HEAT STROKE-लू लगना

लू लगना क्या है

यह अधिकतर तेज कड़ी धूप में कठिन परिश्रम करने से होता है। इसमें तापक्रम को काबू में रखने वाली शारीरिक प्रक्रिया अधिक तापमान के कारण खराब हो जाती है जिससे पसीना आना बन्द हो जाता है। इसको सन स्ट्रोक (Sun Stroke), थर्मोप्लीजिया, हाइपरथर्मिया, ऊष्माघात आदि नामों से भी जाना जाता है।

Heat stroke

 Causes

यह अधिकतर तेज कड़ी धूप में, कठिन परिश्रम करने से होता है। ग्रीष्म ऋतु की तेज गर्म राजस्थानी हवाओं के सम्पर्क में आने से. (नंगे सिर) कड़ी धूप में घंटों काम करने या चलने से।

Symptoms

आरम्भ में रोगी को अधिक बेचैनी होती है। रोगी का जी मिचलाता है, उसे चक्कर आना और उल्टियाँ लगती हैं। मुँह व त्वचा शुष्क हो जाती है। तीव्र ज्वर (106° फा. तक) हो जाता है। सिर में पीड़ा और चेहरा लाल हो जाता है। शरीर ऐंठने लगता है और नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है। श्वास गहरी व अनियमित हो जाती है। पसीना निकलना बन्द हो जाता है।

मरीज को बार-बार प्यास लगती है। श्वास लेते समय घरघराहट की आवाज होती है। ज्वर की तीव्रता के कारण शरीर काँपने लगता है। उसे दौरे आने लगते हैं। चेहरा व होंठ नीले पड़ने लगते हैं। पीलिया व शरीर पर लाल-लाल धब्बे हो जाते हैं। मूत्र आना बन्द हो जाता है। आँखें लाल होती हैं। रक्तचाप सामान्य या ऊपर वाला बढ़ा हुआ होता है। प्रायः दायीं तरफ का हृदय अपना कार्य करना बन्द कर देता है। यदि त्वरित चिकित्सा न की गई तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

Heat stroke

निदान तथा जाँचें

लक्षणों के आधार पर रोग निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। लेबोरेटरी जाँच में श्वेत कणों में वृद्धि मिलती है, पेशाब में प्रोटीन की उपस्थिति तथा ब्लड यूरिया बढ़ा हुआ मिलता है। सीरम पोटेशियम कम होता है। कैल्शियम व फास्फेट की खून में मात्रा कम होती है। क्लोटिंग टाइम बढ़ जाता है। फेल्सिपेरम मलेरिया के लिए अवश्य जाँच करवा लें।

सहायक उपचार

रोगी को ठंडे और हवादार कमरे में लिटाकर उसके मुँह तथा सिर पर ठंडे पानी के छींटे मारें। सिर पर बर्फ की थैली रखी जा सकती है। खूब ठंडे पानी में निचोड़े गये तौलिए अथवा चादर को शरीर पर ढक दें, ताकि उसे ठंडक मिलती रहे। सिर एवं गर्दन तथा रीढ़ पर बर्फ की थैली अथवा ठंडे पानी की गद्दी का प्रयोग भी लाभकारी होता है। 

उपचार 

1. सामान्य उपचार – सबसे पहले मरीज को छाया में ले जायें और उसके कपड़े उतारकर ठंडे पानी में चादर भिगोकर शरीर पर लपेट दें या मरीज को गर्दन से नीचे-नीचे ठंडे पानी के टब में लिटा दें। बर्फ के पानी की पट्टियाँ करें। ऐसा तब तक करें जब तक कि तापमान 38°C (100° फा०) तक न आ जाये। पैरों के तलवों पर तेल की मालिश करें। रोगी को ठंडी और खुली हवादार जगह में ही रक्खें।

2. औषधि उपचार – रोगी के बढ़े हुए तापक्रम तथा कँपकँपी को कम करना आवश्यक होता है। इसके लिए इंजेक्शन क्लोर प्रोमाजीन 0.7 मिग्रा./किग्रा. से मात्रा को दो भागों में बाँटकर ½ घण्टे के अन्तराल पर दें (शिरा मार्ग से)। इंजेक्शन डेक्सामेथासोन (डेक्सोना) या इंजेक्शन आईडीजोन (IDPL) 4 मिग्रा. 8-8 घण्टे पर दें।

यदि मरीज को श्वास लेने में परेशानी आ रही हो तो आक्सीजन (Oxygen) दें। यदि पेशाब न आ रही हो तो मेनीटॉल (Mannitol) 1.5 ग्राम/किलो के अनुसार I/V ड्रिप से दें। खून की कमी होने पर ताजा रक्त चढ़ायें। अथवा DNS धीरे-धीरे आई. वी. ड्रिप से दें शरीर में ऐंठन के लिए इंजेक्शन लार्जेक्टिल’ या डायजीपाम लगाने चाहिए। यदि रक्त संचार निर्बल हो गया हो तो मेफेण्टीन (Mephentine) 15 मिली. अथवा बेरीटोल (Veritol) 20 मिग्रा. माँसपेशीगत दें। आक्षेप की स्थिति में सोडियम फीनोबावटोन 200 मिग्रा. माँसपेशीगत दें। यदि फिर भी कन्ट्रोल न हो तो पैराल्डिहाइड 8 मिली. I. M. दें।

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