Haemorrhage क्या है?
रक्तस्राव रक्त वाहिका के टूटने या क्षतिग्रस्त होने के परिणामस्वरूप संचार प्रणाली से रक्त की हानि को संदर्भित करता है। इसे बाहरी या आंतरिक प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। बाहरी रक्तस्राव वह होता है जिसमें रक्त शरीर से खुले घाव या घाव के माध्यम से बाहर निकलता है। इसकी गंभीरता मामूली कट और चोट से लेकर गंभीर रक्तस्राव तक हो सकती है, जैसे कि आघात या गंभीर चिकित्सा स्थितियों के परिणामस्वरूप आंतरिक रक्तस्राव। रक्तस्राव के प्रबंधन में रक्तस्राव के स्रोत की पहचान और नियंत्रण, रोगी को स्थिर करना और कभी-कभी सर्जिकल हस्तक्षेप और/या परिसंचारी रक्त की मात्रा को बहाल करने और होमियोस्टेसिस को बनाए रखने के लिए रक्त उत्पादों का प्रशासन शामिल है।

जब किसी भी कारण से शरीर में से रक्त निकल जाता है तो शरीर में कमजोरी आ जाती है। अत्यधिक रक्तस्राव से रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।

Types of haemorrhage

1.धमनीय रक्तस्राव (Arterial Haemorrhage) –
इसमें रक्त चमकदार लाल रंग का होता है और हृदय की धड़कनों के अनुसार तेज बहाव में निकलता है। धमनी के कटे हुए दोनों सिरों से रक्त बहता है।
2.शिरीय रक्तस्त्राव (Venous Haemorrhage) –
रक्त का रंग गहरा (काला) लाल होता है। यह एक समान गति से निकलता है। बड़ी शिराओं के रक्तस्राव में शरीर से ज्यादा मात्रा में रक्त निकल जाता है।
3.कोशिकीय रक्तस्राव (Capillary Haemorrhage
यह चमकीले लाल रंग का धीरे-धीरे निकलने वाला रक्त होता है। बहुत ज्यादा देर तक निकलने पर यह गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
Primary Haemorrhage
प्राथमिक रक्तस्राव तुरन्त होता है जैसे चोट, किसी कटी उँगली के या ऑपरेशन के चीरे से ।
रिएक्शनरी रक्तस्राव (Reactionary Haemo- rrhage)—
यह प्राथमिक रक्तस्राव के 24 घंटे के अन्दर होता है। यह अधिकतर रक्त के थक्के के अपनी जगह से हटने पर या टाँके खुल जाने पर होता है। इसका मुख्य कारण ब्लड प्रेशर का बढ़ना, तेज खाँसी या उल्टी आना होता है।
Secondary haemorrhage
यह 7 से 14 दिनों के मध्य होता है। धमनी की दीवार की कोशिकाओं के मर जाने से द्वितीयक रक्तस्राव होता है। इसका सबसे सामान्य कारण है जीवाणुओं द्वारा संक्रमण, अगर संक्रमण न हुआ हो तो किसी एन्ज़ाइम की क्रिया से भी हो सकता है। अंदरूनी रक्तस्राव (Concealed Haemorrhage ) – यह सेरीब्रल हीमोरेज, फीमर के फ्रेक्चर में लीवर और तिल्ली की चोट में मिलता है।
बाह्य रक्तस्राव
पेप्टिक अल्सर में, मुँह के द्वारा या मल में रक्त निकलना, गुर्दे की चोट में मूत्र में रक्त आना, योनि से रक्तस्राव आदि में होता है।

Singh and Symptoms
शरीर में सामान्यतया 5-8 लीटर रक्त. 100 प्रतिशत हीमोग्लोबिन सान्द्रता सहित होता है। 14-6 ग्राम प्रति डेसी लीटर (100 मिली.) हीमोग्लोबिन सान्द्रता 100% कहलाती है। यदि 18 लीटर रक्त काफी तेजी से अर्थात् आधे घण्टे में व्यर्थ बह जाये तो आमतौर से मृत्यु हो जाती है। फाइब्रिनोजन की अनुपस्थिति में गम्भीर रक्तस्राव हो सकता
गम्भीर रक्तस्राव होने पर निम्न लक्षण व चिन्ह होते हैं-
1. अत्यधिक सफेदपन-चेहरा सफेद (राख जैसा) पड़ सकता है और ठंडे पसीने से गीला हो सकता है।
2. ठंडापन- बहुत काफी हो सकता है और शरीर का तापक्रम 36°C (97°F) या इससे कम होता है।
3. हवा की भूख (Air Hunger) – रोगी सॉस लेने के लिए हॉफने लगता है। श्वसन तेज होता है और उसाँसें छोड़ी जाती हैं।
4. नाड़ी की गति-बहुत तेज होती है उसमें रक्त का आयतन कम होता है और बार-बार उसकी लय अनियमित हो जाती है।
5. रक्तचाप बहुत कम हो जाती है।
6. प्यास अत्यधिक लगती है।
7. अंधापन, कान में झनझनाहट तथा मूर्छा के लक्षण इसी क्रम में ये लक्षण मृत्यु से पहले पैदा होते हैं।
8. मूत्र कम मात्रा में बनता है।
9. केन्द्रीय शिरीय दवाब बहुत कम और बहुधा ऋणात्मक होता है।
10. हाथ-पैर की त्वचा ठंडी लगती है।
11. बहुत ज्यादा रक्तस्राव में नब्ज नहीं मिलती।

