चिकेन पॉक्स क्या है?
चिकनपॉक्स एक संक्रामक संक्रमण है, जो वैरिसेला-ज़ोस्टर वायरस के कारण होता है। इस बीमारी के होने का जोखिम सबसे ज़्यादा बच्चों को होता है, हालाँकि यह वयस्कों में भी फैल सकता है, अगर उन्हें संक्रमण न हुआ हो या उन्हें चिकनपॉक्स का टीका न लगा हो। आइए चिकनपॉक्स के बारे में विस्तार से जानें:
चिकनपॉक्स एक संक्रामक बीमारी है, जिसमें छाले जैसी खुजली वाले दाने और हल्के फ्लू के लक्षण होते हैं। इस बीमारी की मुख्य विशेषता दाने होते हैं-एक ऐसा दाना जो बहुत ही अनोखा होता है और विकास के कई चरणों से गुज़रता है। इसे छोटी चेचक के नाम से भी जानते है जो वेरिसेला वायरस द्वारा होती है। जिसमें शुरू में सिर दर्द और बुखार होता है, उसके पश्चात् शरीर पर पानी वाले दाने निकल आते हैं। इसे ‘बेरीसेला’ भी कहते हैं।

Chichen pox causes
छोटी चेचक बेरीसेला वायरस के द्वारा होती है। यह वही वायरस है जो हर्पीज जोस्टर का होता है। इस रोग से 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे ज्यादा अक्रान्त होते हैं। रोग बिन्दुक संक्रमण से फैलता है या रोगी के सम्पर्क में आये लोगों के हाथों, कपड़ों या संक्रमी पदार्थों से फैलता है। भारत में यह रोग अक्सर महामारी के रूप में फैलता रहता है, लेकिन छुटपुट घटनायें साल भर होती रहती हैं। इसका संसर्ग काल करीब 11 से 21 दिन होता है।

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Chichen pox symptoms
इस रोग के दैहिक लक्षण हल्के-फुल्के होते हैं। हल्का ज्वर, सिर दर्द, कमर में दर्द इसके लक्षण होते हैं। इस रोग की पहली पहचान विस्फोट के रूप में ही होती है। विस्फोट रोग होने के दूसरे दिन निकलते हैं तथा उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
विस्फोट प्रारम्भ में पीठ तथा उसके उपरांत चेहरे पर तथा हाथ-पैरों में निकलते हैं। पीठ (धड़) के ऊपर सबसे घने तथा दूरस्थ भागों में बहुत कम।
विस्फोट सबसे पहले चकत्ते के रूप में निकलते हैं जो कुछ ही घण्टों के अंदर पिटिकाओं में और फिर जलीय पिटकाओं में बदल जाते हैं। ये पिटिकायें छिछली (Super- ficial), पतरी दीवारों वाली, गुम्बज के आकार की तथा मोती जैसी चमकीली होती हैं। इन विस्फोटों की तुलना सुबह के ओस कणों से की जा सकती है। हर विस्फोट के चारों तरफ लालिमा छायी रहती है। विस्फोट आसानी से फट जाने वाले होते हैं। इसमें अधिक खुजली होती है। कुछ दिनों के बाद यह सूखने लगती है और उन पर पपड़ियाँ पड़ जाती हैं। पपड़ियाँ आसानी से उधड़ने वाली होती हैं। इनके उधड़ने के बाद उस स्थान पर कोई स्थायी दाग (Scar) नहीं रहता है।

रोग की पहचान
रोग की पहचान रोग के लक्षण चिन्हों के आधार पर की जाती है। कुछ रोगियों में चेचक का संदेह होने पर वायरस का टिशू कल्चर किया जाता है। विक्षतियों के पेन्दे से ली गई। खरोंचों में बहुकेन्द्रीय महाकोशिकायें देखी जा सकती हैं। वायरस मेम्ब्रेन के प्रतिरोधी एण्टी बॉडी इम्युनोप्रीप्ति विधि से पहचाने जा सकते हैं। इसके लिये एलीसा जाँच’ भी उपलब्ध है। वैसे दानों का निकलना व फफोलों का रूप लेना ही पहचान है।
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रोग का परिणाम
ज्यादातर यह अपने आप से ठीक होने वाला रोग है। पर मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने से अन्य बैक्टीरिया द्वारा किये गये आक्रमण के फलस्वरूप दूसरे लक्षण प्रकट हो जाते हैं। जैसे- 1. चिकन पॉक्स निमोनिया ।
2. मस्तिष्क सुषुम्नाशोध (एनसेफेलाइटिस)- सिर दर्द, गर्दन अकड जाना, उल्टी, बेचैनी, दौरे पडकर कोमा में चले जाना एवं कभी-कभी पक्षाघात भी संभव है। वृक्कशोथ भी दुर्लभ उपद्रव है। गर्भवती महिला का छोटी चेचक से संक्रमित होने पर शिशु में जन्मजात दोष होना संभव है।