क्या होता है? अण्डकोष वृद्धि / जलवृषण

आम भाषा में हाइड्रोसील को पोतों में पानी भरना कहते हैं। इसमें वृषण कोष में (In Testicle) द्रव एकत्र होता रहता है जिससे वह फूलकर नीचे को बढ़ जाता है। इसमें रोगी अण्डकोष में धीरे-धीरे बढ़ने वाली सूजन की शिकायत करता है। हाइड्रोसील रोग में पुरुष का अण्डकोष बढ़कर नीचे लटक जाता है और कभी-कभी उसमें बहुत तेज दर्द होता है जिससे शरीर को बड़ा कष्ट, नित्यकर्म करने में भारी असुविधा, चलने-फिरने या शारीरिक परिश्रम करने में काफी दिक्कते तथा बहुत बड़ी मात्रा में दिक्कते तथा मन में बहुत बड़ी ग्लानि का अनुभव होता है।

Causes of Hydrocele
हल्की चोट लगने, ज्यादा साइकिल चलाने या घुड़सवारी से फाइलेरिया रोग वृषण सम्बन्धी रोग दिन-रात रिक्शा चलाना, बहुत अधिक चलना वजनदार सामानों को उठाना, विशेषकर भारी बोझ उठाकर सीधा हो जाना या लेकर चलना, अधिक या निरन्तर स्त्री सम्भोग पुरानी कोष्ठबद्धता के कारण खूब जोर लगाकर एवं कूठकर मल त्याग करना, वीर्य की कमजोरी या पतलापन के कारण निरन्तर स्वप्न दोष होते रहना, सर्वागशोथ, बहुत ज्यादा दव बनने ट्यूनिका बेजाईनलीस में भूषण प्रक्रिया के काम करने से, इन्फेक्शन होने से, पेरीटोनियल केविटी के साथ जुड़े होने पर अथवा लिम्फेटिक सिस्टम द्वारा द्रव को भली-भाँति ड्रेन न कर पाने से हाइड्रोसील की उत्पत्ति होती है।
Symptoms of Hydrocele
वृषण (Testicle) फूलकर बड़ा हो जाता है। अधिकांश केसिस में एक तरफ का वृषण फूला हुआ मिलता है, परन्तु कुछ व्यक्तियों में हाइड्रोसीन दोनों तरफ का हो सकता है। रोगी को चलने-फिरने व काम करने में परेशानी होती है। नीचे की तरफ हमेशा भारीपन रहता है। खिचाव से रोगी को दर्द का अनुभव होता है। जब इन्फेक्शन या चोट लगने से हाइड्रोसील होता है, तब रोगी को ज्वर रहता है। हाइड्रोसील के रोगी को स्त्री प्रसंग (सहवास करने) में दिक्कत होती है। रोगी को भारी काम करने या वजन उठाने में तकलीफ होती है। हाइड्रोसील छूने में लचीलापन लिये हुए होता है। हल्की सी चोट मारने पर दूसरी तरफ लहर सी प्रतीत होती है। आकार में हाइड्रोसील नींबू से लेकर तरबूज के आकार तक का मिलता है।

निदान एवं परीक्षण
इसमें साधारणतः 50 ग्राम से 4 किलो तक पानी पैदा हो जाया करता है। अण्डकोष खूब बढ़ जाने पर तरबूज की तरह दिखायी देता है। जाँच करने पर हाइड्रोसील का ऊपरी सिरा आरामपूर्वक महसूस किया जा सकता है। अण्डकोष में एक तरफ लाइट डालने से दूसरी तरफ देखने पर साफ लाल रंग का प्रकाश दिखायी देता है।
यदि अण्डकोष में रक्त या पूय की उपस्थिति हो गई है तो उसकी पारदर्शिता (ट्रांसलुसेन्सी) समाप्त हो जाती है। लाइट से जाँचने पर अपारदर्शक जान पड़ेगा। इस अवस्था में रोगी को दर्द तथा ज्वर की शिकायत रहती है।
वैसे यह रोग प्रायः पूरे भारत में व्याप्त है, किन्तु उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों तथा बिहार में इससे पीड़ित अधिक लोग देखे जाते हैं। कटक (उड़ीसा) तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में 6 से 18-19 किलोग्राम तक भार वाले काफी स्थूलकाय फाइलैरियल हाइड्रोसील के रोगी देखने को मिलते हैं। बहुत-से लोगों का मानना है कि खड़े-खड़े और केला या कटहल खाकर पानी पीने से भी हाइड्रोसील का रोग हो जाया करता है। यद्यपि शरीर रचना के दृष्टिकोण से तो यह बात अनुचित एवं असंगत मालूम पड़ती है। तथा इसे कई बार जाँच करके भी देखा गया है. किन्तु कोई संतोषजनक पोजिटिव (पक्ष) में) परिणाम नहीं निकला। अतएव इस प्रकार के कारण में कहाँ तक सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। अनुसन्धान चालू है।
