काला बुखार क्या है?
प्राणघातक संक्रामक रोग जिसमें बार-बार ज्वर आता है। प्लीहा व यकृत बढ़ जाते हैं। रक्ताल्पता, वजन कम होना और आखिरी अवस्था में शरीर का काला पड़ जाना।

Causes of Kala-azar
यह रोग एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में ‘फ्ले- बोटोमस अर्जेन्टिपिस’ नामक बालू मक्खी के माध्यम से फैलता है। रोग उत्पन्न करने वाला जीवाणु ‘लीश्मेनिया डोनोवनाई’ होता है। जब संक्रमण शरीरव्यापी होता है तो इसे विसरल लिश्मेनिएसिस कहते हैं।
यह प्रायः बच्चों व पुरुषों में, महिलाओं की अपेक्षा अधिक पाया जाता है।
यह रोग उष्ण कटिबन्धीय देशों, भारत, अफ्रीका, अमेरिका तथा रूस में पाया जाता है। भारत में यह रोग आसाम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र तथा मद्रास में पाया जाता है ।
Symptoms of Kala-azar
साधारणतः रोग की शुरूआत धीमी गति से होती है। पर यह आगे चलकर पुनरावर्ती एवं चिरकारी हो जाता है। साधारणतः ज्वर अनियमित प्रकार का होता है, लेकिन विरामी या अल्पविसर्गी भी हो सकता है। 24 घण्टों में ज्वर का उतार-चढाव दो बार होना भी इसकी एक विशेषता होती है। ज्वर होने के पहले कंपकंपी होना, उल्टी होना तथा साथ- साथ पसीना छूटना भी सम्भव है। यकृत और प्लीहा बढ़ जाते हैं। पर प्लीहा की वृद्धि निरन्तर होती रहती है। अक्सर यह वृद्धि इतनी अधिक हो जाती है कि प्लीहा दायें इलियक खात तक भी पहुँच जाती है।
अल्परक्तता बढ़ती जाती है, पेशी गलन तथा कमजोरी होना भी निश्चित ही रहता है। शोफ और जलोदर भी सम्भव है। त्वचा सूखी और अक्सर वर्णाकित हो जाती है (विशेषकर चेहरे पर)। इसलिये शरीर का रंग काला पड़ जाता है। केस रूखे- सूखे, चमकविहीन और तेजी से झड़ने लग जाते हैं। अक्सर प्रवाहिका होती है। भूख बढ़ी होती है। लगभग 5% केसों में ज्वर या अन्य लक्षणों के खत्म हो जाने के काफी दिनों बाद छोटे-छोटे धब्बे त्वचा के ऊपर उभर आते हैं।

रोग की पहचान
कालाजार की पहचान निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर की जा सकती है-
1. तीन लक्षणों के त्रिक-पुनरावर्ती अनियमित ज्वर, प्लीहा-यकृत वृद्धि एवं अतिवर्णकता (धब्बों) के आधार पर ।
2. एल्डिहाइड या/और चोपड़ा जाँच सका- रात्मक होने पर।
3. रक्त के लेप में या अस्थिमज्जा या प्लीहा- छिद्रण से प्राप्त तरल के लेप में एल. डी. पिण्डों के मिलने पर ।,
रोग का परिणाम
कई साल बाद त्वचीय लिश्मेनिएसिस होती है। जो तीन प्रकार की होती है-
1. विवरण रहित मेक्यूल ।
2. सूजन भरी पिटिका ।
3. चेहरे पर लेपरेसी के जैसे नोड्यूल कान या चेहरे पर हो जाते हैं।
4. क्षय रोग।
5. मुख के निकट अल्सरेटिव घाव हो जाते हैं।