क्या होता है? बाँझपन (बच्चे न होना)
सन्तान उत्पन्न न हो सकने की दशा बन्ध्यता या बाँझपन (Sterility), सन्तानहीनता कहलाती है। इसमें मैथनु शक्ति तो होती है पर सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती। इसमें मरीज किसी बीमारी के कारण बच्चा पैदा करने में असमर्थ होता है। यदि उसका कारण ठीक कर दिया जाये तो गर्भाधान की सम्भावना रहती है। इसको प्रसवन अशक्ति भी कहते हैं।

एक व्यक्ति को प्रसवन अशक्ति युक्त (Infertile) तब कहते हैं जब – (1) बिना गर्भ निरोधक उपाय का प्रयोग किये हुए प्राकृत एक साल तक वैवाहिक सम्बन्ध के पश्चात भी गर्भाधान न हो (2) स्त्री गर्मिणी तो हो जाती है लेकिन बार-बार गर्भपात हो जाता है या (3) स्त्री के एक सन्तान हो लेकिन उसके बाद उसे बार-बार गर्भपात हो जाता हो या इसके बाद गर्भाधान न होता हो।
10 से 15 प्रतिशत विवाह सन्तानरहित होती है। 40 प्रतिशत के लगभग सन्तान न होने की जिम्मेदारी पुरुषों पर होती है। अगर एक व्यक्ति जिसकी कि प्रजनन क्षमता कुछ कम है, दूसरे ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है, जिसकी प्रजनन शक्ति सामान्य से अधिक हो तो. गर्भाधान होने की सम्भावना होती है। लेकिन अगर दोनों ही दम्पत्ति प्रसवन अशक्ति युक्त (Infertile) हैं तो गर्भाधान नहीं होगा। चिकित्सा के द्वारा प्रसवन या प्रजनन अशक्ति (Infertility) ठीक की जा सकती है। षण्ढता’ (Sterility) नहीं। षण्ढता से तात्पर्य पूर्ण रूप से सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता से रहित होना है।

रोग के प्रकार-यह रोग दो प्रकार का होता है-
शुक्राणु
1. प्राथमिक (Primary infertility)- यानि गर्भधारण कभी नहीं। हुआ हो।
2. द्वितीयक (Secondary)- जब गर्भाधान एक बार हो गया हो या बीच में ही गर्भपात हो गया हो, तत्पश्चात् कोई गर्भाधान न हुआ हो।
# जब विवाह के तीन-चार वर्ष बाद भी महिला माँ नहीं बन पाती तो उस पर बाँझ होने का टप्पा चालू हो जाता है। एक स्त्री के लिये इससे बढ़कर अपमानजनक स्थिति और नहीं है। इसके बाद उसे भाँति-भाँति से प्रताड़ित किया जाने लगता है। कई स्थितियों में पति भी उससे विमुख होने लगता है। वह दूसरा विवाह करने की तैयारी कर लेता है। स्त्री अपनी कमजोरी समझते हुए विरोध करने की स्थिति में नहीं होती। उसे हर प्रकार के हालातों को स्वीकार करना पड़ता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि स्त्री के अतिरिक्त पुरुष में भी बाँझपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
सन्तानहीनता के तीन प्रमुख कारण हैं-

1. पुरुष के शुक्राणुओं (Sperms) में कमी
2. स्त्री की नसों (फैलोपियन ट्यूब) में रुकावट
3. डिम्ब बनने की प्रक्रिया में खराबी ।
इसके अलावा कुछ और भी कारण होते हैं। उन सबका उल्लेख यहाँ जरूरी नहीं है। क्योंकि वे कारण बहुत कम देखे गये हैं। जहाँ तक इलाज का सवाल है यदि पुरुष में शुक्राणु ही नहीं बनते हों तो वह पिता नहीं बन सकता। यदि स्त्री की बच्चेदानी ही न हो या अविकसित हो तो वह किसी भी प्रकार माँ नहीं बन सकती।

पुरुषगत सन्तानहीनता के कारण
पुरुष जननेन्द्रिय का अविकसित या अर्द्धविकसित होना, पुरुष का नपुंसक होना, जनेन्द्रिय का अहर्ष तथा स्तम्भन का अभाव आदि इन कारणों से मैथुन में पुरुष समर्थ नहीं होता है। यदि पुरुष मैथुनक्षम हो तो निम्नलिखित अन्यान्य विकारों के कारण भी वह गर्भाधान कराने में समर्थ नहीं होता। जैसे-
# शुक्रवाहिनी नलिकाओं में अवरोध-यह पूयमेह (Gonorrhoea) जनित रोगों के कारण से हो सकती है। इस कारण पुरुष बीज स्त्री बीज से सम्पर्क नहीं करता है।
# शुक्र में शुक्रकीटों का अभाव- यह अवस्था पूयमेह (Gonorrhoea) के उपद्रव रूप में उपाण्ड शोथ के कारण होती है। क्वीचत मधुमेह, क्षय, फिरंग एवं आन्त्रिक ज्वर मप्स के कारण मात्रा का कम होना ।
# शुक्र में शुक्रकीटों की अल्पता एवं शुक्र की मात्रा का कम होना।
Note कभी-कभी संक्रमणवश अथवा अन्य कारणों से शुक्राणु अपनी गतिशीलता खो देते हैं। स्त्री के गर्भाधान के लिये शुक्राणुओं का स्वस्थ होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इन्हें 2 फुट लम्बी शुक्रवाहिका को पार करके जनन पथ से होते हुए योनि द्वार के द्वारा गर्भ नलिका तक जाना पड़ता है। इसके साथ-साथ उनमें लगभग 48 घण्टे जीवित रहने की क्षमता भी होनी चाहिये।