परिचय
दुख और उदासी की स्थिति को Depression कहते हैं। शारीरिक चिकित्सा और मानसिक चिकित्सा प्रणाली में डिप्रेशन एक आम तकलीफ की तरह उभर कर आने लगा है। आज समाज का कोई भी हिस्सा डिप्रेशन (Depression) से अछूता नहीं है। लगातार बढ़ती हुई इच्छाओं और धूमिल पड़ती जा रही उम्मीदों से, आशाओं का फासला बढ़ता ही जा रहा है जिसके कारण आम आदमी हताशा, परेशानी, दुख, उदासीनता एवं आत्मग्लानि से भरता जा रहा है।

Causes
आज के समाज में तनाव डिप्रेशन का प्रमुख कारण है। भारत में पिछले एक दशक में तनाव में कई गुना वृद्धि हुई है जिसके कई कारण हैं। मुख्य तो लोगों की इच्छाओं और आवश्यकताओं में बढ़ोत्तरी है। हर व्यक्ति सभी कुछ प्राप्त करना चाहता है। आम आदमी जीवन से अधिक अपेक्षा करने लगता है। इसलिये इच्छाओं और उन्हें पूरा करने की क्षमता में फासला बढ़ता जा रहा है। इसका नतीजा अस्थिरता, बेचैनी और अंत में डिप्रेशन हो जाता है।
वृद्ध लोगों में तो अकेलापन डिप्रेशन का एक मुख्य कारण है। ऐसे बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि हो रही है जिनकी संतान उन्हें छोड़कर अलग रहने लगी है।
Symptoms
अवसाद (डिप्रेशन) में सामान्यतः उदासी, नींद में बाधा, भूख में एवं शारीरिक गतिविधियों में कमी आदि लक्षण होते हैं। रोगी अपने को असुरक्षित, नीरस, निराशावादी और नीचा महसूस करता है। कई बार उसे भविष्य की बहुत चिंता होती है। हो सकता है उसका रोने को मन करे तथा अपनी पिछली गलतियों के लिये वह अपने आप को कोसता रहे। व्याकुलता और बेचैनी भी डिप्रेशन के आम लक्षण हैं। अधेड़ और बड़ी उम्र के रोगियों में ऐसे लक्षण अधिक नजर आते हैं। कुछ रोगी तो आत्महत्या के बारे में सोचते रहते हैं या फिर कोशिश भी कर डालते हैं।
डिप्रेशन का रोगी सामाजिक संबंधों से आनाकानी करने लगता है। कई हफ्तों या महीनों तक घर से ही नहीं निकलता, रोजमर्रा के कार्यों में भी उसका मन नहीं लगता। कई रोगी बन्द कमरे में रहना पसन्द करते हैं। अंधेरा उन्हें अच्छा लगता है। उसके मन में बुरे ख्याल आते रहते हैं।
रोग की पहचान
ऐसे रोगी बाहर की दुनिया से संपर्क नहीं रखना चाहते। बीमारी के कारण वो अपने जीवन के दायरे को छोटा करते जाते हैं। रोगी को लगता है कि वह कमजोर होता जा रहा है। साधारण से काम में भी उसका आत्म- विश्वास कम हो जाता है। हमें ऐसा प्रतीत हो सकता है कि उसे कोई शारीरिक बीमारी हो गई है क्योंकि वह सुस्त और कमजोर नजर आता है। कई रोगी ऐसा महसूस करते हैं कि उनके दिमाग में एक टेप की कैसेट चल रही है और सारा दिन ही वह कैसेट चलती रहती है। डिप्रेशन का रोगी हर घटना को नेगेटिव तरीके से देखता है।

रोग का परिणाम
कई रोगी तथा उनके परिवारजन समझते हैं। कि डिप्रेशन (उदासीनता) तो कोई रोग ही नहीं और इसके लिये व्यक्ति को किसी प्रकार की चिकित्सा की आवश्यकता नहीं है और इसके लक्षण अपने आप समाप्त हो जाते हैं। साधारण या तीव्र रोग में व्यक्ति को सावधान रहना चाहिये क्योंकि बिना उपचार डिप्रेशन से व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो सकता है। चिकित्सा रहित रोगियों में जड़ता विकसित हो जाती है जिससे वे बिलकुल चुप्पी साध लेते हैं, वे खाना-पीना और घूमना फिरना भी बन्द कर देते हैं। ऐसी अवस्था में उपचार बहुत मुश्किल हो जाता है।

Note
थाइराइड ग्रन्थि के रोग (हाइपोथायरोडिज्म) की स्थिति में डिप्रेशन एक आम बात है। कई मरीजों में डिप्रेशन इसकी पहली निशानी होती है। स्टीरायड लेने वाले रोगी अपने मूड परिवर्तन की बात करते हैं जो कि डिप्रेशन का एक लक्षण माना जाता है। हारमोन चिकित्सा अथवा गर्भ निरोधक दवा लेने वाली महिलायें अक्सर डिप्रेशन की शिकायत करती हैं। कई दर्द निवारक गोलियाँ आदि के लेते रहने के पश्चात् भी यह रोग हो सकता है।
हाई ब्लड प्रेशर घटाने की दवायें जैसे- ‘रेजरपाइन’ और ‘मिथाइल डोपा’ के प्रयोग से भी डिप्रेशन हो जाता है। ‘रेजरपाइन’ हाई ब्लड प्रेशर की पुरानी दवा है। इसके प्रयोग से तीव्र डिप्रेशन भी हो सकता है।
