MASTURBATION- हस्तमैथुन

क्या होता है? हस्तमैथुन

हाथ से लिंग का घर्षण कर वीर्यपात करने की क्रिया को हस्तमैथुन कहते हैं। पुरुष उत्थित लिंग को हाथ की मुट्ठी में दबाकर मुट्ठी को लिंग के मुँह से जड़ तक ले जाते हैं और फिर जड़ से लिंग के मुँह तक ले जाते हैं। यह क्रिया बार-बार और जल्दी-जल्दी की जाती है। इसकी दूसरी परिभाषा के अनुसार- अपने लिंग को मुट्ठी में दबाकर उसके चर्म को इधर से उधर सरकाने या घिसने से इन्द्रिय के अग्रभाग (सुपारी) पर रगड़ लगती है। लिंग की सुपारी अत्यन्त संवेदनशील होती है, इसलिए रगड़ पड़ने पर उत्तेजना की सेहरत मालूम होती है और परम आनन्द की अनुभूति होती है। इस प्रकार से लिंग का घर्षण करके रति सम्भोग का सुख प्राप्त करने को हस्तमैथुन कहते हैं। इसे अंग्रेजी में मास्टरबेसन, हैंड प्रैक्टिस (H.P.) तथा हिन्दी और उर्दू में हतलस और हस्तमैथुन आदि कहते हैं। कैंटशाकर ने इसे स्वास्थ्यकर मैथुन प्रकृति का सूत्रपात कहा है।

Masturbation

हस्तमैथुन का विकास, उत्पत्ति एवं लोकप्रियता

किशोरावस्था के आने पर पुरुष में वीर्य का निर्माण होने लगता है, उनमें हॉर्मोन उत्पादक ग्रन्थियाँ बहुत सक्रिय हो उठती हैं जिससे तेजी के साथ रक्त में सैक्स हार्मोन्स मिलने लगते हैं जिसके कारण किशोरों के शिश्न (लिंग) में अधिक उत्थान (खड़ा होना) होने लगता है और उसके मस्तिष्क में यौन तनाव उत्पन्न होने लगते हैं प्रकृति वीर्य निष्कासन के लिए मार्ग खोजती है। इसके लिए स्वाभाविक मार्ग नारी-संसर्ग है परन्तु नारी-संसर्ग के अभाव में प्रकृति दूसरे मार्ग अपना लेती है। ये स्वप्नदोष और हस्तमैथुन है।

हस्तमैथुन की क्रिया मानव समाज के आदिकाल से लेकर अब तक चली आ रही है। इसे प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी अवश्य ही करता है। कुछ व्यक्ति जीवन में एक दो बार ही हस्तमैथुन करते हैं और दूसरे रोज या एक दिन में दो तीन बार तक वर्षों से करते चले आ रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि स्कूल-कॉलेज के छात्रों में से 95-96 प्रतिशत तक इस मार्ग को अपनाते है। युवा वर्ग, किशोर वर्ग के 80 से 90 प्रतिशत लोग हस्तमैथुन के शिकार होते है यह सब जानते है यहाँ तक कि यह बात भी बिल्कुल सही है कि लगभग सौ नहीं तो 99 प्रतिशत लोग अपने जीवन काल में कभी न कभी अपनी कामुक उत्तेजनाओं को शान्त करने के लिए हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं। इन तथ्यों से यह बात साबित हो जाती है कि पुरुषों में खासतौर पर किशोर व युवा वर्ग में कामवासना की तृप्ति (चाहे वह क्षणिक एवं अधूरी ही क्यों न हो) हस्तमैथुन के द्वारा ही होती है

ऐसा क्यों है। की किशोरावस्था में कदम रखते-रखते पुरुष एक अनोखा बदलाव, मस्ती की अनुभूति अपने शरीर व मानस में करता है। यदि उसकी परिस्थितियाँ (सामाजिक व मानसिक) साधारण है तो अण्डकोषों में ‘टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) उत्पन्न होने लगता है, जो रक्त में मिलकर हमारे मस्तिष्क में स्थित पीयूष ग्रन्थि पर अपना प्रभाव छोड़ता है। इस प्रक्रिया में कामुक उत्तेजनाएँ जन्म लेती हैं। इन एन्ड्रोजन नामक हार्मोन्स के द्वारा थोड़ी-सी उत्तेजना प्राप्त होते ही लिंग में उत्थान (खड़ा हो जाता है। सुबह उठने से पूर्व भी शिश्न (लिंग) खड़ा हो जाता है। उसका कारण सर्वथा भिन्न है। यह मूत्राशय में मूत्र भर जाने के कारण संवेदनायें जब मस्तिष्क तक पहुँचती है, तो उनके प्रभाव में लिंग उत्थान पाता है। मूत्र विसर्जन के साथ ही लिंग शिथिल होकर सामान्य अवस्था में आ जाता है। इस उम्र में थोड़ा-सा स्पर्श कामुक दर्शन, कामुक वचन, अथवा कामुक विचार मात्र से ही लिंग उत्तेजित हो उठता है।

