chronic bronchitis

CHRONIC BRONCHITIS- श्वास नलियों की सूजन

What is chronic bronchitis

क्रानिक ब्रोन्काइटिस लम्बे समय से चली आई सांस नलियों की सूजन है। यह सूजन फेफड़ों में बलगम पैदा करती है जिससे बार-बार खाँसी छिड़ती है और सांस छोड़ने और लेने में मुश्किल होती है। दम फूलने लगता है और दमा की ही तरह छाती में घबराहट होने लगती है। सीटी की सी ध्वनि सुनाई देती है। ऑक्सीजन फेफड़ों में पूरी मात्रा में जज्ब नहीं हो पाती जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और दौड़ भाग कर काम करने की ताकत नहीं रहती ।

पहले-पहल ये तकलीफ देह लक्षण जाड़े के दिनों में ही उठते हैं। तीन-चार महीनों तक खाँसी और बलगम लगातार तंग किये रहते हैं फिर जैसे-जैसे ठंड कम होती है, अपने से ही आराम आ जाता है। लेकिन अगले साल ठंड शुरू होते ही रोग फिर मुखर हो उठता है फिर बढ़ते-बढ़ते बीमारी पूरे-पूरे साल परेशान करने लगती है।

Causes of chronic bronchitis

1. बीड़ी और सिगरेट का जहरीला धुआँ, शहरों में दिनों-दिन बढ़ रहा वायु प्रदूषण, यातायात वाहनों, फैक्ट्रियों, पावर स्टेशनों का और खरपतवार जलने का धुआँ, घर में चूल्हे, मिट्टी के तेल के स्टोव और अँगीठी का धुआँ, मरुस्थल बने क्षेत्रों में लगातार उड़ने वाली धूल तथा हवा में छिपे नाना प्रकार के जैविक और रासायनिक तत्व श्वास नलियों पर जिस निर्दयता से मार करते हैं उससे 40-50 वर्ष की उम्र तक रोग शुरू हो जाता है। 

2. कुछ परिवारों में वंशानुगत कारण से भी रोग अधिक होता है।

3. संक्रमण – तीव्र श्वसनीशोथ का अधिक समय तक बने रहना, संक्रमण युक्त टॉन्सिल्स, क्षयरोग आदि से।

4. घर में किसी को धूम्रपान की आदत हो । तब भी परिवार के अन्य सदस्यों पर इसका बुरा असर पड़ता है

5. ज्यादातर मामलों में क्रानिक ब्रोन्काइटिस 50 साल के आस-पास शुरू होती है लेकिन अधिक प्रदूषित शहरों में रहने वालों में यह कम उम्र में भी उभर आती है ।

Symptoms of chronic bronchitis

1. रोग की शुरूआत जाड़े की खाँसी से होती है। सर्दी शुरू होते ही खाँसी शुरू हो जाती है। यह क्रम कई सालों तक लगातार इसी प्रकार बना रहता है। लेकिन उसकी उग्रता बढती जाती है। पहले कुछ दिन और महीनों तक रहने वाली खाँसी फिर पूरे साल ही परेशान करने लगती है। दम उखड़ने लगता है, छाती में खिंचाव महसूस होता है और सांस लेने छोड़ने में खरखराहट और सांय-सांय की आवाज होती है। ये लक्षण सुबह के समय सबसे तीव्र होते हैं। पर खींचतान कर बलगम निकलने के बाद कुछ आराम आ जाता है। बलगम भी कभी कम, कभी ज्यादा, कभी चिपचिपा, कभी पतला, कभी गाढ़ा कभी मैला तो कभी धौला होता है। यत्र-तत्र उसमें खून की छींट भी आ जाती है। फेफड़ों में इन्फैक्शन हो जाने पर उसका रंग पीला हो जाता है।

2.सांस की नलियों की यह सूजन हवा में प्रदूषण, सीलन, धुंध, कोहरा, तापमान के अचानक बढ़ने, घटने, सिगरेट पीने और छाती में इन्फैक्शन हो जाने पर बढ़ जाती है जिससे सांस और अधिक उखड़ने लगती है।

3. बढ़े हुए गम्भीर रोग में ऑक्सीजन की कमी से शरीर नीला भी हो सकता है दिल पर असर पड़ने से पूरे शरीर पर सूजन दिखने लगती है। इन लक्षणों के उभरने पर इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है।

रोग की पहचान

रोग का निदान सिर्फ लक्षणों के आधार पर होता है। किसी को तीन महीने तक लगातार खाँसी होती रहे और दो साल में लगातार दो बार यह क्रम दिखायी दे लेकिन जाँच-पड़ताल करने पर उसका कोई दूसरा कारण न मिले तो इसे ‘क्रानिक ब्रोन्काइटिस’ कहा जा सकता है।

रोग का परिणाम

1. यह एक बढ़ने वाली बीमारी है जो कि कभी कम व कभी ज्यादा होती रहती है। इससे हृदय व श्वसन फेलोर (Cardiac & Respiratory) तक हो सकता है। अन्ततः इससे रोगी की मृत्यु हो जाती है ।

2. बीमारी बढ़कर वात-स्फीति (एम्फीसीमा) बन सकती है।

3. एम्फीसीमा एक घातक तथा कष्टदायक बीमारी है जिसका इलाज संभव नहीं है।

जाँच परीक्षणों में सबसे उपयोगी ‘पलमोनरी फंक्शन टेस्ट’ होते हैं। उनकी मदद से रोग की गम्भीरता का आकलन होता जाता है। छाती के एक्स-रे से यह साफ हो जाता है कि फेफड़े में कहीं कोई इन्फैक्शन तो नहीं और खून की जाँच से यह सुराग मिल जाता है कि ‘इन्फैक्शन किस प्रकार का है।

[Note: कृपया डॉक्टर की सलाह, निदान और इलाज के लिए हमें संपर्क करें।]

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