परिचय –

व्यावहारिक तौर पर इसे मस्तिष्क शोथ’ का रोग कहा जाता है। वाइरस जनित ऐनसेफालाइटिस को ही एनसेफालाइटिस कहते हैं। यह भारत में बहुप्रचलित है। महामारी के रूप में भी और छुटपुट रूप में भी। इसका एक अन्य रूप जापानी ऐनसेफेलाइटिस एवं तन्द्रा एनसेफेलाइटिस (Encephalitis lethargica) अक्सर भयंकर बीमारी के रूप में फैलते है।
रोग के प्रमुख कारण

विशिष्ट प्रकार का वाइरस जनित ऐनसे- फालाइटिस, ECHO ग्रुप, कॉकसैकी, हर्पीज सीम्पलैक्स वाइरस द्वारा या जापानी B ऐन सेफालाइटिस नामक वायरसों द्वारा होता है। भारत में मस्तिष्क ज्वर का सबसे प्रमुख कारण ‘जापानीज इन्केफ्लाइटिस’ है। पिछले कई वर्षों में यह संक्रमित रूप से बिहार व उत्तर प्रदेश में फैला। इस रोग के कारण हजारों बच्चे शारीरिक व मानसिक अपंगता के शिकार हो गये। जापानी मस्तिष्क ज्वर के वाइरस को होस्ट गलियों तथा मलिन बस्तियों में पाये जाने वाले सुअर होते हैं। अक्सर सुअरों एवं कुछ अन्य जानवरों में यह वाइरस बहुतायत से पाया जाता है। रोग मुख्य रूप से क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है। पोलियो, हरपीज, मम्पस, खसरा, मसूरिका आदि के संक्रमण के उपरान्त रोग के होने की सम्भावना रहती है।
रोग के प्रमुख लक्षण

इसकी शुरूआत एकाएक और तीव्र गति से होती है। तीव्र ज्वर (जाड़ा लगकर), सिर दर्द, उल्टी और बेचैनी होना इसके प्रारम्भिक लक्षण होते हैं। इसके तुरन्त बाद चेतना लुप्त होने लगती है। छटपटाहट के साथ-साथ रोगी पहले तन्द्रावस्था में चला जाता है फिर बेहोश हो जाता है। आवाज में लड़खड़ाहट तथा निगरण कष्ट होना सम्भव है। पक्षाघात या अधरांघात होना सम्भव है। श्वसन केन्द्र के प्रभावित होने के कारण श्वसन-क्रिया तेज हो जाती है तथा अनियमित एवं झटकेदार हो जाती है।
#’जापानी B ऐनसेफालाइटिस’ में गर्दन कठोरता, ओठ, जिहा एवं हाथों में कंपन तथा दैहिक कठोरता होना संभव है। हर्पीज सीम्पलेक्स ऐनसेफालाइटिस में आचरण दोष होता है तथा मूर्च्छा के दौरे पड़ते हैं।
रोग की पहचान

महामारी (इपीडेमिक) के समय इस व्याधि के निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। ज्वर, निद्रालुता, प्रकाश संत्रास, पक्षबध, एकांगघात आदि होने पर इस रोग का अनुमान होता है। कब्ज, मलमूत्र का अनियंत्रित उत्सर्ग, रक्त एवं सुषुम्नाद्रव में विशेष विकृति न होना इस रोग का निदर्शक माना जाता है। 2-4 दिन के ज्वर के बाद दोनों पाश्र्वों में वर्त्मघात (टोसिस Ptosis) का मिलना इस रोग का स्पष्ट निदानात्मक चिन्ह है।
कारक

# वाइरस को विशिष्ट सम्बर्धन विधि द्वारा पहचाना जा सकता है। सीरमी जाँचों से विशिष्ट एन्टीबॉडी को पहचाना जा सकता है। CT स्कैन करने पर मस्तिष्क में शोथ होने की तथा कोई अन्य विक्षिप्त होने की पहचान हो सकती है।
रोग का परिणाम

वाइरस जनित ऐनसेफालाइटिस या ऐनसे फालोमाइलाइटिस अधिकतर घातक होता है। जो बच जाते हैं उनमें निम्नलिखित उपद्रव देखे जा सकते हैं-
1. तिरछी दृष्टि, निस्टेगमस एवं द्विदृष्टता नेत्र सम्बन्धी विकार ।
2. कोरिया जैसी गतियाँ, पेशी आवमोटनी झटके, कम्पन आदि दिखायी देते हैं। ऐसे उपद्रव तन्द्राकर ऐनसेफालाइटिस में अपेक्षाकृत अधिक होते हैं।