Bronchiectasis

BRONCHIECTASIS- फुफ्फुसीयशोथ

सांस लेने में तकलीफ? जानिए क्या है ब्रॉन्कीएक्टेसिस

Bronchiectasis (ब्रॉन्कीएक्टेसिस) एक पुराना श्वास रोग है। इसमें फेफड़ों की कुछ श्वास नलियाँ (ब्रोकाई) अपना लचीलापन खो देती हैं और स्थायी रूप से फूल जाती हैं। उनमें बार-बार संक्रमण होता है जिससे रोगी खाँसी बलगम का शिकार बना रहता है। यदि फेफड़ों का बड़ा भाग इस तरह रोगग्रस्त हो जाये तो इससे आगे चलकर दिल पर भी असर पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, इन्फैक्शन शरीर के अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों में भी पहुँच सकता है।

Causes of bronchiectasis

बहुत से कारण हैं- श्वास नलियाँ जन्म से ही कमजोर हो सकती हैं या बाद में बचपन या युवावस्था में उनमें किसी कारण रुकावट आ जाने से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इसका एक बड़ा कारण पुरानी टी. बी. है। बचपन में काली खाँसी और खसरा होने के बाद भी श्वास नलियाँ कमजोर हो जाने से यह रोग लग जाता है। फेफड़ों के संक्रामक रोग। यह रोग मुख्य रूप से रोग उत्पन्न करने में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं।

Symptoms of bronchiectasis

लक्षण रोग की उग्रता पर निर्भर करते हैं-पर लम्बे समय से चली आई खाँसी उसके साथ बलगम का होना, बलगम के साथ यदा-कदा खून आना और इन्फैक्शन होते रहना ब्रोन्किएक्टेसिस के प्रमुख लक्षण हैं।

यह खाँसी सुबह के समय अधिक छिड़ती है और उसके साथ पीले-काले रंग का बलगम भी आता है। बलगम का पीला होना, उसमें दुर्गन्ध आना इसका संकेत है कि रोगी को इन्फैक्शन हो गया है। इस कारण बुखार भी आ सकता है। रात में जोरों का पसीना आता है, भूख मर जाती है और किसी काम में मन नहीं लगता है। वजन में गिरावट आ जाती है। कमजोरी और शरीर में खून की कमी हो जाती है। लम्बे समय तक रोग रहने पर अंगुलियों में सूजन आ सकती है।

Note

 जो बहुत ज्यादा धूम्रपान या किसी संक्रमण (छूत) फेफड़ों के लचकदार ऊतक (टिशू) अथवा श्वसनिका के नष्ट होने से होता है तब व्यक्ति को ब्रोकिएक्टेसिस रोग हो जाता है जो कि ज्यादा धूल, धुएँ के जाने से होता है।

Note 

-यह रोग प्रायः ज्यादा धूम्रपान करने वाले लोगों व उन व्यक्तियों को होता है। जो कल-कारखानों और ज्यादा भीड़ वाली जगह पर रहते हैं। बुखार प्रायः कम ज्यादा होता है। रोग बढ़कर वात-स्फीति (एम्फीसीमा) बन सकता है।

रोग की पहचान

जीर्ण कास, आसन परिवर्तन या हिलने-डुलने पर भी खाँसी का बढ़ना तथा दुर्गन्धयुक्त कफ का आना रोग निर्णायक होता है। क्रानिक ब्रोन्काइटिस, फेफड़ों की टी. बी., फेफड़ों का कैंसर कुछ ऐसे आम रोग हैं जिनमें इसी तरह के लक्षण हो सकते हैं। लेकिन डॉक्टरी जाँच से इनमें भेद किया जा सकता है। टरी जाँच से किया जा इनमें भेद

छाती के साधारण एक्स-रे के अलावा श्वास नलियों की रंगीन एक्स-रे जाँच जिसे ‘ब्रोन्कोग्राफी’ कहते हैं। इसमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। इसके अलावा इन्फैक्शन का जायजा लेने के लिये खून और बलगम की भी जाँच करनी पड़ सकती है।

रोग का परिणाम

रोगी को श्वास कष्ट के कारण अतिशय कष्ट रहता है। रोग बढ़कर वात स्फीति (एम्फीसीमा – Emphesema) तक बन सकता है। रोगी को शल्य चिकित्सा तक के लिये बाध्य होना पड़ सकता है। यहाँ तक कि अगर फेफड़े का कोई एक भाग रोगग्रस्त हो जाय; तो ऑपरेशन द्वारा उसे निकाल देना ही पड़ सकता है और यही इसका स्थायी समाधान है।

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