परिचय

यह मध्यकर्ण का पुराना रोग है जिसमें श्लेष्मा झिल्ली में संक्रमण होने से मवाद युक्त पानी बहता रहता है। यह बड़ों की अपेक्षा बच्चों में ज्यादा मिलता है। यह अधिकतर दोनों कानों में पाया जाता है।
रोग के प्रमुख कारण

संक्रमण बढ़कर जीर्ण अवस्था में पहुँचना इसका एक प्रमुख कारण है। टी० बी०, मधुमेह, अनुभवहीन चिकित्सकों से इलाज, इलाज पूरा न करवाने से, नासागुहा की चिरकारी शोथ, चिरकारी वायु विवर शोथ (Chronic sinusitis), नासाग्रसनी की शोथ, कंठ शालूक आदि कारणों से रोग की उत्पत्ति होती है। इसके अतिरिक्त बचपन में खसरा, गलघोंटू, इन्फ्लूएन्जा आदि होने से, वेन्टीलेशन में गड़बड़ी, तीव्र मध्यकर्ण शोथ, जो पूर्णरूप से ठीक न हो, कुपोषण आदि इसके कारण हैं।
रोग के प्रमुख लक्षण

पुराने रोग में कान से गाढ़ा तरल बहता है तथा रोगी को सुनने में बाधा आती है। यह दो प्रकार का हो सकता है-
1. एक दशा में गाढ़ा मवाद बहुत अधिक बहता है। कान के निरीक्षण करने पर कान के पर्दे के बीच में छिद्र (Perfora tion) दिखायी देता है। कभी-कभी कान के पर्दे का देख पाना सम्भव नहीं होता।
2. दूसरी दशा में कान से मवाद कम आता है जो अत्यधिक दुर्गन्धमय होता है। कान का निरीक्षण करने पर कान के पर्दे में किनारों की ओर छिद्र होता है और यह दिखायी न दे तो रोग के अन्य लक्षणों से इस दशा की पुष्टि हो जाती है। यह लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं; जैसे- सिर चकराना, बहरापन, चक्कर आना, सिरदर्द वमन, लकवा आदि ।