Dilution of semen- वीर्य का पतलापन

क्या होता है? वीर्य का पतलापन

Dilution of semen

सम्भोग में कामोत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने के बाद शिश्न (लिंग) से जो स्राव निकलता है उसे वीर्य कहते हैं। वीर्य वैज्ञानिकों की दृष्टि से चार प्रकार की ग्रन्थियों- शुक्र ग्रन्थियों, शुक्राशयों, प्रोस्टेट ग्रन्थि एवं काउपर ग्रन्थियों के स्रावों का मिश्रण है। यह सफेद सा अपारदर्शक, गाढ़ा, चिपचिपा, लेसदार, कुछ जमा हुआ तरल होता है। शुरू में इसमें नन्हें-नन्हें कण दिखाई पड़ते हैं। बाद में 8-10 मिनट के पश्चात् स्वतः द्रवित होकर यह अर्धपारदर्शक, धुँधला-सा चिपचिपा तरल बन जाता है जो हल्का क्षारीय होता है। वीर्य सूख जाने पर कपड़े पर इसका सफेद धब्बा बनकर रह जाता है।

एक बार के स्खलन (झड़ जाना – Discharge) में लगभग 4-5 मिली. वीर्य निकलता है जिसमें लगभग 40 करोड़ शुक्राणु (Sperms) होते हैं। प्रति मिली. वीर्य में 6 से 15 करोड़ तक शुक्राणु होते हैं। प्रति मिली. वीर्य में 2 करोड़ से कम शुक्राणु पाये जाते हैं तो ऐसे वीर्य को स्पष्टतः असामान्य माना जाता है।

वीर्य का रूप, रंग और गाढ़ापन इसमें विद्यमान विभिन्न अन्तर्वस्तुओं के पारस्परिक अनुपात पर निर्भर करता है। वैसे सामान्य वीर्य कोई बहुत गाढ़ा पदार्थ नहीं होता। इस तथ्य से अपरिचित युवक अक्सर वीर्य को पतला मानकर दुखी रहने लगते हैं।

Causes of Dilution of semen

Dilution of semen

निम्न दशाओं में वीर्य के गाढ़ेपन में अन्तर (कुछ-कुछ) आ जाता है।

जैसे कि 8-10 दिन पश्चात् सम्भोग करने पर वीर्य अधिक गाढा और परिमाण में अधिक निकलता है। जबकि सम्भोग जल्दी-जल्दी करने पर या हस्तमैथुन अधिक करने पर बाद के स्खलनों में शुक्र ग्रन्थियों और शुक्राशयों के स्रावों की अपेक्षा प्रोस्टेट ग्रन्थियों के स्रावों की अधिकता होने पर वीर्य कुछ पतला हो जाता है। शुक्राणु इनमें कम संख्या में होते हैं और वीर्य भी कम मात्रा में निकलता है। लम्बे अन्तराल (8-10) दिन के बाद सम्भोग किया जाए तो वीर्य फिर पहले की तरह गाढ़ा हो जाता है और परिमाण में अधिक निकलता है। वैसे वीर्य स्वयं में कोई गाढ़ी वस्तु नहीं है क्योंकि इसमें 80-90% तक जल होता है।

Symptoms of Dilution of semen 

वीर्य में 80-90% तक जल होता है। शेष भाग में शुक्राणु प्रोटीन तथा लवण एवं विभिन्न ग्रन्थियों के ठोस पदार्थ विद्यमान रहते हैं। शुक्राणु वीर्य में निलम्बित रहते हैं जो आयतन में वीर्य का लगभग 5% होते हैं।

शुक्राणुओं को डिम्ब को गर्भित करने के लिए गर्भाशय ग्रीवा से डिम्ब वाहिनी में पहुँचने के लिए गतिशील होना चाहिए। सामान्य वीर्य में 70% से अधिक शुक्राणु गतिशील होते हैं। शुक्राणु कुछ मिनटों से लेकर दो दिन तक जीवित रहते हैं। वीर्य में 80% शुक्राणु सामान्य आकृति के होने चाहिए। 20% से अधिक विकृति रूप वाले शुक्राणु हों। ऐसा वीर्य पतला होता है।

#वीर्य के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जानकारी

शुक्राणु (Sperms) वीर्य का महत्त्वपूर्ण भाग है क्योंकि इन्हीं से नये जीवन की उत्पत्ति होती है। ये पुरुष में यौवनारम्भ से लेकर मृत्यु तक बनते रहते हैं। वीर्य में ये आँखों से दिखाई नही देते बल्कि माइक्रोस्कोप के द्वारा ही इन्हें देखा जा सकता है। शुक्राणु जब शुक्र ग्रन्थियों एवं इपिडीडिमिस से निकल कर शुक्र वाहिनियों से धीरे-धीरे खिसकते हुए शुक्राशयों में पहुँचते हैं तो उन्हें इस यात्रा को पूरा करने में लगभग 15 दिन लग जाते हैं। स्खलन होने तक शुक्राणु इन्हीं शुक्राशयों में जमा रहते हैं। इस यात्रा के दौरान वे परिपक्व हो जाते हैं। शुक्राशयों का खाद शुक्राणुओं को भोजन प्रदान करता है,

