परिचय

इसमें शरीर के एक तरफ के अंग जैसे एक तरफ का हाथ, एक तरफ का पैर, एक तरफ की आधी जीभ, एक तरफ का आधा चेहरा, एक तरफ की आँख और इसी तरह दूसरे अंग भी रोगग्रस्त हो जाते हैं।
रोग के कारण

आकस्मिक रूप से अर्धांग पक्षाघात निम्नलिखित कारणों से हुआ करते हैं-
1. प्रमस्तिष्क थ्राम्बोसिस (Cerebral thrombosis)
2. प्रमस्तिष्क रक्तस्रोत रोधन (सेरेब्रल एम्बोलिज्म)
3. प्रमस्तिकगत् पथरी (सेरेब्रल हेम-ओरेज)
4. मस्तिष्कशोथ (Encephalitis)
5. आघात (Trauma)
6. उच्च रक्तचापीय एन्केफलोपैथी / उच्च रक्तचाप ।
7. हिस्टीरिया ।
8. मधुमेह रोग की अन्तिम अवस्था ।
9. दिमाग की झिल्ली का प्रदाह तथा मेरुरज्जा का प्रदाह ।
10. मूर्छा भी इसका एक कारण है। 11. मस्तिष्क की चोट या आघात से भी पक्षाघात का दौरा पड़ जाता है।
रोग के लक्षण

पूर्व रूप-इस रोग के पूर्व रूप में उच्च रक्त
चाप (High blood pressure) का इतिहास मिलता है। इसके अतिरिक्त कभी-कभी मस्तिष्क के एक भाग में रक्तसंचार में कमी के हो जाने से शरीर के किसी एक भाग में अल्पकालीन निर्बलता आ जाती है। कभी-कभी रोगी को एक पैर या हाथ में सुन्नता की अनुभूति होती है। कभी-कभी रोगी जमीन पर गिरने का अनुभव करता है।

पक्षाघात के लक्षण-रक्तस्राव जनित मूर्च्छा किसी भारी श्रम के उपरान्त ही होती है। सिर में भारी दर्द होता है। ग्रीवा में स्तम्भ भी होता है। इसके बाद एक दो मिनटों में जो मूर्छा होती है वह एकाएक उत्पन्न होती है तथा गम्भीर स्वरूप की हुआ करती है। इसके बाद रोगी को वमन भी होता है। साँस लेने और छोड़ने में घुर्राने की सी आवाज होती है। रोगी के एक तरफ का गाल जिस ओर पक्षाघात ग्रस्त होता है दूसरी ओर की अपेक्षा अधिक फूलता है। यों तो सारा शरीर शिथिल होता है परन्तु जिधर का गाल फूलता है उधर की शाखायें (पैर आदि) अधिक शिथिल होती है। नेत्र के दोनों तारे (Pupils) फैले हुए होते हैं। पक्षाघातग्रस्त भाग की स्वाभाविक शक्ति लुप्त होती है एवं उक्त भाग का हाथ-पैर निर्जीव सा हो जाता है। लम्बर पंक्चर करने पर प्रमस्तिष्क मेरुद्रव (Cerebro spinal fluid) रक्त रजित दिखायी देता है जो मस्तिष्कगत रक्तस्राव का द्योतक होता है। उक्त भाग (हाथ-पैर के तलुये आदि को) को प्रबलता से खुजलाने पर भी उधर की टॉग मे लेशमात्र भी हरकत नहीं होती जबकि दूसरी टोंग में काफी हरकत मिलती है। रोगी का सारा शरीर शीतल तथा स्वेदयुक्त हो जाता है। तापक्रम एवं नाड़ी की गति मन्द पड़ जाती है। रोगी का रक्तभार बढ़ा हुआ मिलता है। रोगी के शरीर पर नीलापन झलकता है। धमनी अवरोध के कारण उत्पन्न पक्षाघात का रोगी क्रमशः बेहोश होता है।
रोग की पहचान

वैसे तो पक्षाघात के निदान के लिये किसी अन्वेषण की आवश्यकता नहीं होती लेकिन विक्षति का सही स्थान जानने के लिये कतिपय जाँचों की आवश्यकता होती है। मूत्र की साधारण जाँच, रक्त का WR, VDRL एवं लिपिड विश्लेषण अवश्य किया जाना चाहिये । खोपड़ी का सादा एक्स-रे एवं CT स्कैन किया जाना चाहिये ।
रोग का परिणाम

रक्तस्राव के कारण उत्पन्न पक्षाघात धमनी अवरोध की अपेक्षा कष्टसाध्य होता है। गम्भीर संस्तम्यता होने पर पटेला और क्लोनस (Clonus) मिल सकते हैं। अक्रान्त अर्धभाग में उदरीय परावर्तन (Abdominal reflex) लुप्त हो जाते हैं। किसी भी संवेदना का हास नहीं होता एवं मल-मूत्र का निकास ठीक होता है। एम.आई. आर. (M.I.R.) स्कैन की आवश्यकता पड़ सकती है।