हाइपरटेंसिव एन्सेफैलोपैथी क्या है?

हाइपरटेंसिव एन्सेफैलोपैथी एक मस्तिष्क संबंधी स्थिति है जो अत्यधिक उच्च रक्तचाप के कारण होती है। इसे त्वरित या दुर्दम अति रक्तदाब भी कहते हैं । (मेलिग्नेंट हाइपरटेन्शन) । इसमें रोगी का ब्लड प्रेशर खासतौर पर डायस्टोलिक 140mm of Hg तक या उससे भी ज्यादा हो जाता है जिससे रोगी के जीवन को खतरा हो जाता है।
यह अति रक्तदाब का सबसे गम्भीर स्वरूप होता है। इसमें व्याधि न सिर्फ अति तीव्र रूप में होती है, बल्कि उसकी प्रगति भी अति तीव्र होती है और पूर्वानुमान भी भयंकर होता है। अगर उपचार न हो तो चन्द्र महीनों में (अधिकतम 2 वर्षों के अंदर मौत निश्चित होती है।
रोगी की प्रतिक्रियायें
यह कम उम्र में (साधारणतः 30 से 40 वर्ष के बीच) होता है और पुरुषों में अपेक्षाकृत अधिक होता है। सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर पारे का 240mm से अधिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर पारे का 140 mm से अधिक होता है। बार-बार बायाँ निलयपात होना, आँखों की रोशनी का अत्यन्त मन्द हो जाना एवं तीव्रगति से वृक्कपात (Renal Failure) शुरू हो जाना, इस अवस्था की विशिष्ट एवं अनिवार्य प्रतिक्रियायें होती हैं। अति रक्तदाबी मस्तिष्क विकृति (Hypertensive Encephalopathy) होना तथा सीरम क्रिएटिनिन का बढ़ना भी निश्चित होता है।
गतिविधि एवं उपद्रव
अति रक्तदाब के रोगी अति रक्तदाब के कारण नहीं, बल्कि अति रक्तदाब के किसी न किसी उपद्रव के कारण मरते हैं।
Hypertensive encephalopathy causes
यह रोग, मानसिक तनाव, गर्भावस्था की विषाक्तता, फियोक्रोमोसाइटोमा, रीनल हाइपरटेंशन आदि कारणों से उत्पन्न होता है। शल्य-कर्म के पश्चात् भी कभी-कभी ऐसी संकटमयी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह गम्भीर स्थिति किसी भी प्रकार के अति रक्त दाब में हो सकती है जैसे-अज्ञात हेतुक (Essential), सुदम (Benign) या दुर्दम (Malignant), वृक्कीय अति रक्तदाब, गर्भावस्था की विषरक्तता आदि।
hypertensive-encephalopathy symptoms
रोगी को सिर में तेज दर्द के साथ उबकाइयाँ व उल्टियाँ होती हैं। तन्द्रा, आलस्य, भ्रम, अस्थायी, अंगघात सदृश्य अभिव्यक्ति और अपस्मार सदृश्य आक्रमण होता है। सिर में भारीपन व चक्कर आना, आँखों में धुंधलापन और अच्छी प्रकार दिखाई न देना, रेटिना में रक्तस्राव (Retinal haemorrhage), दौरा पड़कर एक तरफ का पक्षाघात, कोमा आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
# अचानक बहुत ज्यादा रक्तचाप बढ़ने पर दिमाग की नसें फट सकती हैं और सेरीब्रल हीमोरेज से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
रोग की पहचान
जब किसी अति रक्तदाब से पीड़ित रोगी में सहसा तीव्र शिरःशूल, वमन, तन्द्रा और आक्षेप उपस्थित हों और साथ में अत्यधिक रक्तदाब हो तो अतिरक्तदाबी संकट अर्थात्, हाइपरटेंसिव इन्सेफेलोपैथी का संदेह करना चाहिए।
CARDIO VASCULAR COLLAPSE-हृदय की धड़कन का बन्द होना
चिकित्सा सिद्धान्त

सामान्यतः इस रोग में अति रक्तदाब को कम करने वाली औषधियों, मूत्रल औषधियों तथा आक्षेप निरोधी औषधियों (Anti Cunvulsive drugs) का उपयोग किया जाता है।
यद्यपि इस रोग का निर्णय आसान है पर अर्ध सन्यस्त (Semicomatose) व्यक्ति में कठिनाई हो सकती है। ऐसी स्थिति में कटिवेधन अधिक उपयोगी होता है।
उपचार- चिकित्सा का प्रथम उद्देश्य रोगी के ब्लड प्रेशर को सामान्य लाना होता है। विशेषकर डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर को इसको औषधि द्वारा 90mm Hg तक लाया जाता है।
साथ ही इसकी चिकित्सा निम्न पद्धति पर की जाती है-
1. रक्तचाप को कम करने वाली औषधियों का प्रयोग ।
2. आक्षेप विरोधी दवाइयाँ ।
3. मूर्च्छित रोगी की देखभाल ।
4. कारण को दूर करना ।
5. मस्तिष्क में रक्तस्राव होने पर उसकी चिकित्सा।
6. बढे हुए इण्टाक्रेनियल तनाव को कम करना।
रोगी को सर्वप्रथम इन्जेक्शन डायजोक्साइड (Diazoxide) 300 मिग्रा. शिरा मार्ग (L.V.) से दे इसका असर 2-3 मिनट में प्रारम्भ हो जाता है। तत्पश्चात इन्जेक्शन हाइड्राजिन (Hydralzine) 10 मिग्रा. शिरा मार्ग से दें। इसको दुबारा भी दे सकते हैं। 24 घंटे में कुल मात्रा 50 मिग्रा, दे सकते हैं। इस औषधि को हार्ट अटैक एवं कोरोनरी आर्टरी डिजीज’ वाले रोगी में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
इसमें पेशाब लाने वाली औषधियाँ विशेष उपयोगी होती हैं। इसके लिए फुरोसेमाइड (लेसिक्स) की । गोली मुँह द्वारा प्रातः समय दें। जरूरत पड़ने पर इसका इन्जेक्शन दिया जा सकता है (इंजे. लासिक्स 2ml. माँसपेशीगत या शिरा मार्ग से)। इससे इण्ट्राक्रेनियल तनाव कम हो जाता है।
NEPHROTIC SYNDROME-नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम
यदि रक्तचाप कम न हो रहा हो तो कै. ‘डेपिन’ (Depin नि. कैडिला हेल्थ) 10 मिग्रा. को तोड़कर उसकी औषधि रोगी की जीभ के नीचे रख दें। इससे तुरन्त रक्तचाप में कमी आ जाती है। यह निफेडीपीन का पेटेन्ट योग है।
यदि रोगी को आक्षेप आ रहे हैं-इंजेक्शन डायजीपान 2 मिली० शिरा मार्ग से दें अथवा इन्जेक्शन फीनोवार्विटोन 100-200 मिग्रा० माँसपेशीगत दें। जब रोगी का ब्लड प्रेशर नियन्त्रण में आ जाता है तो रोगी को मुँह द्वारा मेन्टेन्स थेरापी पर रक्खा जाता है। साथ ही रोगी को अपना ब्लड प्रेशर नियमित रूप से चैक कराते रहना चाहिए।