खसरा क्या है?
यह बच्चों की एक अत्यन्त संक्रामक तथा प्राणलेवा बीमारी है। इसमें रोगी को छींकें आने के साथ-साथ आँख, नाक से पानी बहता है व तेज ज्वर हो जाता है। मुख की श्लेष्मिक झिल्ली पर कोपलिक धब्बे पड़ जाते हैं। रोगी के माथे से शुरू होकर सम्पूर्ण शरीर पर लाल-लाल दाने से निकलते हैं।

Measles causes
यह अधिकतर बच्चों में रुवेला वायरस द्वारा फैलता है। यह वायरस मरीज के खाँसने से, दाने की पपड़ी से, छींक व थूक द्वारा हवा से दूसरों में फैलता है।
हमारे देश में करोड़ों बच्चे इसके शिकार होते है। यह रोग सारे विश्व में पाया जाता है। यह रोग बरसात के बाद शीत ऋतु में अधिक होता है। रोग निम्न एवं मध्यम आयु वर्ग के बच्चों में अधिक पाया जाता है। शिशिर, हेमन्त, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में भी होते देखा गया है। यह साधारणतया महामारी के रूप में बसत तथा शीत ऋतु में भी फैलता है। यह विशेषकर बचपन की व्याधि है। यह रोग अधिकतर बच्चों में होता है। विकासशील देशों में यह एक प्रमुख शिशु रोग है जो कुपोषित बच्चों में घातक भी हो सकता है। इन देशों में यह रोग अपेक्षाकृत कम उम्र के बच्चों (3 वर्ष से कम) में होता है। दो से तीन वर्ष के अन्तराल में इस बीमारी की महामारी अवश्य होती है। एक बार यह रोग हो जाने पर स्थायी प्रतिरक्षा शक्ति (Immunity) प्राप्त हो जाती है।

Measles symptoms
यह रोग दो अवस्थाओं से गुजरता है-
1. केटार स्टेज (Catarrhal Stage) तथा
2. स्फोटक ज्वर स्टेज (Exanthematous stage)
1. केटार स्टेज- यह स्टेज 4 दिनों की होती है। जुकाम के प्रतिरूपी लक्षण (छींक आना, नाक से पानी गिरना तथा आँखों में लालिमा होना) मौजूद होते हैं। ज्वर पहले ही दिन (100°-103°F) से प्रारम्भ हो जाता है, तीसरे दिन थोडा घट जाता है और फिर चौथे दिन विस्फोट होने के साथ-साथ बढ़ जाता है। सूखी खाँसी होती है। स्वरयंत्र शोथ होने के कारण स्वर रूक्षता (Hoarseness) हो सकती है। इस अवस्था के निदानी चिन्ह कोपलिक के धब्बे होते हैं। छोटे-छोटे, आलपीन के शीर्ष के बराबर सफेद दाने गालों के भीतरी भाग में Second molar teeth के पास दिखायी देते हैं। श्लेष्मा की लाल सतह के ऊपर इसके दाने साबूदानों की तरह दीखते हैं। खसरा के विस्फोट आते ही ये गायब हो जाते हैं।
2. स्फोटक स्टेज-खसरा के विस्फोट चौथे दिन क्रमवार ढंग से दिखायी देते हैं। पहले कानों के पीछे, उसके बाद ललाट पर (केशों के पास) चेहरे पर (मुख के चारों तरफ) और अन्त में धड़ और हाथ-पैरों पर । शरीर के दूरस्थ भाग प्रायः बचे हुए होते हैं। विस्फोट बैंगनी या हल्के लाल रंग के 3-5 mm व्यास वाले चकत्तों के रूप में होते हैं जो एक या दो दिनों के अन्दर पिटिकाओं (Papules) में बदल जाते हैं। आस-पास की पिटिकायें आपस में जुड़कर बड़े धब्बों में बदल जाती हैं जिसके कारण चेहरा सूजा हुआ दीखता है। इसके बाद विस्फोट फीके पड़ने लगते हैं और । सप्ताह के भीतर समाप्त हो जाते हैं, लेकिन उन जगहों पर बादामी रंग के दाग कुछ समय के लिये रह जाते हैं। विस्फोटों के आने के साथ-साथ ज्वर उतर जाता है।
रोग की पहचान
पास-पड़ौस में रोग की उपस्थिति, कोपलिक स्पॉट, शरीर पर लाल दाने, बुखार के साथ जिनका क्रम में निकलना एवं झड़ना आदि लक्षणों के आधार पर रोग की पहचान होती है।
निदान के लिये साधारणतः किसी जाँच की आवश्यकता नहीं होती है। खसरा वायरस को बलगम, नासिका स्राव या मूत्र का विशिष्ट विधियों से सम्बर्धन करके पहचाना जा सकता हैं।

रोग का परिणाम
साधारणतः खसरा रोग स्वयं ठीक होने वाला रोग है पर इसके उपद्रव बहुत गम्भीर होते हैं। मृत्यु प्रायः इन उपद्रवों के कारण ही होती है। अधिकतर उपद्रव द्वितीयक संक्रमण के कारण कुपोषित बच्चों में होते हैं।
इसमें ‘ब्रान्कोन्यूमोनिया’ सबसे खतरनाक और आम उपद्रव होता है। यह उपद्रव ही बच्चों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी होता है। ‘कार्नियल व्रण’ होने से रोगी अंधा हो सकता है। ‘आमाशय आन्त्रशोथ’ एक आम उपद्रव है। इसके अतिरिक्त इसमें ‘मध्य कर्ण शोथ ‘मस्तिष्क मेरुदण्ड शोथ’ गर्भवती महिला में शिशु की मौत आदि उपद्रव हो सकते हैं।