चिकित्सा विधि
1. रक्तस्राव की रोकथाम-सर्वप्रथम रक्तस्राव रोकने की व्यवस्था करें। इसके लिए प्रेशर और पैकिंग, आराम की सही स्थिति के द्वारा तथा शल्य चिकित्सा के द्वारा उस भाग को काट कर निकाल देने से सम्भव होता है। रक्तस्राव वाली जगह को कसकर बाँधने से रक्तस्राव रुक जाता है।
2. ब्लड वोल्यूम को पूरा करके – यह कार्य खून चढ़ाकर अथवा सेलाइन, डेक्स्ट्रान और प्लाज्मा देकर पूरा किया जा सकता है ।
3. रोगी को दर्द निवारक व नींद लाने वाली व्यवस्था करें।
आनुषांगिक तथा सहायक उपचार
स्थिति और आराम देकर रक्तस्राव रोकने में पर्याप्त सहायता मिलती है। पैरों की चोट में रोगी को आराम से लिटाकर उसके पैरों को शरीर के स्तर से ऊँचा कर दिया जाता है। इससे रक्तस्राव में कमी आती है। रोगी को पूर्ण विश्राम करायें। दर्द व नींद लाने वाली दवायें दें। पैर को या हाथ को ऊपर उठाने से शिरीर रक्तस्राव नियन्त्रित हो जावेगा। पैर की वेरीकोज शिरा के फटने से अचानक होने वाले रक्तस्राव को रोकने का यह विशिष्ट उपाय है।
उपचार
1. बाह्य रक्तस्राव की आपातकालीन चिकित्सा-
(i) सिर की चोट में – दवाब व पैकिंग से रक्तस्राव को रोकने की कोशिश करें। इसके रक्तस्राव का कारण मालूम करे। धमनी या शिरा को कैटगट या सिल्क के धागों से लिए- बाँधे। तत्पश्चात् घाव को टोंके लगा कर बन्द कर दें। एण्टीबायोटिक औषधि (यथा-प्रोवीडेन आयोडीन या सोनामाईसीन नियोस्पोरिन) से पट्टी कर दें। (ii) नाक से रक्तस्राव यह बच्चों में अधिक देखने को मिलता है।
नाक से रक्तस्राव- अधिक तेज ज्वर (Hyper Pyrexia) ज्यादा ब्लड प्रेशर में या नाक पर चोट लगने से रक्त आता है। ऐसे में त्वरित चिकित्सा की आवश्यकता होती है।
ऐसे में रक्तस्राव का कारण मालूम कर उसे दूर करें। रोगी को मुँह से श्वास लेने के लिए निर्देश दें। 5 मिनट तक अंगुलियों के द्वारा नाक को दबाकर रखें। रक्तसाव की स्थिति में कपड़े में बर्फ बाँध कर नाक के चारों ओर रखे। इससे खून की नसें सिकुड़कर रक्तस्राव बन्द हो जाता है। यदि फिर भी रक्तस्राव न रुके, तो रोगी की नेजल पैकिंग की जानी चाहिए। यह अस्पताल में ही सम्भव है। यह पैकिंग 2-3 दिन तक रहती है। आराम न मिलने पर शल्य चिकित्सा की जाती है।
(iii) कान से रक्तस्राव- कान के भीतरी भाग में चोट लगने से या पर्दे के फटने पर रक्तस्राव हो सकता है। ऐसी स्थिति में निम्न प्रकार से त्वरित चिकित्सा की जानी चाहिए- एण्टीबायोटिक्स ड्राप्स (यथा-निओस्पोरिन आई/ ईअर ग्राम ओटिक एसी ड्राप्स सिप्रोविडE/B ड्राप्स जेण्टामाइसीन EVE ड्रॉप्स) में भीगी रुई कान में डाल दें और रोगी को तुरन्त कान, नाक, गला रोग विशेषज्ञ के पास भिजवा देना चाहिए।
(iv) होंठ से रक्तस्राव-चोट लगने पर होंठ से रक्तस्राव हो सकता है। ऐसी स्थिति में त्वरित चिकित्सा हेतु चोट पर बर्फ लगायें अधिक कट जाने पर टाँके लगाये जाने चाहिए (Suturring) | (v) जीभ से रक्तस्राव-चोट लगने अथवा जीभ के दाँतों के बीच आ जाने से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसी स्थिति में आपातकालीन चिकित्सा इस प्रकार करें।
रोगी को बर्फ का टुकड़ा चूसने को दें। यदि जीम अधिक कट गई हो तो टाँके लगायें।
एण्टीबायोटिक ओरल सोल्यूशन (प्रोवीडेन आयोडीन सोल्यूशन) या सेवलान माउथ वास से मुँह को 3-4 बार रोजाना साफ करें।
(vi) गुदा से रक्तस्राव – बबासीर एनल फिशर / गुदा में दरार पड़ना या घाव के कारण रक्तस्राव होता है। ऐसी स्थिति में निम्न प्रकार से त्वरित चिकित्सा करें। चिकित्सा कारण के अनुसार की जानी चाहिए। पैराफीन गाज से पैकिंग करे एवं रक्तस्राव रोकने की दवा दें। रक्तस्राव न रुकने पर शल्य चिकित्सा की सहायता लें। साथ में इंजेक्शन क्रोमोस्टेट 2. मिली. आई. वी. दे।
2. अंदरूनी रक्तस्राव की आपातकालीन चिकित्सा (Treatment of Internal Haemo- rrhage)-
(i) आँतों में रक्तस्राव (Intestinal Haemorrhage)-
टाइफाइड ज्वर एपेण्डीसाइटिस अथवा ऑब्सट्रक्शन में आँतों में छिद्र होने पर रक्तस्राव शुरू हो जाता है और रोगी की स्थिति। गम्भीर हो जाती है। ऐसी स्थिति में त्वरित चिकित्सा अग्र प्रकार की जानी चाहिए-
रोगी को पूर्ण आराम (Complete Rest) दें। कारण का पता लगाकर उसकी चिकित्सा करें। रक्त की अत्यधिक कमी में खून चढ़ाया जाना चाहिए। रक्त के इन्तजाम होने तक रोगी को सलाइन या डेक्स्ट्रान या हीमेसिल की ड्रिप शुरू कर दें। रोगी की शल्य चिकित्सा की व्यवस्था करें उसकी नाड़ी, ब्लड प्रेशर, सॉस व तापमान पर नजर रक्खें। रोगी को मुँह से कुछ न दें।
(ii) मस्तिष्क में आन्तरिक रक्तस्राव – यह अधिकतर उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) और सिर की चोट (Head injury) में होता है। कभी-कभी कुछ अन्य कारणों में भी रक्तवाहिनियों के फटने से रक्तस्राव हो सकता है। इस प्रकार के रक्तस्राव में कुछ विशिष्ट लक्षण रोगी में देखने को मिलते हैं।
★ रोगी अधिकतर बेहोशी में आता है।
★ उसे किसी भी चीज का होश नहीं होता।
★ अधरंग (Hemiplegia) अर्थात् आधे अंग का घात मिलता है।
परीक्षण (Test) – खोपड़ी का एक्स-रे (X-Ray Skull) सी. टी. स्केन (C. T. Scan.) की आवश्यकता होती है। सी. टी. स्केन से रक्तस्राव की सही जगह एवं रक्तस्राव की मात्रा का पता चल जाता है।

