परिचय

यह कर्ण या श्रवण नलिका के कार्टिलेज हिस्से के रोम कूप का ‘स्टेफाइलो कोकल इन्फैक्शन’ होता है। अधिकतर एक ही व कभी-कभी कई भी हो सकते हैं। सामान्यतः यह बार-बार होता रहता है।
रोग के प्रमुख कारण

कान को सींक, पेन्सिल आदि से कुरेदने पर जीवाणु संक्रमण होकर, मधुमेह के रोगी (इनकी सम्भावना अधिक) पानी में डुबकी, तैरने आदि से गंदा पानी कान में प्रवेश कर जाता है जिससे वहाँ जीवाणु उत्पन्न हो जाते है।
रोग के प्रमुख लक्षण

कान में तेज दर्द होता है जो मुँह खोलने, चबाने से या कान को हिलाने से बढ़ जाता है। कभी-कभी कर्ण नली में इतनी सूजन आ जाती है कि मार्ग अवरुद्ध होने पर सुनाई कम देता है। बाह्य कर्ण (पिना) को छूने से भी दर्द इतना ज्यादा होता है कि परीक्षा करना भी मुश्किल हो जाता है। फुंसी देखने में लाल और उठी हुई होती है जिसे छूने पर दर्द होता है। श्रवण नलिका की दीवार लाल व सूजी हुई होती है जिससे कान का पर्दा भी नहीं दिखायी देता है। स्थानीय लसिका ग्रन्थि (Lymph nodes) भी बढ़े हो सकते हैं। फुंसी के फूट जाने पर मवाद के समान गाढ़ा स्राव आता है।