डिफ्थीरिया क्या है?
Diphtheria एक तीव्र संक्रामक रोग है जो छोटे बच्चों को प्रभावित करता है। इसमें गले की नली, स्वर यंत्र और श्वास नली में सफेद धुमैले वर्ण वाली बनावटी झिल्ली बन जाती है और शोथ भी हो जाता है। गले की नली में विशेष अवस्था उत्पन्न हो जाती है और समीप की रस ग्रन्थियाँ फूल जाती हैं। इसमें ‘अलब्यूमिन्यूरिया, पक्षाघात, नाड़ी शूल, प्रभृति पीड़ा रूप में प्रकट हो जाती है |
पाश्चात्य देशों में काफी कम हो गया है, भारत में इसका आघटन सम्भवतः बढ़ा ही है।
# यह रोग देशभर में स्थानिक रूप से (Endemic) होता है। आज जब इस रोग का आघटन पाश्चात्य देशों में काफी कम हो गया है, भारत में इसका आघटन सम्भवतः बढ़ा ही है।

Causes of Diphtheria
इसका कारक जीवाणु डिफ्थीरिया वैसीलस होता है जिसे कोर्नी वैक्टीरियम डिफ्थीरी या क्लेब्स वैसीलस (KLB) कहते हैं। यह वैसीलस एक शक्तिशाली ‘एक्सोटॉक्सिन’ उत्पन्न करता है, जिसका विषाक्त प्रभाव शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ता है।
Diphtheria अधिकतर 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होता है। वयस्कों में भी विशेषकर महामारी के समय हो सकता है। जाड़े के दिनों में यह रोग अधिक होता है। यह बिन्दुक संक्रमण से, खिलौना, पेन्सिल, चम्मच, तौलिया आदि माध्यम से फैलता है।
Symptoms of Diphtheria
डिफ्थीरिया रोग के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

1. गले का डिफ्थीरिया-यह सबसे सामान्य प्रकार का डिफ्थीरिया है। इसकी शुरूआत धीमी गति से गले में दर्द, हल्का बुखार (90-101°F) तथा शरीर में दर्द के साथ होता है। नाड़ी की गति ज्वर के अनुपात में तीव्र होती है। परीक्षण करने पर एक हल्के भूरे रंग की झिल्ली टांसिलों के ऊपर, गले की दीवारों पर एवं नर्म तालू पर दिखायी पड़ती है। झिल्ली सतह से मजबूती से चिपकी रहती है और आसानी से हटाई नहीं जा सकती। इसको जबर्दस्ती हटाने पर नंगी रक्तस्रावी सतह दिखाई देने लगती है।
2. नासा डिफ्थीरिया-इस व्याधि में नासिका के पश्च भाग में झिल्ली बनी होती है और बाहर से दिखाई पड़ सकती है। नाक से गाढ़ा स्राव निकलता है जो अक्सर रक्त से सना होता है।
3. स्वरयंत्र डिफ्थीरिया-यह डिफ्थीरिया का सबसे भयंकर स्वरूप होता है। इसमें वोकल कार्ड के ऊपर झिल्ली बन जाती है। स्वर रूक्षता तथा क्रूपी खाँसी होती है। स्वरयंत्र के अवरोध होने पर साँस लेने में दिक्कत होती है। बच्चा छट-पट करता है। श्वास के लिये हाँफता है तथा श्यावता से ग्रसित होता है।
रोग की पहचान
रोग की पहचान इसकी विशिष्ट झिल्ली को पहचान कर तथा गले या नासिका के स्वाब (Swab) का साधारण सूक्ष्मदर्शी द्वारा जाँच करके वैसीलस को पहचानकर या जीवाणुओं का सम्वर्धन (Culture) करके किया जाता है।

रोग का परिणाम
1.हृदय, श्वासतंत्र व नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है।
2.रक्त प्रवाह रुकने से तीव्र ‘कार्डियक फेलियर हो जाता है।
3.इसके अतिरिक्त उपद्रव स्वरूप इस रोग में पक्षाघात, ब्रोन्काइटिस, ब्रोन्कोन्यूमोनिया, साँस लेने में कठिनाई आदि हो जाते हैं।