उन्हें सुरक्षित रखता है तथा उनको आगे को चलने में मदद करता है। यह स्राव आयतन के सम्पूर्ण वीर्य का लगभग 60% होता है। यह कुछ गाढा, चिपचिपा, हल्का-सा क्षारीय, अक्सर पीला या अत्यधिक रंजक (वर्णयुक्त होता है। स्खलन से पूर्व शुक्र-रस शुक्राशयों से निकलकर नीचे प्रोस्टेट ग्रन्थि से होता हुआ जाता है, तो इसमें प्रोस्टेट ग्रन्थि का स्राव मिल जाता है। यह आयतन में सम्पूर्ण वीर्य का लगभग 20% होता है। यह दूधिया रंग का पतला तरल होता है। इसी के कारण वीर्य दूधिया होता है। प्रोस्टेट ग्रन्थि के स्राव में साइट्रिक एसिड का अंश अधिक होता है जिससे यह हल्का सा अम्लीय होता है और शुक्राणुओं को गतिशील बनाता है। वीर्य से एक विशेष प्रकार की गंध आती है जो प्रोस्टेट प्रध के स्राव में विद्यमान स्पर्मिन नामक पदार्थ के कारण आती है। इसके पश्चात् काउपर ग्रन्थियों का खाद मिल जाता है। यह कामोत्तेजना के समय प्रधियों से निकलकर शिश्नमुण्ड को चिकना बना देता है। यह क्षारीय होता है जो शुक्राणुओं के मार्ग को क्षारीय बना देता है जिससे नष्ट नहीं हो पाते।

● शुक्र कीट और शुक्राणु -वीर्य को माइक्रोस्कोप द्वारा देखने से पता लगता है कि इसमे लाखों की संख्या में सूक्ष्म से सूक्ष्म कीड़े होते हैं। वीर्य के इन कीड़ों को शुक्र कीट (वीर्य कीट Sperms) या शुक्राणु (वीर्याणु) कहते हैं जो मनुष्य जितना ही बलवान और निरोग होता है।

उसके वीर्य में उतने ही अधिक संख्या में ये वीर्य के कीट सबल होते हैं, किन्तु निर्बल और रोगी मनुष्यों के वीर्य में ये कीट संख्या में कम होते हैं तथा पतले और कमजोर से भी होते हैं। जिस प्रकार मछलियाँ पानी में तैरती हैं उसी प्रकार वीर्य में ये कीट भी वीर्य के तरल में तैरा करते है। इनकी शक्ल बहुत ही छोटी होती है. इसी से इन्हें हम नंगी आँखों से नहीं देख सकते।

शुक्राणु कुछ मिनटों से लेकर दो दिनों तक जीवित रहते हैं। यदि वीर्य को प्राप्त करके तीन घण्टे के भीतर परीक्षित नमूने में 60% से कम शुक्राणुओं में गतिशीलता दिखाई देती है तो उस प्रकार का वीर्य असामान्य माना जाता है। वीर्य में 80% शुक्राणु सामान्य आकृति के होने चाहिए।

20% से अधिक विकृत रूप वाले शुक्राणु हो तो ऐसा वीर्य विकृत माना जाता है। ये विकृत रूप वाले शुक्राणु दो सिर वाले, असमान आकृति के सिर वाले, लम्बे सिर वाले, बहुत चौड़े सिर वाले

संकीर्ण गर्दन वाले, दो दुम वाले, कुण्डलित दुम वाले, अनाकार वाले अथवा अपरिपक्व आदि होते है।

 #सबल मनुष्यों के वीर्य के कीड़े (स्पर्मस-Sperms) बलवान होते हैं और तेजी से चला करते हैं (बादल के समान)। किन्तु दुर्बल व्यक्तियों के ‘स्पर्मस’ पतले होते हैं और वे धीरे- धीरे चलते हैं। यही कारण है कि सबल व्यक्तियों की सन्तान अच्छी और बलवान होती है। निर्बल व्यक्तियों के या तो सन्तान होती ही नहीं है और अगर होती भी है तो बहुत दुर्बल-पतली होती है।

#माइक्रोस्कोप द्वारा देखने पर वीर्य के कीट (स्पर्मस) लम्बे आकार के दिखाई देते हैं। इनका सिरा चपटा होता है। इन शुक्रकीटों का आकार सर्प जैसा होता है, अर्थात् अगला भाग गोल और चपटा, पूँछ लम्बी, पतली और सूत्राकार होती है। सिर की लम्बाई 1710,000 इन्च और इतनी ही चौड़ाई होती है। पूँछ 1/2000 से 1/4000 इंच तक लम्बाई में होती है। यह शुक्रकीट जीवयुक्त (संजीव) होते हैं और वीर्य में इस प्रकार चलते-फिरते है जिस प्रकार कि जल में मछलियों के बच्चे। इनकी गति हमेशा आगे की ओर होती है। यह पूछ के सहारे तेजी से भागते हैं।

