जानिए की फूलबहरी क्या होता है
ल्यूकोडर्मा, जिसे हिंदी में सफ़ेद दाग या फूलबहरी के नाम से भी जाना जाता है, एक त्वचा की स्थिति है जहां त्वचा के क्षेत्रों में मेलानिन (त्वचा का प्राकृतिक रंग देने वाला पिगमेंट) का उत्पादन कम हो जाता है या बंद हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, त्वचा पर सफेद या हल्के रंग के पैच बन जाते हैं, जो आमतौर पर समय के साथ आकार में बढ़ सकते हैं।
ल्यूकोडर्मा के दो मुख्य प्रकार हैं:
1. विटिलिगो (Vitiligo): यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से त्वचा के मेलानोसाइट्स को नष्ट कर देती है।
2. आइडियोपैथिक ल्यूकोडर्मा या इडियोपैथिक गौटेट हाइपोमेलानोसिस: यह आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ होता है और इसका कारण निश्चित नहीं होता है।
ल्यूकोडर्मा की उपस्थिति कोई स्वास्थ्य जोखिम नहीं उत्पन्न करती, लेकिन यह कभी-कभी कॉस्मेटिक चिंता और आत्म-सम्मान के मुद्दों का कारण बन सकती है। उपचार में आमतौर पर मेलानिन उत्पादन को प्रोत्साहित करने वाली दवाएं, लाइट थेरेपी, और कुछ मामलों में त्वचा की सर्जरी शामिल हो सकती है।

Causes of Leucoderma
यह त्वचा में मेलनिन (melanin) नामक रंजक पदार्थ की कमी के कारण होता है। इस रंजक पदार्थ को मेलिनोसाइट्स कहते हैं। यह त्वचा की कोशिकायें बनाती हैं। जब किसी कारणवश मेलिनोसाइट्स अपना कार्य करना बन्द कर देती हैं तो श्वेत कुष्ठ की उत्पत्ति होती है। पाश्चात विद्वानों के अनुसार इसके निम्न कारण हो सकते हैं-
1. रोग से लड़ने की क्षमता (Immunity) में कमी।
2. न्यूरोहार्मोन की कमी के कारण
3. रक्त में मौजूद विषाक्त पदार्थों द्वारा मैलिनोसाइट्स का नष्ट होना अथवा अक्रियाशील होना । इस रोग में त्वचा की सतह पर जगह-जगह वर्णकहीनता (Depigmented) के पैच दिखाई देते हैं। अधिकतर ऐसे पैच शरीर के खुले भागों-चेहरा, गर्दन, हाथ या कर्पर (Olecra- non) पर पाये जाते हैं। जननेन्द्रिय या कक्षाओं के पुटक भी अक्रान्त हो सकते हैं। ऐसे पैच ज्यादातर दो तरफा होते हैं. लेकिन इनका साइज बड़ा या छोटा (कुछ मिलीमीटर से लेकर कुछ सेन्टीमीटर) तक के व्यास वाले या उससे भी बड़े हो सकते हैं।
4. टायरोसिनेज इन्जाइम की क्रियाशीलता का रक्त में मौजूद फिलोनिक कम्पाउन्ड जैसे विषाक्त पदार्थों द्वारा नष्ट किया जाना जो कि रंजक पदार्थ बनाने में बहुत आवश्यक होता है।
ये पहले लाल रंग के दाग तथा धीरे-धीरे श्वेत कुष्ठ का रूप ले लेता है। सफेद दाग बनने से शरीर भद्दा दीखने लगता है। इसे समाज में घृणा की दृष्टि से देखते हैं जो कि मात्र एक सामाजिक बुराई है। यह संक्रामक रोग नहीं है और न ही इससे किसी प्रकार की हानि होती है।

रोग की पहचान
इस रोग के उपर्युक्त लक्षण इतने स्पष्ट हैं कि इसको आसानी से पहचाना जा सकता है। श्वेत कुष्ठ का बहुत कुछ पता तो ज्यादातर सफेद दागों के निरीक्षण से ही हो जाता है। परन्तु इलाज से कितना फायदा है यह जानने और शोधकार्य हेतु निम्न परीक्षण किये जा सकते हैं-
1. सम्बन्धित त्वचा की ‘बायोप्सी’ (Biopsy) से उस स्थान की मेलिनोसाइट्स कोशिकाओं की क्रियाशीलता का पता लगाया जा सकता है।
2. रक्त परीक्षण द्वारा रक्त में टायरोसिनेज इन्जाइम की कमी का पता लगाया जा सकता है।
3. विटामिन्स तथा मिनरल्स की कमी भी रक्त परीक्षण द्वारा पता हो सकती है।

रोग का परिणाम
इससे कई रोगियों का सारा शरीर ही सफेद हो जाता है। यह कष्टदायक रोग है। यह बीमारी अक्सर आजीवन चला करती है। कभी-कभी यह अपने आप ठीक हो जाती है। यदि चिकित्सक, रोगी, औषधि और उपस्थाता का अच्छा समन्वय हो तो रोगी को रोगमुक्त किया जा सकता है। जैसी कि लोगों की पुरानी धारणा है कि यह रोग ठीक नहीं होता है। असाध्य है, यह पूर्णतः मिथ्या विचार है। यह अवश्य है कि इस रोग की चिकित्सा में समय कुछ ज्यादा अवश्य लगता है।
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