रोग का परिचय
यदि खाई चीज अच्छी तरह न पचे या हज्म न हो तो उसे INDIAGETION या अजीर्ण कहते हैं। पाचन संस्थान में होने वाले तमाम रोगों में यह प्रमुख तौर पर होता देखा गया है। आजकल इस रोग से अधिकांश लोग पीड़ित रहते हैं।

रोग के प्रमुख कारण
समय-असमय बहुत सारा गरिष्ठ भोजन करना भोजन को बिना चबाये निगल जाना, भोजन करने से तुरन्त पूर्व अथवा भोजन के समय बहुत-सा पानी पीने, बहुत तम्बाकू, चाय या शराब पीना बहुत ज्यादा शारीरिक या मानसिक परिश्रम करना, अस्वास्थ्यकर चीजों का अधिक प्रयोग खड़ी तथा अचार-खटाई आदि का अधिक प्रयोग कमर मैं कपड़े खूब कसकर बाँधना, अत्यधिक श्रम मानसिक और शारीरिक, एकदम आराम, श्रमहीन जीवन जीना सीलन वाले स्थान में रहना, अत्यधिक चिंता, तनाव, डर-भय आदि कारणों से यह रोग होता है। भोजन के समय अति ठण्डा पानी अथवा अधिक गर्म पानी पीना अथवा पानी में बर्फ मिलाकर पीना नुकसानदायक होता है। बिना सोचे समझे अत्यधिक मात्रा में भोजन करके भारी श्रम अथवा तुरन्त सम्भोग क्रिया में जुट जाना हानिकारक होता है।
रोग के प्रमुख लक्षण

इस रोग से पीड़ित रोगी को भूख नहीं लगती है। वह सदैव बेचैनी से पेट पर हाथ फेरता रहता है। उसको बार-बार खट्टी डकारे आती रहती है। रोगी को अक्सर छाती में जलन, सिर में भारीपन की शिकायत रहती है, उसका जी मिचलता रहता है। रोगी को कभी-कभी चक्कर भी आते है। पेट फूल जाना तथा पेट में दर्द रहना आम शिकायत रहती है। दिल धड़कता है. मुँह में पानी भर आता है। खाने-पीने की इच्छा नहीं रहती है या तो कब्ज रहता है अथवा बदहजमी के पतले दस्त आते हैं। रोगी का किसी काम को करने का मन नहीं करता है. मामूली मेहनत करने से ही थकावट हो जाया करती है. सुस्ती रहती है. दिल भारी-भारी सा रहता है। जीन पर मैल की तह जम जाया करती है। रोगी बार-बार थूकता रहता है। यदि रोग पुराना हो गया हो तो रोग नाड़ी दुर्बलता स्नायु दुर्बलता मे परिवर्तित हो जाता है। अन्त में पेट में गैरा बनने लगती है।
रोग की पहचान

यदि रोगी भोजन करने के पश्चात् तुरन्त पेट फूल जाने की शिकायत करे, वमन हो, मुँह में पित्त (हरा, नीला, पीला) आने लगे. तबियत अक्सर गिरी-गिरी रहे तो चिकित्सक को समझ लेना चाहिये कि उक्त रोगी मन्दाग्नि / अजीर्ण से पीड़ित है।
रोग का परिणाम
रोग पुराना होने पर पेट में गैस बनने लगती है, स्नायु दुर्बलता हो जाती है। सिर भारी-भारी बना रहता है और रोगी को चक्कर आने लगते हैं।