##डॉ. काल्लिकर के अनुसार एक बार के मैथुन में एक करोड़ और अस्सी लाख से लेकर बाईस करोड़, साठ लाख तक शुक्रकीट (वीर्य के कीटाणु) निकला करते हैं। इनमें से केवल एक शुक्राणु (जो सबसे अधिक शक्तिशाली तेज गति वाला) से ही गर्भ स्थिति हो जाया करती है। वीर्य बच्चे के उत्पन्न होने के बाद से ही बनने लगता है और मृत्यु तक कुछ न कुछ मात्रा में बनता रहता है। बच्चे में वीर्य होता है पर अपरिपक्व होने के कारण तथा उसका सौम्य रजभाव होने के कारण, वह वीर्य उनके शरीर में ही जज्ब (Absorb) होता रहता है जिससे उसका शरीर तेजी से दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगता है पर 14-15 साल या जिस आयु से वे अपने वीर्य का स्खलन शुरू कर देते हैं (मैथुन स्त्री समागम, स्वप्नदोष अथवा हस्तमैथुन से), तब से ही उनके शरीर की वृद्धि भी रुक जाया करती है।

वीर्य खून का सत्त न होकर अण्डकोष, शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्लेण्ड्स और शिश्नमूल ग्रन्थियों (काउपर ग्लेण्ड्स) का स्राव होता है स्त्री के साथ मैथुन करने के समय ये ग्रन्थियों क्रियाशील हो जाती है और अपने-अपने खाव (रस) छोड़ती है और यह सब सम्मिलित साव (रस) ही ‘वीर्य’ कहलाता है। अण्डकोषों में बना हुआ वीर्य गाढ़ा होता है, लेकिन उसमें वीर्याशय, वीर्य प्रणाली मूत्रमार्ग और उसके आस-पास के अंगों से कई रस निकल कर मिल जाने से यह पतला हो जाता है। स्त्री सम्भोग करते समय लिंगेन्द्रिय के उत्तेजित (खड़ा होने पर तथा मैथुन करने से पहले कई मनुष्यों के एक लेशदार पतली सी चीज की कुछ बूँदें टपक पड़ती हैं। गलती से अनजान लोग उसको वीर्य समझकर डरने लगते है पर वास्तव में ऐसा नहीं, यो तो यह वीर्य होता ही नहीं, क्योंकि इसमें वीर्य के समान शुक्राणु (Sperms) नहीं पाये जाते। यह स्थानीय ग्रन्थियों का स्वाभाविक रस ही है। मनुष्यों के अलावा साँड़, कुत्ते और बकरों के लिंगों से भी मैथुन के समय कभी-कभी इसी प्रकार के स्वच्छ रस की बूँदें गिरा करती हैं, वे भी प्रोस्टेट और शिश्नमूल ग्रन्थियों के स्राव ही हुआ करते हैं।

आम लोगों में एक बहम भरा हुआ है कि स्त्री सम्भोग करने के बाद शरीर के राजा वीर्य के निकल जाने से, शरीर में अत्यधिक कमजोरी आती है। इसी बहम के कारण ऐसे मनुष्य, स्त्री-सम्भोग करने के बाद शिथिल होकर थककर बिस्तर पर पड़े रहते हैं, वे समझते हैं कि खून के सत्त वीर्य के निकल जाने से शरीर की सारी शक्ति निकल गई है और इसीलिए थकावट आ गई है। यह सोचना ठीक है कि स्त्री सम्भोग करने के बाद थकावट आती है, पर यह याद रखना चाहिए कि यह थकावट, शरीर में से वीर्य के निकल जाने से नहीं आती, बल्कि सम्भोग के समय शरीर के हरकत (Movement) करने से आती है। सच्चाई तो यह है कि सम्भोग करने में सिर्फ लिंग ही हरकत में नहीं आता, बल्कि सम्भोग करते समय सारा शरीर ही क्रियाशील हो जाता है। सारे शरीर के हरकत में आने से शरीर में रक्त संचार (Blood) Circulation) पहले की अपेक्षा अधिक होने लगता है। रक्त संचार बढ़ने से दिल की धड़कन बढ़ जाती है। फेफड़े भी तेजी से साँस लेने लगते हैं और इस समय स्नायुमण्डल (नर्वस सिस्टम) तो सबसे अधिक क्रियाशील हो जाता है। स्त्री समागम के अन्तिम समय में वीर्य निकलने के समय तो सारी शारीरिक उत्तेजना अन्तिम सीमा पर होती है। वीर्यपात होने के बाद सारी उत्तेजना समाप्त हो जाती है। उत्तेजना के बाद शिथिलता आना एक प्राकृतिक नियम है। 

इसीआधार पर मैथुन / स्त्री समागम के पश्चात् शिथिलता आती है, वीर्य के निकलने से नहीं। 

कामशक्ति को कायम रखने के लिए उचित अवधि के पश्चात् सम्भोग करके वीर्य निकालते रहना चाहिए. ऐसा करने से वीर्य उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है। यदि वीर्य का निष्कासन नहीं होता है तो वीर्य का निर्माण कम होने लगता है।

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