Meaning
इसे मूत्र विष संचार भी कहते हैं। इसमें मूत्र के विषैले पदार्थ रक्त में मिलकर सिर दर्द, बेहोशी, प्रलाप, ऐंठन, मस्तिष्क में गड़बड़ी तथा पक्षाघात आदि भयंकर लक्षण होते हैं।

Causes
यह रोग मूत्र संस्थान में अवरोध, विष, हैजा (Cholera) आदि में तीव्र निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) ‘डायवेटिक कोमा’, ‘रीनल हाइपरटेंशन’, ‘जीर्ण वृक्कगोणिका शोथ’, ‘ग्लोमेरुलो नेफ्राइटिस’, एडीसन्स का रोग, लूपर एरियोमेटोसिस आदि के कारण होता है।
symptoms
रोगी घबराया हुआ होता है, उसके सिर में दर्द तथा उल्टी की शिकायत होती है। त्वचा शुष्क तथा पीली पड़ जाती है, अरुचि, भूख न लगना, नींद न आना, दाँतों का ढीलापन तथा उनसे रक्तस्राव, सब नार्मल तापक्रम, मुख मूत्र से जैसी गन्ध, श्वास में अमोनिया की गन्ध, तेज तथा गहरी श्वास, बेचैनी याददास्त कम हो जाना, माँसपेशी दुर्बलता आदि लक्षण होते हैं। जगह-जगह से त्वचा सूखकर निकलने लगती है, दौरे पड़ने लगते हैं और कई बार पक्षाघात भी हो जाता है।

रोग की पहचान
रोग की पहचान लक्षणों के आधार पर आसानी से हो जाती है। जाँच कराने पर रक्त में यूरिया की वृद्धि मिलती है, फास्फेट व सल्फेट में वृद्धि तथा क्लोराइड कम मिलते हैं।
रोग का परिणाम
जीर्ण स्वरूप के वृक्क रोग के कारण होने वाला यूरिमिया असाध्य होता है।