GOUTY ARTHRITIS-गठिया सन्धि शोथ/गठिया का रोग

What is Gout arthritis

Gout arthritis (गठिया) एक ऐसा रोग है जो प्यूरिन (Purine) में मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी से होता है। इस रोग में यूरिक एसिड साल्ट जैसे- सोडियम बाइयूरेट जोड़ों के कार्टिलेज, वसा एवं लिगामेन्ट में जम जाते हैं। इसको सामान्य भाषा में ‘गठिया वात’ की बीमारी के नाम से जाना जाता है। यूरेट्स ऑफ सोडा नामक पदार्थ हाथ-पाँव की छोटी सन्धियों में इकट्ठा हो जाता है जिससे सूजन आ जाती है और दर्द होता है।

गठिया एक पीड़ादायक तथा जोड़ों की बीमारी है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। देश में लगभग 90-95% लोग इस बीमारी से किसी न किसी रूप में पीड़ित हैं।

Causes of gout arthritis

गठिया वात का सही कारण अभी तक साफ नहीं हो सका है।

प्राथमिक गठिया रोग एक आनुवांशिक रोग है। द्वितीयक गाउट अधिकतर पोलीसाय थीमिया, ल्यूकोमिया आदि में हीमेटोलोजिकल विकार के उपद्रव रूप में मिलता है। अधिक शराब पीने, कोई चोट लगने या ऑपरेशन के बाद यह रोग अक्सर हो जाता है। फ्रसेमाइड एवं थाइजाइड आदि औषधियों के सेवन से भी यह रोग होते देखा गया है। शरीर में यूरिक एसिड की टॉफी बनने के कारण भी यह रोग होता है। | अन्य सहायक कारण-शीत प्रधान देशों में

निवास एवं सीलन भरी जगह में रहना, पसीने से तर शरीर में शीतल वायु के लगने, माँसाहार अधिक भोजन या मन्दाग्नि। सीसा धातु वाली जगह पर काम करने से यह रोग होता है।

Symptoms of gout arthritis

शुरू में रोगी को पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी होती है। पेट फूलता है। अम्ल और गैस बनती है, भूख खुलकर नहीं लगती है। कब्ज रहती है, पेशाब कम मात्रा में गाढा, लाल होता है। नींद नहीं आती है, कलेजा ज्यादा धड़कता है। इसके बाद अचानक किसी रात दर्द शुरू होता है, रोग वाली जगह गरम हो जाती है।

और जलन महसूस होती है। पहले पाँव के अँगूठे के अगले भाग की गाँठ पर रोग का आक्रमण होता है और फिर एड़ी,गुल्फ, सन्धि, घुटने आदि पर फैल जाता है। रोगी के पसीने में अजीब सी गन्ध आती है। जमीन पर पेशाब के सूखने से लाल रंग की सतह बन जाती है।

Note

एक जोड़ के बाद दूसरा एवं दूसरे के बाद तीसरा तथा अन्य जोड़ प्रभावित होते जाना इस रोग का एक खास लक्षण है। इस रोग में घुटने, कोहनियाँ, कलाई अधिकतर प्रभावित होते है। गठिया के रोगी को प्यास अधिक लगती है। रोगी मलमूत्र त्याग करने में भारी कष्ट और असमर्थता व्यक्त करता है। प्रभावित संधियों से तीव्र टीस भरी वेदना की लहरें उठती रहती हैं। रोगी को अक्सर सिर दर्द, सिर भारी रहने एवं ज्वर होते रहते हैं। रोगी का पसीना दुर्गन्ध युक्त रहता है। चिरकारी अवस्था में जोड़ों में सूजन के साथ जोड़ टेढ़े-मेढ़े, बेडौल हो जाते हैं। रोगी लंगड़ाकर चलता है।

रोग की पहचान

रोग का बार-बार आक्रमण, रोगी में रोग का पारिवारिक इतिहास, अपने आप जोड़ों में दर्द व सूजन खत्म होकर रोगी का बिलकुल सामान्य हो जाना, कानों में टॉफी का निशान, इलाज से तत्काल रोग में फर्क पड़ना आदि सभी तथ्य निदान में सहायक होते हैं। एक्स-रे लेने पर प्रारम्भ में एक्स-रे सामान्य आता है। पुराने रोगियों नि में जोड़ के आस-पास की हड्डी में परिवर्तन दिखायी देते हैं। टी. एल. सी. ज्यादा बढ़ा हुआ होता है, E. S. R. भी अधिक मिलता है। प्लाज्मा यूरिक एसिड अधिक तथा जोड़ के द्रव की सूक्ष्म- दर्शक यंत्र से जाँच पर क्रिस्टल्स मिलते हैं।

पुराने रोगियों में एक साथ बहुत सी सन्धियों में तकलीफ होती है एवं वे मोटी हो जाती हैं। गठिया में वरसा अधिक प्रभावित होती है एवं इसमें द्रव एकत्र हो जाता है। जोड़ टेढ़े-मेढ़े और बेडौल हो जाते हैं। सन्धि स्थल फट जाते हैं और उनमें से मवाद जैसा स्राव निकलता है। रोगी प्रायः पेट के विकारों से ग्रस्त रहता है। श्वास दमा की भी शिकायत रहती है।

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