परिचय

इस रोग में मरीज को आंशिक रूप से या पूर्णतया सुनाई नहीं देता है। यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। कभी-कभी तो जन्मजात भी होता है।
रोग के प्रमुख कारण

मस्तिष्क में चोट पहुँचने, कान में मैल की डाट लग जाने से, दीर्घकालीन मध्यकर्ण शोथ, श्रवण तंत्रिका या केन्द्रीय तंत्रिका मार्ग में क्षति पहुँचने के कारण, अधिक शोरगुल वाले स्थानों पर कार्य करने से, हिस्टीरिया रोग, बाह्य कर्ण नलिका में फंगस प्लग से, कोई वृद्धि या ट्यूमर होने से, कान का पर्दा फट जाने से, तीव्र मध्य कर्णशोथ, वृद्धावस्था, स्ट्रप्टोमाइसिन, क्वीनेन, जेण्टामाइसिन आदि लम्बे समय तक प्रयोग करने से, बम विस्फोट या आकस्मिक तीव्र आवाज से बहरापन हो सकता है।
रोग के प्रमुख लक्षण
सुनने की क्षमता धीरे-धीरे या पूर्णरूप से लुप्त हो जाती है। बधिरता एक कान में या दोनों कान में हो सकती है। कान में नाना प्रकार की आवाजें आती हैं। कुछ रोगी ऊँचा सुनते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो कुछ दिन तक कम सुनाई देने की शिकायत करते हैं तथा कुछ दिन तक बराबर सही-सही सुनाई देने की बात करते हैं। यह सिलसिला कुछ रोगियों में जीवन भर चलता रहता है। कंडक्टिव (संवाहक) डेफनेस में मरीज धीरे बोलता है और सेन्सरी न्यूरल डेफनेस में मरीज जोर से बोलता है। बहरे व्यक्ति दुनिया के शोरगुल से बेखबर चुपचाप बैठे रहते हैं अथवा चुपचाप चलते-फिरते रहते हैं अथवा अपना कामकाज करते रहते हैं।