीले तथा काले दिखायी देते हैं। हाथ-पैरों में ऐंठन के झटके आदि आते मिलेंगे। अन्ततः 8-10 घण्टे में शिशु की मृत्यु हो जाया करती है।

दूध डालना (REGURGITATION)

[Note: कृपया डॉक्टर की सलाह, निदान और इलाज के लिए हमें संपर्क करें।]

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