परिचय –

सिर के आधे भाग में तेज दर्द, जो सूर्य की रोशनी के साथ-साथ बढ़ता है, साथ में रोगी को उल्टियाँ भी लग जाती हैं।
रोग के प्रमुख कारण

यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है। मासिक धर्म से इसका सम्बन्ध हो सकता है। गर्भावस्था के कुछ महीनों में आधासीसी के दौरे पड़ते देखे जाते हैं। प्रसव के कुछ महीनों में भी इस रोग से कुछ महिलायें पीडित रहती है। रजोनिवृत्ति से गुजर रही महिलायें भी इस रोग से ग्रस्त होती देखी जाती है। जो महिलायें अधिक उपवास करती है प्रायः आधासीसी से पीडित रहती है। मानसिक चिंता, तनाव गम, उत्तेजना आदि के कारण भी यह रोग होता देखा गया है। शोध अध्ययनों से पता चला है कि यह रोग पैतृक भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक मानसिक परिश्रम, मूत्र सम्बन्धी रोग, नेत्र सम्बन्धी रोग, वात रोग, धातु सम्बन्धी बीमारियों, अत्यधिक मैथुन करना. रक्त विकार, अपचन, अफारा, हमेशा कब्ज रहना, उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क ट्यूमर, अर्बुद, आहार-विहार की गड़बड़ी, गन्दे स्थान वास, एक ही स्थान पर निरन्तर बैठे रहना आदि कारण भी रोगजनक है।
रोग के प्रमुख लक्षण

इस रोग का दौरा सूर्य की तेजी के साथ चलता है और सूर्य की तीव्रता कम होते ही धीरे-धीरे अपने आप समाप्त हो जाता है। रात को सिर दर्द नहीं होता है। आधासीसी के दौरे कुछ दिन या कुछ सप्ताह अथवा मास के अन्तराल के पश्चात् भी पड़ते हैं। कुछ रोगियों को दौरे कई-कई दिनों तक लगातार पड़ते रहते हैं। शोध अध्ययन से पता चला है कि इस रोग का आक्रमण अधिक तनाव की वजह से होता है जो लोग मानसिक तनाव में रहते हैं वे निश्चय ही इस रोग के शिकार होते हैं। अधिकांश मामलों की जाँच करने पर पता चला है कि अधिकतर रोगी बायें ओर के कपाल वेदना की अधिक शिकायत करते हैं। दर्द के में समय रोगी को जाड़ा अनुभव होता है तथा जम्हाइयाँ आती हैं। कै, मितली और वमन होता है। रोगी का मन खिन्न रहता है किसी काम में मन नहीं करता। कभी-कभी शरीर के आधे हिस्से में कमजोरी या दोनों हाथों सुन्नता आ जाती है। कुछ खाने को मन करता इसलिये कमजोरी आ जाती है।
रोग की पहचान

आधे सिर में दर्द, जो सूर्योदय के साथ-साथ बढ़ता है एवं दोपहर के समय सबसे तेज हो जाता है। दर्द निवारक औषधि के प्रयोग का कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। ऐसा दर्द कई दिनों या महीनों के अन्तराल पर उठता है।
रोग का परिणाम

हालांकि यह रोग असाध्य नहीं है, लेकिन फिर भी इसकी चिकित्सा कठिन अवश्य है। औषधियों के बल पर रोगी को संतुष्ट रखा जा सकता है, कुछ रोगी ठीक भी हो जाते हैं और वर्षों तक इस रोग का दौरा नहीं पड़ता ।