कुछ दशकों पहले का समाज अपना रहन-सहन व पारिवारिक जीवन याद करे। जब टेलीविजन का चलन शुरू नहीं हुआ था, कामुक दर्शन, भाषा, व्याकुल, प्रवृत्तियाँ आदि बहुत कम मात्रा में केवल 10% मात्र थीं, तो अतिशयोक्ति न होगी परन्तु आजकल हर घर में टेलीविजन है. अश्लील दृश्यों से भरे अश्लील गाने, द्विअर्थी संवाद आदि कोमल अमानस को कैसे-कैसे कामुक थपेड़े देते हैं आप सब परिचित है उस समय के 10 के मुकाबले में अब 70-80 मात्रा में हमारे आसपास पाये जाते हैं (20-30% हमें पाश्चात्य देशों की सभ्यता में गिना जाता है)। इस सारे वातावरण का विशेषकर युवा मानस पर दुष्प्रभाव पड़ता ही है, वह अपने आपको दो विपरीत परिस्थितियों में अत्यधिक उत्तेजित पाता है। बहुत भीड़ में जहाँ स्पर्श जनित उत्तेजनायें उसे बेचैनी से भर जाती है अथवा एकदम अकेले में जहाँ उसका मानस कामुक विचारों में खो जाता है। इन सबका असर एक ही होता है। कामुक विचार आते ही वह लैंगिक रूप से उत्तेजित हो उठता है। उसका लिंग लैंगिक रूप में चैतन्य हो जाता है। यदि उसे स्त्री से यौन सम्बन्धी एक-दूसरे से मिलने का सुख प्राप्त हो, सामाजिक वैधन कोई न हो, तो सम्भोग परिणति है परन्तु हमारा समाज जटिल हो चुका है. विवाह से पूर्व संभोग की आज्ञा नहीं देता।

किशोरावस्था में युवावस्था में कामुक उत्तेजनाओं को कैसे शान्त करें ये कार्य पुरुषों के लिए बहुत आसान है – वे गुसलखाने या शौच के अकेलेपन का अथवा अपने शयन कक्ष के अकेलेपन के एकान्त का फायदा उठाते हैं। यदि उन्हें एकान्त नहीं मिलता तो वे अपनी चारपाई के शोके में ही अपना काम चला लेते हैं अथवा कहीं न कहीं ऐसा सुयोग जुटाते हैं कि कुछ क्षण के लिये उन्हें एकान्त प्राप्त हो सके जो कि कठिन नहीं है। मित्र योनि के स्थान पर अपने हाथ का प्रयोग करते हैं। अधिकतर लोग अपने उत्तेजित लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़कर चारों  ओर से बराबर का दबाव डालकर लिंग की ऊपरी त्वचा को जल्दी-जल्दी ऊपर नीचे सरकाकर आनन्द का अनुभव करते है अर्थात् थोड़ा दबाव और बढ़ाकर लिंग मुण्ड के नीचे स्थित Frenum पर घर्षण एक खास आवृत्ति से करते है-इस क्रिया में मुट्ठी के सम्पर्क में लिंग की त्वचा लचीली होती है, एक विशेष बिन्द तक फिर त्वचा का खिंचाव कम करके उसे नीचे लाया जाता है और बारम्बार करने पर उत्तेजना अपने चरम बिन्दु तक पहुँच जाती है-परिणति स्खलन में होती है।

हस्तमैथुन की क्रिया लिखने पढ़ने, सुनने में जटिल भले ही लगे, परन्तु कर्ता के हाथों में यह बड़ी आसानी से तथा लगभग प्राकृतिक रूप से संचालित होती है। इस प्रक्रिया के साथ-साथ पुरुष अपने मानस में न जाने क्या-क्या सपने देखता है और पूरी प्रतिक्रिया संवेदनशील, जटिल तथा कामुक हो उठती है। इस सबके साथ आसपास के वातावरण व समय एवं मानस में चल रहे विचारों का यथेष्ट प्रभाव पड़ता है। कुछ समय के लिए वह व्यक्ति अपने आसपास की सब चीजें भूलकर अपने आनन्द में मगन हो जाता है और स्खलन के साथ ही यह पारदर्शी ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाता है।

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Causes of masturbation

प्राकृतिक सुविधा नारी संसर्ग के अभाव में यौन-प्रवृत्ति को शान्त करने के लिए अविवाहित व्यक्ति इसे करते हैं। स्त्री सम्भोग के अभाव में शादी न होने पर लोग इसे अपनाने लगते है अंडरवियर था ‘लंगोट’ का कसा हुआ पहनने से लिंग रगड़ खाकर उत्तेजित होता है और हस्तमैथुन करने की प्रेरणा मिलती है। शिश्नमुण्ड के पीछे शिश्न की त्वचा के नीचे मैल (Smegma) जमा होने से वहाँ पर बहुत खुजली होती है जब वहाँ पर खुजलाया जाता है तो घर्षण से आनन्द की अनुभूति होती है और फिर व्यक्ति आनन्द प्राप्त करने के लिए स्वयं ही हस्तमैथुन करने के लिए प्रेरित हो जाता है। पुरुष घर-गृहस्थी की जुम्मेदारी से भागने के लिए हस्तमैथुन करने लगता है। दो बालकों को इकट्ठा सुला देने पर एक-दूसरे के शरीर से लिंग के घर्षण से उन्हें आनन्द मिलता है और वे अकेले में हाथ से घर्षण करना आरम्भ कर देते हैं और हस्तमैथुन के आदी हो जाते हैं।