उपचार
यदि रक्तस्राव का कारण उच्च रक्तचाप (Hypertension) हो तो ब्लड प्रेशर घटाने की कोशिश करें। इंट्राक्रेनियल तनाव को दूर करने के लिए मैनिटाल (Mannitol) IV. बहुत धीमी गति से दें। मैनिटाल के स्थान पर लैसिक्स’ दे सकते हैं। रुके हुए थक्कों को समाप्त करने के लिए उनको घोलने वाली औषधि (वार- फेरिन – Warfarin). स्ट्रेप्टोकाइनेज Strepto-kinase, यूरोकाइनेज Urokinase दें। दौरा पड़ने की दशा में इंजेक्शन केलम्पोज’ (कम्पोज) 2 मिली. धीरे-धीरे आई. वी. दें। रोगी को दिमागी ताकत के लिए ‘एनीसिफाबोल (Encephabol) की ड्रिप दें। यह पाइरीटिनॉल’ (Pyritinal) का उत्तम पेटेन्ट योग है। यह 100 ml के सस्पेन्शन में आता है।
मस्तिष्क में आन्तरिक रक्तस्राव की दशा में न्यूरोसर्जन विशेषज्ञ का विशेष महत्व होता है। जहाँ तक सम्भव हो ऐसी स्थिति के रोगी को जल्दी से जल्दी अस्पताल भिजवा देना चाहिए।