Symptoms of masturbation

कभी-कभी हस्तमैथुन करने से कोई हानि नहीं होती है। इसकी एक माह में चार बार या सप्ताह में एक बार करने की सीमा है। अत्यधिक हस्तमैथुन करने से वही सब बातें पैदा हो जाती है जो अत्यधिक स्त्री सम्भोग करने से होती है अर्थात् शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी आ जाती है। सिर में दर्द रहने लगता है। किसी भी काम को करने को दिल नहीं चाहना, स्मरण शक्ति मारी जाना, किसी भी उत्तेजना से दिल धड़कने लगना. जरा सा दौड़ने में दम फूलना, आँखों में जलन रहना, मन में एक प्रकार का भय समाया रहना, शरीर के जोड़ों में व्यथा, हमेशा लेटे रहने का दिल करना, हल्का-हल्का सा बुखार रहना, आँखों के चारों ओर हल्की कालिमा सी आ जाना, एकांतप्रिय होना, स्त्रियों की ओर देखने और उनसे बातें करने का साहस न होना, लिंग का टेढ़ा हो जाना, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष या आंगिक नामर्दी आदि विकार हो जाते हैं।

#आजकल नवयुवक कामुक फिल्में देखकर, कामुक साहित्य पढ़कर, सहशिक्षा आदि के द्वारा या युवतियों के सम्पर्क में रहने से, उत्तेजक पदार्थों का उपयोग करने से कामोत्तेजित होकर नारी संसर्ग न मिलने पर युवक इस राह पर चल पड़ते हैं। हस्तमैथुन की अत्यधिक त लगने पर वह दूसरों से शर्माने लगता है। वह एकान्त स्थान में चोरों की तरह आशंकित मन से इस कार्य को करता है और वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है। उसका लिंग आकार में छोटा हो जाता है। जो व्यक्ति लम्बे अर्से से हस्तमैथुन करता चला आ रहा है। वह धीरे-धीरे इसमें लिप्त हो जाता है और समझता है कि उसे इसी प्रकार वीर्य स्खलन द्वारा उचित एवं पूर्ण सन्तोष प्राप्त होता है जिसका परिणाम यह होता है कि शादी के पश्चात् उसे नारी सम्भोग करने में पूर्ण सन्तोष प्राप्त होगा अथवा नहीं, इस बात की शंका हो जाती है।

# लम्बे समय से हस्तमैथुन करते रहने का एक दुष्परिणाम यह भी होता है कि वीर्यपात के आनन्द में निरन्तर कमी होती जाती है और एक समय ऐसा आता है जब काम तृष्णा की पूर्ति का आभास भी शेष नहीं रह जाता।

हस्तमैथुन के दुष्परिणाम

हस्तमैथुन को करते समय युवक अपने उत्तेजित लिंग को मुट्ठी के बीच पकड़कर तब तक नीचे ऊपर करता है जब तक कि वीर्य स्खलन नहीं होता। इस प्रकार लिंग की नसों पर हाथ तथा अँगुलियों का काफी दबाव पड़ने के कारण लिंग की रचना, रक्तवाहिनी नसों, नाड़ी जाल तथा शरीर के समस्त अंगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। लिंग तथा अण्डकोषों में विकृति पैदा हो जाती है। अधिक दिनों तक हस्तमैथुन करते रहने से यौन अंगों के साथ शारीरिक तथा मानसिक विकास रुक जाता है। अधिक दिनों तक हस्तमैथुन से वीर्य में शुक्राणुओं की कमी भी हो जाती है। लिंग में टेढ़ापन, पतलापन या ऊपर का भाग मोटा, नीचे का पतला आदि कई विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं।

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हस्तमैथुन पर नियंत्रण

हस्तमैथुन करना आपके अपने मन का कार्य है, मन पर नियंत्रण करके इसे छोड़ दें। पहले धीरे-धीरे इसकी आवृत्ति को घटायें। प्रतिदिन करने से सप्ताह में दो या तीन बार करें, तत्पश्चात् सप्ताह में एक बार करें और फिर बिल्कुल छोड़ दें। अपने को मन पसन्द खेलों में लगायें या अच्छे कार्यों एवं स्वास्थ्य बनाने में सलग्न रहें। ऐसा कार्य करें जिससे आप थक जायें और आपका ध्यान इस तरफ न जायें।

कामुक साहित्य न पढ़ें, कामुक एवं ब्लू फिल्मों को न देखें, युवतियों के सम्पर्क में न रहें, उनका चिंतन करना छोड़ दें। यदि अविवाहित हैं तो शादी कर लें।

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